दुःख ही दुःख का कारण है
दिल पर एक बोझ है
मन मष्तिष्क पर छाया कोहराम है
आँखों में धुंध है
पाँवो की बेड़ियाँ हैं
हाथों में हथकड़ी है
धीमा जहर है
विषधर एक -ज्वाला है !!
राख है – कहीं कब्रिस्तान है
तो कहीं चिता में जलती
जलाती- जिंदगियों को
काली सी छाया है !!
फिर भी दुनिया में
दुःख के पीछे भागे
न जाने क्यों ये
जग बौराया है !!
दिल पर एक बोझ है
मन मष्तिष्क पर छाया कोहराम है
आँखों में धुंध है
पाँवो की बेड़ियाँ हैं
हाथों में हथकड़ी है
धीमा जहर है
विषधर एक -ज्वाला है !!
राख है – कहीं कब्रिस्तान है
तो कहीं चिता में जलती
जलाती- जिंदगियों को
काली सी छाया है !!
फिर भी दुनिया में
दुःख के पीछे भागे
न जाने क्यों ये
जग बौराया है !!
यहीं एक फूल है
खिला हुआ कमल सा – दिल
हँसता -हंसाता है
मन मुक्त- आसमां उड़ता है
पंछी सा – कुहुक कुहुक
कोयल –सा- मोर सा नाचता है
दिन रात भागता है -जागता है
अमृत सा -जा के बरसता है
हरियाली लाता है
बगिया में तरुवर को
ओज तेज दे रहा
फल के रसों से परिपूर्ण
हो लुभाता है !!
गंगा की धारा सा शीतल
हुआ वो मन !
जिधर भी कदम रखे
पाप हर जाता है !!
खिला हुआ कमल सा – दिल
हँसता -हंसाता है
मन मुक्त- आसमां उड़ता है
पंछी सा – कुहुक कुहुक
कोयल –सा- मोर सा नाचता है
दिन रात भागता है -जागता है
अमृत सा -जा के बरसता है
हरियाली लाता है
बगिया में तरुवर को
ओज तेज दे रहा
फल के रसों से परिपूर्ण
हो लुभाता है !!
गंगा की धारा सा शीतल
हुआ वो मन !
जिधर भी कदम रखे
पाप हर जाता है !!
(फोटो साभार गूगल से)
भंवर है
पर एक किनारा है
-जहाँ शून्य है
आकाश गंगा है
धूम केतु है
पर चाँद
एक मन भावन
प्यारा सा तारा है !!
शुक्ल भ्रमर ५
29.05.2011 जल पी बी
29.05.2011 जल पी बी
13 टिप्पणियाँ:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
-जहाँ शून्य है
आकाश गंगा है
धूम केतु है
पर चाँद
एक मन भावन
प्यारा सा तारा है bahut sunder prastuti .dukh hi dukh ka karan hai bilkul sahi kaha aapne.badhaai aapko.
please visit my blog and feel free to comment.thanks
आदरणीया वंदना जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद -एक लेखक और कवि को उसकी रचनाओं के प्रति सार्थक टिपण्णी मिले और प्रोत्साहन मिले तो अत्यंत प्रसन्नता होती है हम अवश्य ही चर्चा मंच पर आयेंगे -आशा है आप अपने सुझाव , समर्थन , स्नेह इसी तरह देती रहेंगी तो बात और बनेगी -
साभार -
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर जी--- दुख ..दुख का कारण कैसे हो सकता है? फ़िर .पहले दुख का क्या कारण है...और उससे पह्ले...एक अन्तहीन उत्तर्हीन प्रश्न होता रहेगा...
--वस्तुत:तथ्य विपरीत है-- कथन है "सर्व सुखम दुख:"-- सारे सुख ही दुख की मूल हैं जो न प्राप्त होने पर दुख की उत्पत्ति करते हैं।
दुःख ही दुःख का कारण है
दिल पर एक बोझ है
मन मष्तिष्क पर छाया कोहराम है
आँखों में धुंध है
पाँवो की बेड़ियाँ हैं
हाथों में हथकड़ी है
सटीक बात कही है ..
काव्य-कला के अनुसार---कविता के विषयभाव व कथ्य..आपस में सम्बद्ध नहीं है...टुकडों-टुकडों में बंट्कर...किसी विचार-प्रवाह को इन्गित नहीं करते....तारतम्यता का अभाव हैं...
