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यहाँ देश धर्म करते करते, मैं चलते चलते ठहर गया,
भारत को एक करते करते, मैं ही टुकड़ों में बिखर गया,
अरे मेरा भी इक जीना था, बहता जो खून पसीना था,
इस धरती की सेवा करते, बहते बहते बस निकल गया॥
जो निकल गया सो निकल गया, इस आज़ादी की राहों में,
उसकी सोचो जो तेरी रगों में, बहता बहता ही सूख गया,
अब जाग और पहचान मुझे, हे देशभक्त, क्या पता तुम्हें?
बोला सुभाष, लड़ते लड़ते इस धरा से कब मैं चला गया?
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