देवबंद की ईदगाह में क़ारी उस्मान साहब की इमामत में ईद की नमाज़ 9 बजकर 30 मिनट पर अदा हुई।
जामा मस्जिद में मौलाना सालिम क़ासमी साहब की इमामत में 9 बजे सुबह अदा हुई जबकि मस्जिद ए रशीद में सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर ही ईदुल फित्र की नमाज़ अदा की जा चुकी थी।
इस मौक़े पर शान्ति व्यवस्था के लिए पुलिस प्रशासन की ओर से उचित प्रबंध किए गए।
देवबंद की सरज़मीन प्यार मुहब्बत की सरज़मीन है। ईदगाह के बाहर ही बहुत से पंडाल लगाकर हिन्दू भाई बैठ जाते हैं और जैसे मुसलमान भाई नमाज़ अदा करके निकलते हैं तो वे उनसे गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा राजनीतिक पार्टियों के लीडर भी ईद मिलन के आते हैं और दिन भर अलग अलग जगहों पर ईद मिलन के औपचारिक और अनौपचारिक कार्यक्रम चलते ही रहते हैं बल्कि कई बड़े आयोजन तो कई दिन बाद तक होते रहते हैं।
इस साल भी प्यार मुहब्बत की यही ख़ुशनुमा फ़िज़ा देखने में आ रही है। कोई हिन्दू भाई अपने मुसलमान दोस्तों के घर ईद मिलने जा रहा है और कहीं कोई मुसलमान अपने हिन्दू दोस्तों के घर शीर लेकर जा रहा है और उसका मक़सद उनकी मां से दुआ प्यार पाना भी होता है।
दुनिया भर में देवबंद की जो छवि है, वह यहां आकर एकदम ही उलट जाती है।
बड़ा अद्भुत समां है।
आम तौर पर कुछ लोग कहते हैं कि धर्म नफ़रत फैलाता है और अपने अनुयायियों को संकीर्ण बनाता है लेकिन ईद के अवसर पर हर जगह यह धारण ध्वस्त होते देखी जा सकती है और देवबंद का आपसी सद्भाव देख लिया जाए तो बहुत लोग यह जान जाएंगे कि इंसान को इंसान से जोड़ने वाली ताक़त सिर्फ़ धर्म के अंदर ही है।
जो लोग धर्म के बारे में लिखने पढ़ने के शौक़ीन हों या फिर वे सामाजिक संघर्ष के विराम पर चिंतन कर रहे हों, उन्हें चाहिए कि वे एक नज़र देवबंद के हिन्दू मुस्लिम रिलेशनशिप का अध्ययन ज़रूर कर लें।
आगरा में अगर पत्थर का ताजमहल है तो यहां सचमुच मुहब्बत का ताजमहल है।
हिंदू मुस्लिम की मुहब्बत का ताजमहल है देवबंद।
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