प्रिय श्याम जी -जैसा आप ने लिखा यदि दुःख दुःख का कारण है तो पहला दुःख कहाँ से आया ? ये तो वही अंडा पहले आया या मुर्गी वाली बात है जिसका समाधान कर पाना हमारे आप के बस की बात शायद नहीं -दुःख ही दुःख का कारण है अंतहीन और उत्तरहीन प्रश्न तो हमारे सामने ऐसे कई होते है -जिसे समझ अपने मस्तिष्क को समझाना होता है -आज अरबों साल खरबों साल पहले ये हुआ वो हुआ शायद आप सुनते हैं मानते भी होंगे ?
-
सुख ही दुःख का कारण नहीं है अगर आप के पास सुख है तो दुःख की कामना क्यों ? कौन चाहेगा दुःख भोगना और उसे लाना ? हां आप की और आगे सुख भोगने की लालसा -आगे के स्वप्न दुःख का कारण हो जायेंगे -यदि आप अपने सुख से संतोष नहीं प्राप्त करेंगे तो -संतोषम परम सुखं -इसलिए सुख सुख नहीं है संतोष ही सुख है -और यादे संतोष है तो आप को दुःख कैसा ?
दुःख ही दुःख का कारण है -कोई गरीब पैदा होता है जिसने सुख देखा ही नहीं -कल्पना भी नहीं किया सुख का -सूखी रोटी मिली जिन्दा लाश -दुःख पनपता गया बुरे कर्म शुरू -अनाथ-आवारा-अच्छे बनने का ख्वाब तक नहीं -कोई उसे सहारा देने वाला नहीं -कोई दिशा देने वाला नहीं की दुःख के पीछे मत भाग हे मानव -संतोष के पीछे भाग -गतिशील बन -धनात्मक बन -जितनी चिंता करेगा दुःख का अनुभव करेगा दुखी होगा -निराश होगा -तेरे हाथ पैर की ये ठठरी कंकाल सी बिस्तर पर बस पड़ी रहेगी -दो जून का भोजन तक नहीं नसीब होगा -सुख की बात तो दूर सुख की बात तू क्या करेगा , सुख तेरे पास फटकेगा भी नहीं फिर दुःख कहाँ से आएगा ??
इसलिए सुख से ही दुःख नहीं आता श्याम जी -सुख की लालसा ,लालच ,तमन्ना भूखी प्यास बढ़ते जाने से दुःख पनपेगा -
इसलिए हे प्यारे दुःख मत कर दुःख के पीछे मत भाग -जितना उसकी सोचेगा उसके पीछे भागेगा दुःख बढेगा -रौशनी के पीछे भाग उजाला कर उजाला पा -सुख की कामना कर ले -पा ले -जो अपना हाथ पैर चला पाए खड़ा हो पाए तो -
आदरणीय श्याम जी इस मुद्दे पर लम्बी प्रतिक्रिया फिर होती रहेगी ---हमें समाज की वस्तु स्थिति देख भी कुछ करना है न की धर्म शास्त्र में लिखा ही केवल उद्धरति करते रहने से -
आभारी है हम आप की समीक्षा के लिए -
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
डॉ श्याम जी -जब आप इसे ध्यान से पढेंगे तो ये टुकड़े जुड़ जायेंगे -तारतम्यता आ जाएगी-भाव प्रवाह होगा -आज के समाज के प्रति एक नयी सोच का आह्वान होगा -क्या करने से क्या हो सकता है वो इसमें दर्शाया गया है - हमारा दुःख जब हम दुःख के पीछे भागते दिन रात सोचते बढ़ते चले जाते हैं संवेदन शून्यता आ जाती है तो वो किस कदर आप के मन मस्तिष्क हाथ पैर को जकड़ते चला जाता है और हमारा ये दुःख चिंता से चिता तक पहुंचा देती है -
शुक्ल भ्रमर ५
आदरणीया संगीता जी नमस्कार
रचना दुःख ही दुःख का कारण है में -भाव उजागर हुए और सटीक लगे विषय के सुन हर्ष हुआ -
धन्यवाद आप का
शुक्ल भ्रमर ५
नहीं ..भ्रमर जी ये आपकी सारी कहानी ही भ्रमित है एवं गलत है....यहां अन्डा व मुर्गी पहले की कोई समस्या नही है....भला दुख के पीछे कौन भागता है किसी को देखा है कभी, एक दम मूर्खतापूर्ण कथन है....कुछ शब्दों को,वाक्यों को याद कर लेने से ..दुहराने से कोई दार्शनिक नहीं बन जाता....आजकल के दौर मे एसा ही बहुत चल रहा है..साहित्य में, धर्म में.. अखबार में...समाज में क्योंकि अधिकान्श टिप्पणीकार ..तथाकथित साहित्यकार, कवि, पत्रकार अत्यल्प ग्यान वाले हैं...तात्विक ग्यान व अनुभव से परे...अत: कविता में विश्व-मान्य तथ्यों, प्रामाणिक तथ्यों की अनदेखी की जारही है....
