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कुछ मिले न मिले, पर सुकून मिलता है

Written By Brahmachari Prahladanand on रविवार, 28 अगस्त 2011 | 7:35 pm

कुछ मिले न मिले, पर सुकून मिलता है,
खुदा की इबादत से, हर जूनून मिलता है,
खोजते थे जिसे बेतहाशा, इल्म मिलता है,
रुक गया कारवाँ अब, मकाँ यूँ मिलता है,

न पशु-ओ-मन में, अब भड-भड़ाहट-सी होती है,
रुक गया, मर गया मन, अब तो दुआ होती है,
है फितरते जहान में, सब सलाहियत होती है,
न किसी से दोस्ती, न दुश्मनी अब तो होती है,

इस तरह वक्त का पल-पल गुज़रता है,
जैसे वक्त रुका हो, अब न सरकता है,
आखों के दरमियाँ, अब बस दुआ है,
बाकी अब कुछ नहीं, अब बस खुदा है,

अब न तुलुखुशवार है, किसी से ज़माने में,
सब मसरूफ हैं, किसी-न-किसी फ़साने में,
न अब किसी से मिलते, यूँ अब ज़माने में,
बस दुआ सबके लिए, करते इसी बहाने में,

                                                       ------- बेतखल्लुस



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