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अभी मटकते जाती जो है – नदिया तीरे हलचल करती

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 18 मई 2011 | 5:56 pm


जेठ की दुपहरी से त्रस्त लोग बेचैन हों पारा गरम हो तो मन मुटाव लडाई झगडा और पनपते हैं यहाँ अब तो जरुरत है पौंशाला लगाया जाय-शीतल जल -मधुर पेय पिलाया जाय थोडा दान पुन्य करने से मन खुश होगा -जिसका भी मन शीतल होगा वह कुछ तो आशीष देगा ही ऊपर न सही मन से ही सही -मन में ख्याल आया की थोडा विश्राम किया जाय साये में किसी वट वृक्ष के बैठ -यमुना के किनारे तो -मधुर माधुरी रंग कुछ बरस पड़े -
थोडा कुछ हट के आप सब को शीतल करने की ख्व्वाहिस में -छवि माँ राधा और श्याम की लगी है सुन्दरता के लिए कृपया अन्यथा न लें -
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(फोटो साभार नेट /गूगल से लिया गया )
अभी मटकते जाती जो है – नदिया तीरे हलचल करती
मेरी बीबी बड़ी विनोदी
हर पल मुझको छेड़े-
घन -घन घंटी कभी बजाकर
ध्यान हमारा तोड़े
गागर में सागर तू भर दे
श्याम हमारे – साजन मोरे
कह के माला फेरे
मन का कवि हूँ
मै सब समझूं
हमको- काला-कह के -कह के
चुटकी ले –है- नाचे
मै बोला -फिर-शुरू हो गया
पेट फुलाए- गगरी मोरी
गर्दन अरे सुराहीदार
पड़े पड़े- घर -सड़ जाएगी
मन ही मन- फिर- पछताएगी
अभी मटकते जाती जो है
नदिया तीरे-हलचल करती
घाट-घाट का- पानी पीती
कलरव करती -गाना गाती
धारा से उस नैन मिलाये
डुबकी लाये !!
मन ही मन में
खुश हो आती,
देखे भौंरे-तितली देखे
कलियों का वो फूल सा खिलना !!
उसकी पूजा हुयी ख़तम
तो उसने मुझको टोंका
या मेरा गुण गान कर रहे
मिला कहीं या न्योता ??
वाह-वाह तेरे साथी कर
पूडी तुझे खिलाएं
मन के उनकी बातें करके
मन जो उनके छाये ,
अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई
“जूता”- हार -पिन्हायें !!
मै बोला- तूने- भटकाया
‘सुवरण’ के पीछे मै धाया
कवि जो होते ‘कायल’
नहीं बैठते चूड़ी पहने
घुंघरू वाला ‘पायल’ !!
बिजली -तितली अलि की कलियाँ
रंग -बिरंगी कर सोलह श्रृंगार
खड़ी हैं द्वारे – देखो जाओ
तेरे जैसा नहीं-
फुलाए मुँह -बैठी हैं
और लगाये ‘काजल’ !!
मुँह पकड़ा उसने जो मेरा
छटका -मै -कह अपनी बात
गागर में – सागर जो भर दूं
भरी रहे फिर – गगरी ये री !
क्यों वो यमुना जाये ?
‘सर’ के जैसा ही बस पानी
क्या ‘गंगा’-यमुना हो पाए??
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१८.५.२०११ जल पी बी ४.५० मध्याह्न
http://surendrashuklabhramar.blogspot.com
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11 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

jeth kee tapti garmi me aapki kavita sheetalta ka anubhav kara gayee.

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

शालिनी जी धन्यवाद और नमस्कार -तब तो मेरा प्रयास सफल रहा अभी इस तपती हुयी दुपहरिया में जरुरत भी यही है बच के रहें शीतल रहें खुश रहें खुद और दूसरों को भी शीतल करें
रचना आप को अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar .garmi me aisee sheetal kavita ki hawayen chalti rahe aur meethhe bhavon ki barsat hoti rahe .badhai

Anamikaghatak ने कहा…

अति उत्तम

shyam gupta ने कहा…

sundar,,

prerna argal ने कहा…

is garmi main rachanaa ke maadhyamse sheetalata pradaan karati hui anoothi rachanaa.badhaai aapko.



please visit my blog and leave the comments also.thanks

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

शिखा जी नमस्कार और धन्यवाद -बहुत खूब कहा आप ने शीतल हवाएं यों ही चलती रहें और मिठास बरसती रहे इस गर्मी में - आइये सब मिल इस सपने को साकार किया जाये-

शुक्ल भ्रमर ५

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

शिखा और शालिनी जी जेठ की तपती गर्मी में सचमुच ऐसी शीतलता मिले सब का दिल तरबूजे सा तर हो जाये छाया मिले तो क्या बात है
रचना आप को अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ
प्यारी प्रतिक्रिया शुक्रिया

शुक्ल भ्रमर ५

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

अनामिका जी धन्यवाद रचना को सराहने और प्रोत्साहन के लिए आइये शीतलता यों ही बरसाते रहें


शुक्ल भ्रमर ५

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

डॉ श्याम जी -नमस्कार -धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

प्रेरणा अर्गल जी नमस्कार और धन्यवाद आप का -प्यारी प्रतिक्रिया सच में तपती गर्मी में कहीं थोडा छाया मिले थोडा गला तर करने को मिले और शीतल बयार बदन को छू के निकल जाये तो मन कितना प्रफुल्लित हो जाता है

अपना स्नेह यों ही बनाये रहें

शुक्ल भ्रमर

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