----लालसा, इच्छा, लिप्सा---ही दुख के कारण हैं...पर ये कहां से उत्पन्न होते हैं...सुख के अनुभव से...
--अधिक जानकारी के लिये....
१-सान्ख्य.के अनुसार-------मनुष्य- अपने ग्यान व भोग की वस्तुओं को ही अपना लक्ष्य मान लेता है और काम, क्रोध, मद, मोह आदि में ही आनंद प्राप्त करता है। यही दुख का कारण है...
२-बहादुरगढ बाला जी मंदिर में महंत गोपाल दास -- सांसारिक वस्तुएं जीवन के दुख का कारण है...
३--सुख को अपनाने की लालसा ही दुख का कारण--- प्रख्यात संत आनंददेव टाट बाबा ..
४-अष्टाबक्र-गीता...जनक... दुख का मूल द्वैत है....
५—पातन्जलि योग...गुणों की वृत्तियों के परस्पर विरोधी होने के कारण, सुख भी दुख ही है...
५-हिन्दी नेस्ट--ब्लोग -- जैसे ही वह एक वस्तु को प्राप्त करता है यह अपने साथ अन्य दुखों को ले आती है ....
६---बाह्य भौतिक सुख ऊपर से अच्छे लगते हैं,किन्तु उनके भीतर झांकिए, तो पता लगता है कि बिना अध्यात्म के यह भौतिक सुख,दुख का कारण बन गया ....पातन्जलि योग सूत्र.
७-------सुख की आशा ही दुख का कारण पंडित देवकीनंदन माठोलिया
---दुख दुख का कारण है ...कहीं उद्धरित हो तो बतायें...
डॉ श्याम जी नमस्कार आप के विचार और यहाँ वहां बाबा और मंदिर आदि से लिए गए उद्धरण अच्छे हैं किसी चीज के एक से अधिक कारण हो सकते हैं होते हैं आप ने जीवन में अनुभव भी किया होगा और करेंगे भी सुख के कारन भी दुःख होता है तृष्णा लालसा लिप्सा अधिक सुख भोगने की कामना न पूरी होने पर भी दुःख होता है दुःख ही दुःख का कारण भी होता है अब वो पहला दुःख हो सकता है सुख से आया या दुःख से ये तो आप से महान पूर्व जन्म को देखने वाले दार्शनिक ही बता सकते है की उससे पहले फिर उससे पहले .... यहाँ वहां लिखने वाले भी कब कहाँ किस अर्थ में क्या लिखे गए हैं समीक्षा होती रहती है उसी का विरोध होता है उसी का समर्थन -बहुत जरुरी होता है ये समझना की कौन क्या चीज उभारना चाहता है क्या लिखना चाहता है कुछ स्वतंत्र मन से समाज के हित में समाज की कमियों को एक दिशा में ले जाने को जरुरी नहीं की हम लकीर के फकीर बने रहें जो पहले लिखा वही गाते रहें -
आप ने जो लिखा आज कल लोग इधर उधर कुछ भी लिख रहे कुछ कर रहे सब अपने आप में अद्भुत और अजूबा है और फिर दर्शन शास्त्र समझाने के लिए आप से भी हैं ही -साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय -खोजिये आप को मोती मिलेगा उसमे भी
शुक्ल भ्रमर५
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Thanks for your valuable comment.