महापुरूषों के जन्मदिन क्यों मनाए जाते हैं ?
अलग अलग लोग इसके अलग अलग कारण बताएंगे।
जो कारण मैं समझा हूं वह यह है कि ऐसा करके लोग उन्हें याद रखना चाहते हैं।
इस मौक़े पर उनके जीवन से संबंधित झांकियां भी निकाली जाती हैं।
इनके ज़रिये से उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं को सामने लाना होता है।
ये झाकियां मात्र मनोरंजन के लिए नहीं बनाई जाती हैं जैसा कि आम तौर पर समझ लिया जाता है।
महापुरूषों का जीवन सामने लाने का मक़सद यही होता है कि उनके पदचिन्हों पर चला जाए।
श्री कृष्ण जन्म अष्टमी हमारे सामने है।
लोग सजावट और मेहमानदारी के लिए ख़रीदारी में लग गए हैं। यह सचमुच एक ज़रूरी काम है लेकिन उससे भी बहुत ज़्यादा ज़रूरी है श्री कृष्ण जी के जीवन को समझना।
उनका जीवन हिंदुओं के साथ साथ मुसलमानों को भी शुरू से ही आकर्षित करता रहा है। हम भी उनका आदर दिल से करते हैं और उनके बारे में किसी भी अनुचित और अश्लील कथा को सही नहीं मानते।
श्री कृष्ण जी का काल आम तौर पर 5 हज़ार साल पुराना माना जाता है और उनके बारे में लिखे गए ग्रंथ उनके हज़ारों साल बाद लिखे गए हैं बल्कि अब तक लिखे जा रहे हैं। हरेक लेखक के कथन को सत्य माना जाए तो उनका वास्तविक चरित्र कभी सामने नहीं आएगा।
उनके काल में लोग ईश्वर को छोड़कर आर्य राजा इन्द्र की पूजा करने लगे थे। वह उनसे बेगार कराता था और उनका सारा उत्पादन बिना कोई शुल्क चुकाए ही हड़प लेता था। लोग उसके ज़ुल्म की वजह से उसका प्रतिरोध भी नहीं कर पाते थे। ऐसे समय में श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया और उसकी पूजा रूकवा दी और जब उसने लोगों को डुबाकर उनकी हत्या कर देनी चाही तब भी श्री कृष्ण जी ने ही उनकी रक्षा का उपाय किया।
ऐसे थे हमारे श्री कृष्ण जी !
उन्होंने जब यह आदर्श प्रस्तुत किया तो केवल हिन्दुओं के लिए ही प्रस्तुत नहीं किया था बल्कि मानव मात्र के लिए प्रस्तुत किया था। उनके प्रयासों से इन्द्र की पूजा तो लगभग बंद सी ही हो गई लेकिन अन्य बहुत सी चीज़ों की पूजा उनके बाद शुरू कर दी गई बल्कि ख़ुद उनकी ही पूजा शुरू कर दी गई। इस तरह उनके मिशन को विपरीत धारा में मोड़ दिया गया।
इसी के साथ उनके जीवन से प्रेरणा लेना भी बंद कर दिया गया वर्ना आज भारत की धरती में भ्रष्टाचारी एमएलए , एमपी और नेता मौजूद न होते।
मंदिर बनाने का मिशन भी श्री कृष्ण जी का मिशन नहीं था। उन्होंने आजीवन किसी का भी कोई मंदिर नहीं बनवाया। जब मंदिर ही नहीं बनवाया तो वहां धन संपत्ति का भंडार भी नहीं हुआ और उनके समय में धन का प्रवाह होता रहा। जिसके नतीजे में उनके राज्य में दूध घी की नहरें बहती रहीं।
श्री कृष्ण जी की मूर्ति भी उनकी याद में और उनके बाद में बनाई गई और उनके मंदिर भी उनकी याद में और उनके बाद में बनाए गए।
उनकी मूर्ति और उनके मंदिर बनाने न बनाने पर हमें आज कुछ भी नहीं कहना है लेकिन हम यह ज़रूर कहेंगे कि श्री कृष्ण जी की जन्म अष्टमी के इस अवसर पर हम यह देखें कि हम उनके पद चिन्हों पर चल रहे हैं या उनके विपरीत चल रहे हैं ?
