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जो रावण है दुष्ट घूमता गला दबाते गलियों अपनी

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on गुरुवार, 5 मई 2011 | 8:07 am




पागल कोई फेंके पत्थर
घूरे चाहे गाली देता
दर्द हमारे दिल ना होता
पूत-आत्मा -कोई इन्शां
मानव कोई
शब्द घिनौने या 
जबान कडवी कह देता
सुनते ही कानो में शीशा 
पिघले तो दुःख होता
--------
जो रावण है दुष्ट घूमता
गला दबाते गलियों अपनी
लूट मार दे दुःख न होता
इक इन्शां जब गले मिले
फिर खंजर मेरी पीठ घोंपता
तो अपार  दुःख होता
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आग से तो हम वाकिफ भाई
जले जलाये उसका काम
घर जल जाये -दिल जल जाये
दर्द हमें कुछ भी ना होता
ना जाने क्यों
शीतल जल गंगा का पानी
जब उबले तो दर्द बढे है
तडपन बढती
साँस प्राण सब कुछ हर लेता
----------

सूरज घूमे तपे तपाये 
बेचैनी हो -माथे बहे पसीना 
धड़कन मेरी  बढती  फिर भी
लेश मात्र भी दर्द न होता
लेकिन चंदा और चांदनी
ममता शीतलता की मूरति
दिल में मेरे बसी सदा जो
थोडा  भी बेरुखी दिखाए  
रुष्ट हुयी तो
दर्द बहुत मेरा मन रोता
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ऊँचाई 'वो' चढ़े -झांकते
दूर दूर से मारे पत्थर
अपनी थोडा याद दिलाते
मै उनसे जब नैन मिलाऊं
रोड़ा बन आँखों में खट्कें
खून सनी भी आँखें मेरी
दर्द हमें बिलकुल ना होता
लेकिन कोई सुरमा काजल
आँखों का वो नूर हमारे
पुतली मेरी -
पलकों जो आशियाँ बनाये
नीड़ उजाड़े -टपके मोती
जल-जल जाता तो दुःख मेरा
फिर सहा न जाता

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
5.5.2011
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2 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

लेकिन कोई सुरमा काजल
आँखों का वो नूर हमारे
पुतली मेरी -
पलकों जो आशियाँ बनाये
नीड़ उजाड़े -टपके मोती
जल-जल जाता तो दुःख मेरा
bilkul sahi kaha surendra ji tab saha nahi jata.

prerna argal ने कहा…

पागल कोई फेंके पत्थर
घूरे चाहे गाली देता
दर्द हमारे दिल ना होता
पूत-आत्मा -कोई इन्शां
मानव कोई
शब्द घिनौने या
जबान कडवी कह देता
सुनते ही कानो में शीशा
पिघले तो दुःख होता
--------
जो रावण है दुष्ट घूमता
bahut sunder rachanaa.badhai aapko

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