अब तो बंदे मातरम् के.......ड़ा श्याम गुप्त ...
अब तो बंदे मातरम् के गान से भी,
धर्म की निरपेक्षिता खतरे में है |
शूरवीरों के वो किस्से -कथाएं ,
अब भला बच्चों से कोई क्यों कहे
देश सारा खेलता अन्त्याक्षरी,
बस करोड़ों जीतने के ख्वाब हैं |
व्यर्थ की उलझन भरे हैं सीरियल,
पात्र सारे बन गए बाज़ार हैं ||
नक़ल चलती अक्ल का है काम क्या ,
सेक्स, हिंसा, द्रश्य पारावार है |
अंग्रेज़ी नाविल व फ़िल्में चल रहीं ,
रो रहा साहित्य का बाजार है ||
धर्म संस्कृति का पलायन होरहा,
अर्थ-संस्कृति का हुआ है अवतरण |
चंद सिक्कों के लिए हों अर्ध नग्ना,
बेचतीं तन नारियाँ, औ नर वतन ||
धर्म संस्कृति राष्ट्र की थाती गयी ,
शेयरों की नित नई ऊंचाइयां |
नक़ल की संस्कृति बढ़ावा पारही,
राष्ट्र संस्कृति देश की रुसवाइयां ||
हर तरफ हैं लोग दिखते ऊंघते,
या कि सोते, हर कुए में भांग है |
शौर्य -गाथाएं पढ़े गायें लिखें ,
यह तकाजा है समय की मांग है ||
शिवा राणा आन, हठ हम्मीर की ,
आज फिर से कृष्ण की, रघुबीर की |
धर्म दर्शन वेद और पुराण की,
है जरूरत फिर नए संग्राम की ||
उठो, ऐ प्यारे वतन के वासियों !
नींद छोडो, चमन में खतरा खडा |
अस्मिताएं अमन खतरे में सभी,
मान, सुख-सम्मान खतरे में पड़ा ||
शूरवीरों के वो किस्से, कहानी,
पुत्र से कोई पिता कैसे कहे,|
अब तो वंदे मातरम् के गान से ,
धर्म की निर्पेक्षिता खतरे में है ||
2 टिप्पणियाँ:
sahi kahaa jnaab log vndemaatram ko bi nafrat or zid kaa hthiyar bnakr pesh kar rhe hain .akhtar khan akela kota rajasthan
धन्यवाद अकेला जी....
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.