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भ्रष्टाचार

Written By Pallavi saxena on बुधवार, 24 अगस्त 2011 | 8:01 pm

आज जहाँ देखो वहाँ एक ही नारा है भ्रष्टाचार मिटाना है । आज हर कोई बच्चा हो या बूढ़ा अन्ना हज़ारे हम तुम्हारे साथ है का नारा लगता हुआ ही मिलता है, न सिर्फ सड़कों पर बल्कि facebook ,twitter सभी जगह बस एक ही बात है जन लोक पाल बिल के समर्थन मे सभी का वोट है। जो लोग इंडिया से बहार हैं। वह facebook  और टिवीटर जैसे websites पर जाकर अपने प्रोफ़ाइल में अपने फोटो के ऊपर समर्थन का चित्र चिपका का कर खुद को इस लड़ाई के समर्थन में शामिल कर रहे हैं जिन में से मैं भी एक हूँ। आज कल पूरे भारत में बस एक ही हवा है अन्न हम तुम्हारे साथ है जो लोग लोक पल बिल के बारे में कुछ भी नहीं जानते वो भी आज की तारिक में अन्न के साथ है क्यूँ ? ज़हीर सी बात है क्यूंकि अब तो वो भी भ्रष्टाचार से बुरी तरह तंग आ चूके हैं। और किसी भी हालत में इस भ्रष्टाचार रूप से राखशस से छुटकारा पाना चाहते हैं।  कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें  शायद इस बात से कोई फेर्क ना पड़ता हो मगर आज की तारीख का यह सब से गरम मसला है इसलिए जैसे लोग किसी की हाँ में हाँ मिलते हैं वैसे ही कुछ लोग सुर में सुर मिला रहे हैं। 
इस विषय पर बहुत ने बहुत कुछ लिखा और अब भी लोग लिख ही रहे हैं । तो मैंने भी सोचा की चलो में भी इस विषय में कुछ लिखने का प्रयास करती हूँ वैसे मेरे पास इस विषय में लिखने को ज्यादा कुछ है नहीं क्यूंकि जो कुछ भी है वो सभी मीडिया ने पहले ही गा रखा है। वैसे भी देखा जाये तो जब कभी कोई मुदा अपने पूरे ज़ोर पर हो तो उस पर लिखने का कोई मतलब नहीं निकलता मुझे तो ऐसा लगता है, जो सब कहा रहे हैं वो ही मैं भी बोल रही हूँ उस में क्या नया है। बात तो तब बनती है जब आप उस विषय पर कुछ लीग से हट कर कहो या लिखो मगर आज कल लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के इतने सारे साधन हो गये हैं कि जब तक आप कुछ अलग सोचो तब तक तो वो बात किसी न किसी और माध्यम से लोगों तक पहुँच ही चुकी होती है और उसका सब से बड़ा और प्रभाव शाली माध्यम है मीडिया, और उस में भी खास कर सारे news chennel जो राई का पहाड़ बनने में उस्ताद होते हैं । 
कहा जा रहा है की अन्न गांधी का दूसरा जन्म है ,और उन्ही की रहा पर चलने वाले गांधी वादी नेता है जो अहिंसा में विशवास रखते हैं । इसलिए अनशन पर बैठे हैं। आज कि तारीख में अन्ना आम आदमी कि आवाज हैं। और हमरे देश को आज गांधी वादी तेवरों कि ही जरूरत है। 74 वर्षीय इंसान आज भूखा प्यासा देश के लिए लड़ रहा है।  देश वसीयौन के लिए लड़ रहा है।  उनको न्याय मिल सके इस लिए लड़ रहा है। मुझे तो याद नहीं की मैं आखिर बार कौन सा ऐसा दिन था।  जब पूर्णरूप से भूखी रही होंगी मगर आज उनको 8दिन हो गये बिना कुछ खाये पिये वकाइन "बंदे में है दम वंदे मातरम" उनके इस प्रयास के लिए उनको शत-शत प्रणाम की आज उन की वजह से देश को आवाज मिली देश के नौजवान पीढ़ी को भी यह एहसास हुआ की अपने देश के प्रति उनका भी कोई कर्तव्य है।  मगर मेरी समझ में यह नहीं आता की आज लोग कह रहे हैं की अन्न देश की आवाज हैं सही है आज की तारीख में यही सच है मगर देश की आवाज बूढ़ी क्यूँ है।  भले ही आज उस आवाज से नयी और जवां आवाज़े जुड़ कर उस से एक मजबूत आवाज बनना रही हों मगर सवाल यह है की यह आवाज भी उठी तो इतनी देर बाद क्यूँ? पहले किसी और को समझ नहीं आई यह बात क्यूँ खुद अन्ना ने गाइड नहीं किया औरों को माना के कोई भी क्रांति खुद बख़ुद नहीं आती है उसे लाना पड़ता है और लाने के लिए भी कोई चाहिए। और वही काम कर रहे हैं अन्ना इसलिए आज पूरा देश उनके समर्थन में है। मैं भी, मगर क्या शाला में अनुशासन तभी होना चाहिए जब शोर मच रहा हो, बिना शोर के अनुशान होने के कोई मायने नहीं होते हैं क्या ? और यदि होते हैं तो फिर अन्ना ने यह अनुशासन लाने में इतनी देर क्यूँ करदी की "अमर बेल रूपी भ्रष्टाचार ने विशाल नदी रूपी देश में अपनी पूरी जड़ें फाइलादी" खैर इसका मतबा यह नहीं कि मुझे इस बात से कोई  समस्या या किसी प्रकार कि कोई आपत्ति है। क्यूंकि यदि ऐसा होता तो आज में खुद अन्ना के साथ नहीं होती । मुझे तो गर्व है इस बात पर कि आखिर कोई तो आज भी इस देश में जिसे सच में देश कि चिंता है देश वासियों कि चिंता है। बस कुछ सवाल उठे थे ज़्हेन में तो सोचा के आप सब के बीच रखून बाकी तो जैसा मैंने कहा मैंने खुद भी अन्ना के साथ हूँ। इसलिए श्री रूप चंद्र जी मयक की लिखी कुछ पंक्तियाँ मुझे यहाँ लिखना ठीक लग रहा है की गीता,
 "अन्न जी को ताकत देना लोकपाल को लाने की,
 आज जरूरत जन-गण-मन के सोये भाव जगाने की "

 यहाँ मुझे एक और मशहूर लेखक दूषियंत कुमार की कुछ और पंक्तियाँ भी याद आरही है।   कुछ  इस तरह हैं। 

"सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है,
सारी कोशिश है की यह सूरत बदलनी चाहिए ,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सिने में सही ,
हो कहीं भी यह आग ,मगर आग जलनी चाहिए"
जय हिन्द .... 

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2 टिप्पणियाँ:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुनदर ढंग से आपने अपने भावों को अभिव्यक्त किया हे। भ्रष्टाचार से पूरे भारत की जनता त्रस्त है। अगर एक आवाज उठी और वह भी इतनी बुलन्द उस भ्रष्टाचार के ख़िलाफ तो तो उस आवाज़ में आवाज़ मिलाना हम भारतीयों का परम कर्त्तव्य बन जाता है। सब शुभ हो। आमीन

एक स्वतन्त्र नागरिक ने कहा…

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सिने में सही ,
हो कहीं भी यह आग ,मगर आग जलनी चाहिए"
सार्थक रचना.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक विचार हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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