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“मै” मेरी खाल-मेरा ढोल (थाली बजाओ)

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on गुरुवार, 11 अगस्त 2011 | 10:31 am


दिल में उठा एक जूनून
जोश -खौलता खून
कलयुग की आंधी
is
श्वेत वस्त्र- एक टोपी-
खादी -सूखी रोटी
बड़ी लडाई लड़ते आया
मरते-मरते बचते आया
दो चार लोग पीठ ठोंक
आगे झोंक देते
हम देख लेंगे
पीछे हैं हम आप के
नगाड़ा पीटिये
ढोल बजाइए
थाली बजाइए
Anna-Rocks-Anna-Hazare-Jantar-Mantar
बहरों को जगाइए
आवाज बुलंद हो
संसद हिल जाए
जनता खिल जाए
जनता मालिक है
अपने पसीने की – खाने का
अधिकार है –
भूखे को अनशन का !
खुद बोया तो खुद काटे
काहे काले कौवों को बाँटें !
—————————
भीड़ जुटी -एक-दस-सौ -लाख
people1
रावण का पुतला जलाने को
तमाशा-राम और रावण
महाभारत बनाने को
दो मुहे सांप-मीडिया-बाजीगरी
————————————–
पर अगले कुछ पल थे भारी !
धमाका -धुंआ -धुन्ध
चीख पुकार द्वन्द
रावण – राक्षस बिखर गए !
रक्त-बीज बन -फिर
जम गए -थम गए !!
अँधेरे कोहराम धुन्ध के आदी थे
और उधर मैदान-ए-जँग में -बाकी थे
“एक” अभिमन्यु
चरमराता हमारा ढाँचा
मै -मेरी खाल-मेरी ढोल
जिसमे था बड़ा पोल
आवाज ही आवाज बस
पीछे मेरे दस लाख करोड़ से
करोड़ -लाख-दस जा चुके थे
कहाँ ये कंगाल के साथ कब रहे हैं ???
शिखंडी-दुर्योधन-धृत-राष्ट्र
बेचारी ये जनता ये अधमरा राष्ट्र
————————————–
और पानी की तेज बौछार
ने मेरी आँखें खोल दी
धूल चाटते कीचड में सना पड़ा मै
जन गण मन अधिनायक जय हे !!!
boy
गाता -कराह उठा !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
००.२३ पूर्वाह्न
१०.०८.२०११ जल पी बी
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1 टिप्पणियाँ:

vidhya ने कहा…

वाह बहुत ही सुन्दर
रचा है आप ने
क्या कहने ||

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