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कितना मूर्ख अरे तू मानव (साँस हमारी जहर बनेगी)

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on रविवार, 22 मई 2011 | 3:07 pm


मुझे खोदकर छोड़ दिए हो
सूखा हूँ मै संकरा इतना
शीतल मन ना- मै संकीर्ण
जरा नहीं -आँखों में पानी
जब खोदे हो उदर भरो तुम


मुझे खिलाओ मिटटी- पत्थर
मुंह मेरा जो खुला रहेगा
पेट हमारा होगा भूखा
सांस हमारी जहर बनेगी
विष ही व्याप्त रहेगा इसमें
काल बनूँगा कुछ खाऊँगा
कोई जानवर सांप कहीं तो
बच्चे भी मै खा जाऊँगा !!
तू भी जो गर मिला मुझे तो
उदर पूर्ति तुझसे कर जाऊं
राक्षस हूँ मै -भूखा दानव
कितना मूर्ख अरे तू मानव ??
चाहे कितने हों संशाधन
पास तुम्हारे तेरी सेना
गाँव गली के सारे जन
देख चुका कितनों को खाया
भूखा फिर भी ना भर पाया !!
कल सोनू स्कूल से लौटा
पांच का सिक्का उदर में मेरे
डाला जो -तो -भूख बढ़ी
लालच मेरी और बढ़ी
सोनू को मै बुला -लिटाया
देर हुआ जब बहना देखी
वो भी मेरे पेट में उतरी
उसका पति भी पीछे उसके
प्रेम बंधे-सब पेट में मेरे !
इतने पर भी पेट भरा ना
मै राक्षस हूँ -काल तुम्हारा
सोनू का भाई बड़ा दुलारा !
दौड़ा आ फिर पेट में उतरा !!
सब बेहोश किये – मै खेला
अट्टहास कर गरजा बोला
खा जाऊँगा जो आएगा
पेट अगर जो नहीं भरेगा
खोद कुआँ यूं ही मत छोड़े
बहरे कान फटे फिर जागे !!
पुलिस लिए सब दौड़े आये
चार -चार को धरा निकाला !
अस्पताल ले जा फिर रोये
सभी मरे सब को मै खाया !!
या पिंजौर देश काल कुछ
कौशल्या तट की हो बस्ती
मै बस देखूं अपना पेट
या मेरा तू पेट भरे – जा
या प्रिय का वलिदान दिए जा !
सूखा देख अगर जो छोड़े
मूरख -पानी -आँखों ले -ले !!
यह रचना एक सत्य घटना पर आधारित है पांच का सिक्का एक अंधे सूखे कुएं में गिर जाने के कारण बालक कुएं में जहरीली गैस का शिकार हुआ तो पीछे पीछे सारा परिवार प्राण की आहुति दे गया -कितने मूर्ख हैं हम इतने बार देख चुके- फिर भी न तो “बोर” को बंद करते हैं न “कुएं” को जब कोई बलि चढ़ जाता है तो बस बैठ के रोते हैं – आइये सब मिल इससे बचें और सब मिल कम से कम इसे घेर कर बच्चों और जानवरों का प्राण बचाएं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
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