स्वराज्य करुण
दुखीराम के टपरे में गर्मागर्म पकौड़े तले जा रहे थे . यह टपरा कस्बे के चिलम छाप प्रबुद्ध जनों में काफी लोकप्रिय है. कारखाने की थका देने वाली कमर तोड़ मेहनत से अगली सुबह तक के लिए मुक्त होकर कुछ लोग दुखी भईया के इस झोपड़ीनुमा रेस्टोरेंट में चाय की चुस्कियों के साथ पकौड़े का मजा लेते हुए शाम के अखबार की ख़बरों पर भी अपने-अपने अंदाज में टिप्पणी करते जा रहे थे .
द्वारिका ने शंकर से कहा - पढ़ा तुमने यह समाचार ? फिर वह खुद ही पढ़ कर बताने लगा -देश की सबसे बड़ी पंचायत के उच्च सदन के सदस्यों की जायदाद और का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. वेबसाईट में इसे जारी करने की ज़रूरत नहीं है. ऐसा उच्च सदन की एक उच्च स्तरीय समिति ने किसी आवेदक को 'सूचना का अधिकार' क़ानून के तहत माँगी गयी एक जानकारी के सन्दर्भ में कहा है. हालांकि समिति का यह भी कहना है कि कोई भी व्यक्ति हमारे इन माननीयों की संपत्ति की जानकारी सभापति की लिखित अनुमति से प्राप्त कर सकता है , शंकर ने कहा -चलो ,कम से कम सभापति को इस बारे में जानकारी देने का अधिकार तो है !
द्वारिका कहने लगा - लेकिन भईया ! ये तो बताओ , देश के किस आम नागरिक की सीधी पहुँच वहाँ सभापति तक होगी ? वेबसाईट पर जानकारी प्रदर्शित कर दी जाए ,तो कोई भी नागरिक स्वयं का कम्यूटर और इंटरनेट नहीं होने के बावजूद किसी भी यार-दोस्त के पास या फिर सायबर कैफे में जाकर इसे आसानी से देख सकता है ! माननीयों की धन-दौलत का ब्यौरा सार्वजनिक करने में इतना संकोच क्यों ? जब हमारे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है और उसे वेबसाईट पर भी डाला जा रहा है, तब इन हरिश्चन्द्रों को इसमें इतना शर्माने और सकुचाने की भला क्या ज़रूरत ? भला कौन मूर्ख डाकू इन बेचारे गरीबों के घर डाका डालेगा और अपना कीमती समय बर्बाद होने देगा ?
तभी दोनों की बातों के बीच श्यामू पहुँच गया . उसने कहा -वो लोग अगर अपनी जायदाद को सार्वजनिक नहीं करना चाहते ,तो न सही ! चलो , आज हम लोग तो अपनी संपत्ति का ब्यौरा जनता के बीच रख सकते हैं ! वैसे भी हम तीनों के पास किराए के तीन छोटे -छोटे दड़बेनुमा मकान हैं, मकान मालिक को नोटिस आ गयी है कि इन मकानों को तत्काल खाली कराओ , क्योंकि ये अवैध कब्जे की ज़मीन पर बनवाए गए हैं . संपत्ति के नाम पर हम तीनों के पास टूटे-फूटे बर्तनों के अलावा और कुछ भी तो नहीं हैं, कुछ फटे-पुराने कपड़ों के साथ एकाध लोहे की पुरानी पेटी और पिताजी की दी हुई सायकल !...और सबसे बड़ी संपत्ति तो हमारे ये दोनों हाथ और दोनों पैर हैं, जिनके बल पर हम रोज अपने घर -परिवार के लिए दाल-रोटी का जुगाड़ करते हैं. यही तो है अपनी संपत्ति . इसे सार्वजनिक करने में हमे कुछ भी संकोच नही है !
चाय की एक घूँट लेने के बाद द्वारिका ने कहा-- लेकिन हमारे माननीयों को इसमें इतना शर्माने की क्या ज़रूरत है ? जब हम जैसे मेहनतकश मजदूर तक अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने का साहस दिखा सकते है ,तो ऐसा वो क्यों नहीं कर सकते ? वो हमसे तो बहुत गरीब हैं , ऐसा उन्हें अपने भाषणों में कहते हुए हमने देखा भी है और सुना भी है .वो तो ये भी कहते हैं कि सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों का व्यक्तिगत जीवन भी पारदर्शी होना चाहिए . फिर वो इतनी ऊंची-ऊंची दीवारों के बीच रहते क्यों हैं ?
मजदूरों के बीच चर्चा चल ही रही थी कि तभी तेज अंधड का एक झोंका आया और दुखीराम का टपरा उड़ते-उड़ते बाल-बाल बचा ! मजदूर अपने घरों की तरफ चल पड़े और हमारे माननीय ,प्रातः स्मरणीय लोग गर्मी से बचने के लिए स्विट्ज़र लैंड की बर्फीली वादियों की ओर ! लगे हाथ वो अपना खाता भी वहाँ चेक करवा लेंगे , जिसके बारे हमारे इन बेचारे हरिश्चंद्रों को देश की जनता अब तक न जाने कितना भला-बुरा कह चुकी है !