अगर हम श्री कृष्ण जी की प्रेरणा को अपने मन में स्थिर नहीं करते तो फिर हमारा नाचना गाना हमें उनसे हरगिज़ नहीं जोड़ पाएगा।
त्यौहारों को उनकी मूल भावना से काट दिया जाए तो फिर वह मात्र मनोरंजन बनकर रह जाता है और फिर वह एक आडंबर की शक्ल ले लेता है। भारतीय त्यौहारों को उनकी मूल भावना के साथ मनाया जाए तो भारत से भ्रष्टाचार और ग़रीबी का ख़ात्मा हो सकता है।
महापुरूष कोई भी हो उसके चरित्र के बारे में कोई भी अनुचित बात स्वीकार न की जाए और महापुरूषों को हिन्दू मुस्लिम के दायरे में बांटकर न देखा जाए।
जब उन महापुरूषों ने ख़ुद नहीं कहा कि हमें बांटकर मानना तो फिर उन्हें बांटा क्यों जा रहा है ?
यह एक नाज़ुक विषय है लेकिन भारतीय जनमानस आस्था प्रधान है और महापुरूषों के सही जीवन चरित्र को उसके सामने लाना भी हमारा कर्तव्य है।
कोई आदमी यह समझे कि वह जीवन और जगत के सत्य को मात्र अपनी बुद्धि से समझ लेगा तो यह उसका भ्रम है।
कोई आदमी यह समझे कि वह कर्तव्य-अकर्तव्य और सफलता के मार्ग को महज़ अपनी बुद्धि से पा सकता है तो यह उसकी ग़लतफ़हमी है।
महापुरूषों के जीवन चरित्र को जाने बिना उसे सत्य का ज्ञान कभी नहीं हो सकता। इसीलिए सभी सभ्यताओं में महापुरूषों की शिक्षाओं को अपनी हद तक सुरक्षित रखने का प्रयास भी किया गया और उन्हें बराबर याद रखने के लिए ही पर्व और त्यौहार की व्यवस्था भी की गई।
इस जन्म अष्टमी पर हमें श्री कृष्ण जी के चरित्र पर विचार करते हुए उस सत्य का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए जिसके लिए उन्होंने आजीवन प्रयास किया और इसी प्रयास में उन्होंने अपनी जान तक क़ुर्बान कर दी।
उनकी महान क़ुर्बानियों को याद करने का अवसर है जन्माष्टमी का त्यौहार !
यह हमारे जज़्बात हैं और विनम्र विनती है कि इसे हिंदू मुस्लिम की विभाजनकारी संकीर्ण दृष्टि से न देखा जाए।
श्री कृष्ण जी हमें भी प्रिय है और हम भी उनका आदर करते हैं। उन्हें आदर देने की रीति में अंतर मिल सकता है। जैसे कि हिंदू कहलाने वाले भाई अपने माता पिता को आदर देने के लिए उनके पैर छूते हैं लेकिन मुस्लिम कहलाने वाले भाई उनके पैर नहीं छूते लेकिन दिल से अपने माता पिता का आदर दोनों ही करते हैं।
यह भी एक अनोखा मंज़र है जबकि सभी हिंदी ब्लॉगर्स जन्माष्टमी मिलकर मना रहे हैं
‘ब्लॉगर्स मीट वीकली 5‘ में।
आप भी इसके साक्षी बन सकते हैं और आप इसमें शामिल भी हो सकते हैं। यहां आपको जन्माष्टमी के संबंध में सभी के बहुत से लेख भी मिलेंगे।
1 टिप्पणियाँ:
shri krushna janmaashtami kee aapko bhi badhaaiyan !!
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Thanks for your valuable comment.