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हम तो हँसते जा रहे थे

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 4 अगस्त 2011 | 10:27 pm



जिंदगी के अब तो सारे पर्त खुलते जा रहे थे,
हम उनमें और भी यूँ ही उलझते जा रहे थे,
देखना होता किसी कोतो देख लेता दर्द मेरा,
हम यही सोचकर बस यूँ ही हँसते जा रहे थे॥


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1 टिप्पणियाँ:

Rajesh Kumari ने कहा…

देखना होता किसी को, तो देख लेता दर्द मेरा,
हम यही सोचकर बस यूँ ही हँसते जा रहे थे॥
bahut khoob dard ko jeena bhi ek alag ehsaas.

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