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मोहब्बत का अंजाम

Written By तरूण जोशी " नारद" on शुक्रवार, 23 सितंबर 2011 | 8:51 am


















जो मैंने चाहा नही वोअंजामहो गया
मेरी तमन्नाओं का ये क्या मुकां हो गया,
मेरी जान  रूह सिमटी थी एक आहट में
और वो आहट बसी थी केवल तेरी ही चाहत में,

चाहके भी तुमको हम पा ना सके
दाग लग गया दामन बचा ना सके,
छींटे जो लग उडे रंग--मोहब्बत के
चाह के भी खुद को हम छिपा ना सके,

जब भीग ही गये तो मजा डूब के लिया
वो मजा भी पूरा हम पा ना सके,

डूबते को तिनके ने सहारा दे दिया
इसी के साथ मुझे उसी ने बेसहारा किया,
ले गया मुझको दूर वो किनारे से
ना डूब में सका ना सुखने दिया,

तुम जो सोचो कि नारद तिनके का कद्रदान हैं
ये ना सोचो कि तिनके में मुझे ख्वाबगाह मिला,
सच है कि तिनका मेरा कब्रगाह है बना

ये कहानी बयां कर रहा हुँ आज मैं बेटू
ये समझना ना कि बेवफ़ा था स्वीटू

मैं तुमसे दूर होके अकेला हूं अधूरा हूँ,
तुमसे ही मैं पूरा हूँ
बस जिन्दगी में तेरी ही ख्वाईश रखी
तेरे सिवा अब ना कोई ख्वाईश रही,

तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
यादों में जी रहा हूँ , मेरी सांस छूट गई!


"नारद"
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3 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
यादों में जी रहा हूँ , मेरी सांस छूट गई!

क्या कहने, बहुत सुंदर

तरूण जोशी " नारद" ने कहा…

dhanywad srivastav ji

तरूण जोशी " नारद" ने कहा…

इस सम्मान के लिए धन्यवाद प्रेरणा जी

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