केजरीवाल को अपनी और जनता दोनों की दिशा साफ़ करनी होगी |
लखनऊ के झूले लाल पार्क में जन सभा के दौरान केजरीवाल पर जूता चला ,------व्यवस्ता परिवर्तन की महाभारत लड़ रहे अन्ना हजारे के मार्गदर्शक और सेनापति रहे अरविन्द केजरीवाल पर भी जूता चला इसके पहले टीम अन्ना के एक और मुख्य मेम्बर प्रशांत भूषण की भी पिटाई हुई है असल बात ये है की ये टीम अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन अब राजनीतिक पार्टी विरोधी आन्दोलन होता जा रहा हैं , टीम अन्ना एक तरह का दबाव पैदा कर रही हैं जिससे की संसद अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सके ,जब संसद ने शीत सत्र तक का समय माँगा था तब तक अन्ना की टीम को आन्दोलन के वास्तविक तत्व को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए थी वो मुख्य तत्व वैचारिक राजनीतिक चेतना और सामाजिक जिम्मेदारी का बोध जगाने के लिए जन जागरण था , पर इस समय तो वो संसद पर दबाव डालने में व्यस्त हैं मुझे उनके लखनऊ में दिए गए बयान से एक प्रकार की राजनीतिक नादानी या फिर किसी प्रकार की राजनीतिक षड़यंत्र की झलक मिल रही हैं या तो केजरीवाल कुछ नहीं समझ पा रहे हैं या फिर सब कुछ समझ रहे हैं ............उन्होंने कहा की आजादी के बाद ६२ सालों में पार्टियां बदली सरकारें बदली पर कुछ नहीं बदली तो जनता की हालत अब तो व्यवस्था परिवर्तन की बारी है बिना व्यवस्ता परिवर्तन के कुछ नहीं होने वाला ........तब मेरा सीधा सवाल ये हैं की व्यवस्ता परिवर्तन होगा कैसे, वो औज़ार कौन से होंगे जिनसे व्यवस्था परवर्तन किया जायेगा? क्या सिर्फ कांग्रेस को वोट न देने से क्रांति होती है? क्या राष्ट्रीय स्तर की या प्रदेश स्तर की पार्टी हरा कर स्वतंत्र उम्मीदवारों को जीता देने मात्र से क्रांति हो जाएगी ?,क्या उन्हें झारखण्ड की हालत याद नहीं है जब वहां स्वतंत्र उम्मीदवारों ने सरकार बनाई थी और खुल कर बन्दर बाँट हुई थी ,क्या केजरीवाल देश में बची कुची थोड़ी बहुत भी राजनीतिक धारा आधारित राजनीति खत्म करने पर उतारू हैं ?क्या इस मौके की तलाश में सामजिक कार्यों की ओढ़नी ओढ़ कर कुछ मतलब परस्त लोग नहीं घुश जायेंगे ?क्या केजरीवाल एंड टीम अन्ना एक प्रकार की तानाशाही नहीं कर रही हैं ?,और इन सब से बड़ा सवाल जो की मेरे मन को चीरे डाल रहा हैं वो ये की कहीं केजरीवाल भी भारत की मासूम जनता को नहीं ठग रहे हैं? उन्हें व्यवस्था परिवर्तन सुशाशन के ख्वाब दिखा कर अपनी कोई पूर्व नियोजित योजना को अंजाम दे रहे हैं .................क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाले केजरीवाल में नयी व्यवस्था का कोई खाका नहीं खीचा है ये समाजवादी व्यवस्था होगी या पूंजीवादी या फिर नेहरु की तरह मिश्रित अर्थव्यवस्था , क्या होगा ये उन्हें साफ़ करना होगा और हाँ यदि वो उपस्थित सभी प्रमुझ पार्टियों को भ्रष्ट बता कर विरोध कर रहे हैं तो उन्हें जनता को एक ठोस विकल्प देना होगा उन्हें छद्म राजनीत छोड़ कर सही और सार्थक राजनीती करनी होगी
अनुराग अनंत
2 टिप्पणियाँ:
फिलहाल तो लहर ही नजर आती है... पता नहीं किस दिशा जाएगी
हिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
अथाह जलराशि को एक बहाव तो देना ही होगा नहीं तो प्रलय हो जाएगी।
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