(swaraj-karun.blogspot.com)
द्वारिका ने शंकर से कहा - पढ़ा तुमने यह समाचार ? फिर वह खुद ही पढ़ कर बताने लगा -देश की सबसे बड़ी पंचायत के उच्च सदन के सदस्यों की जायदाद और का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. वेबसाईट में इसे जारी करने की ज़रूरत नहीं है. ऐसा उच्च सदन की एक उच्च स्तरीय समिति ने किसी आवेदक को 'सूचना का अधिकार' क़ानून के तहत माँगी गयी एक जानकारी के सन्दर्भ में कहा है. हालांकि समिति का यह भी कहना है कि कोई भी व्यक्ति हमारे इन माननीयों की संपत्ति की जानकारी सभापति की लिखित अनुमति से प्राप्त कर सकता है , शंकर ने कहा -चलो ,कम से कम सभापति को इस बारे में जानकारी देने का अधिकार तो है !
द्वारिका कहने लगा - लेकिन भईया ! ये तो बताओ , देश के किस आम नागरिक की सीधी पहुँच वहाँ सभापति तक होगी ? वेबसाईट पर जानकारी प्रदर्शित कर दी जाए ,तो कोई भी नागरिक स्वयं का कम्यूटर और इंटरनेट नहीं होने के बावजूद किसी भी यार-दोस्त के पास या फिर सायबर कैफे में जाकर इसे आसानी से देख सकता है ! माननीयों की धन-दौलत का ब्यौरा सार्वजनिक करने में इतना संकोच क्यों ? जब हमारे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है और उसे वेबसाईट पर भी डाला जा रहा है, तब इन हरिश्चन्द्रों को इसमें इतना शर्माने और सकुचाने की भला क्या ज़रूरत ? भला कौन मूर्ख डाकू इन बेचारे गरीबों के घर डाका डालेगा और अपना कीमती समय बर्बाद होने देगा ?
तभी दोनों की बातों के बीच श्यामू पहुँच गया . उसने कहा -वो लोग अगर अपनी जायदाद को सार्वजनिक नहीं करना चाहते ,तो न सही ! चलो , आज हम लोग तो अपनी संपत्ति का ब्यौरा जनता के बीच रख सकते हैं ! वैसे भी हम तीनों के पास किराए के तीन छोटे -छोटे दड़बेनुमा मकान हैं, मकान मालिक को नोटिस आ गयी है कि इन मकानों को तत्काल खाली कराओ , क्योंकि ये अवैध कब्जे की ज़मीन पर बनवाए गए हैं . संपत्ति के नाम पर हम तीनों के पास टूटे-फूटे बर्तनों के अलावा और कुछ भी तो नहीं हैं, कुछ फटे-पुराने कपड़ों के साथ एकाध लोहे की पुरानी पेटी और पिताजी की दी हुई सायकल !...और सबसे बड़ी संपत्ति तो हमारे ये दोनों हाथ और दोनों पैर हैं, जिनके बल पर हम रोज अपने घर -परिवार के लिए दाल-रोटी का जुगाड़ करते हैं. यही तो है अपनी संपत्ति . इसे सार्वजनिक करने में हमे कुछ भी संकोच नही है !
चाय की एक घूँट लेने के बाद द्वारिका ने कहा-- लेकिन हमारे माननीयों को इसमें इतना शर्माने की क्या ज़रूरत है ? जब हम जैसे मेहनतकश मजदूर तक अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने का साहस दिखा सकते है ,तो ऐसा वो क्यों नहीं कर सकते ? वो हमसे तो बहुत गरीब हैं , ऐसा उन्हें अपने भाषणों में कहते हुए हमने देखा भी है और सुना भी है .वो तो ये भी कहते हैं कि सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों का व्यक्तिगत जीवन भी पारदर्शी होना चाहिए . फिर वो इतनी ऊंची-ऊंची दीवारों के बीच रहते क्यों हैं ?
मजदूरों के बीच चर्चा चल ही रही थी कि तभी तेज अंधड का एक झोंका आया और दुखीराम का टपरा उड़ते-उड़ते बाल-बाल बचा ! मजदूर अपने घरों की तरफ चल पड़े और हमारे माननीय ,प्रातः स्मरणीय लोग गर्मी से बचने के लिए स्विट्ज़र लैंड की बर्फीली वादियों की ओर ! लगे हाथ वो अपना खाता भी वहाँ चेक करवा लेंगे , जिसके बारे हमारे इन बेचारे हरिश्चंद्रों को देश की जनता अब तक न जाने कितना भला-बुरा कह चुकी है !
(swaraj-karun.blogspot.com)
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