ये इस बार स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त 2011) पर खुशी नही हो रही है, शायद इसलिये कि मेरी आँखे जो खुल गयीं हैं, आज़ादी कहीं दिखाई जो नही दे रही है। ना सच बोलने की आज़ादी, न सच लिखने की आज़ादी और ना ही सच देखने की आज़ादी, यहाँ तक कि अब तो भूखे रहने की आज़ादी भी छीन ली गयी है।
स्वतंत्रता और स्वतंत्र व्यक्ति तो कोई नही दिख रहा, दिख रहा है तो गुलामी और गुलामी के नये नये आकर्षक रूप, चाहे वो नेताओं की गुलामी हो, विचारधारा की गुलामी हो या विदेशी कम्पनियों की।
आज तो हर हिन्दुस्तानी देशभक्त हो गया है, और सारी की सारी देशभक्ति मोबाईल सन्देशों और फ़िल्मी गाने सुनने में ही लगी जा रही है। कहीं लोग झन्डे लिये बैठे हैं तो कहीं... 15 अगस्त 2011(Complete)
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