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मैं छह महीने पुराना हो गया...

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011 | 5:46 pm


मित्रों आठ अक्टूबर ! ये तारीख मेरे लिए खास है, क्योंकि आज मेरा ब्लाग " आधा सच " छह महीने पुराना हो गया। इस दौरान मैने विभिन्न विषयों पर कुल 51 लेख लिखे। इसे लेख कहना शायद सही नहीं होगा, हम इसे अपना विचार कहें तो ज्यादा ठीक है। वैसे मेरा ब्लागिंग में आना महज एक संयोग है, जिसके लिए मैं अपने साथी रजनीश कुमार का दिल से शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने ब्लाग बनाने से लेकर हर तकनीक की बारीकियों से मुझे रुबरू कराया।
ब्लाग पर मेरा पहला लेख आठ अप्रैल 2011 को " अब तो भ्रष्ट्राचार भी हो गया है भ्रष्ट्र " ये लिखा। इस लेख के जरिए मैं गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन से सहमत होते हुए ये बताने की कोशिश की कि ये लड़ाई आसान नहीं है। क्योंकि आप भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जंग छेड़ने जा रहे हैं, जबकि हम इस भ्रष्ट्राचार में भी ईमानदारी खो चुके हैं। इस पहले लेख को पोस्ट करने के कुछ समय के भीतर ही सबसे पहला कमेंट मुझे इंदौर से कविता पांडेय का मिला। उन्होंने मेरी सराहना की, मुझे अच्छा लगा। हालाकि ये लेख तीन चार दिन ब्लाग पर रहा, इस दौरान कुल पांच लोगों के ही कमेंट मिले। मुझे लगा कि यहां बहुत जबर्दस्त प्रतियोगिता है, इसमें जगह बना पाना आसान नहीं है।
बहरहाल कुछ सहयोगियों ने कहा कि अभी शुरुआत है, आप लिखना बंद ना करें, कुछ समय लगेगा, क्योंकि आपकी लेखनी कुछ हटकर है। बस फिर क्या था, मैने तय किया कि छह महीने मैं पूरी शिद्दत के साथ यहां समय दूंगा और देखता हूं ये ब्लाग परिवार मुझे स्वीकार करता है या नहीं। इसके कुछ समय बाद ही कालेधन के मामले में बाबा रामदेव का आंदोलन शुरू हुआ, चूंकि मैं मीडिया में होने के कारण बहुत कुछ जानता था कि यहां क्या होता है। बालकृष्ण को लेकर मैने पहले भी कई स्टोरी की थी, लिहाजा मैंने अपनी जानकारी के हिसाब से पांच लेख लिखे। मैने देखा कि मुझे कई लोग जो स्नेह करते थे, वो मेरे खिलाफ हो गए, कांग्रेसी बताकर मेरे खिलाफ टिप्पणी की। मै टिप्पणी से ज्यादा निराश नहीं था, लेकिन आशुतोष जैसे मित्र का साथ छूटने का मलाल आज भी है।
ब्लाग लिखते हुए एक महीना भी नहीं बीता था कि मुझे "भारतीय ब्लाग लेखक मंच" से ना सिर्फ हरीश सिंह ने जोड़ा बल्कि एक निबंध प्रतियोगिता का निर्णय देने को कहा। मैने अपने विवेक के अनुसार इस काम को अंजाम दिया। मुझे खुशी हुई कि मेरे निर्णय पर किसी को आपत्ति नहीं थी। मैं लंबे समय तक हरीश जी और उनके साथियों के संपर्क में रहा, पर इस साथ का जिस तरह से अंत हुआ, उसकी चर्चा करना मैं ठीक नहीं समझ रहा हूं। हालाकि हरीश जी को लेकर मेरे मन में आज भी वही स्नेह बरकरार है, क्योंकि वो पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे एक सार्वजनिक मंच से जोड़ा था।
ये सब बातें चल ही रहीं थी कि दिल्ली में अन्ना हजारे भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने के लिए जनलोकपाल बिल के लिए अनशन पर बैठ गए। मैं अन्ना की मांगों को पूरी तरह जायज मानता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि उनका तरीका लोकतंत्र को कमजोर करने वाला था। लिहाजा मैने तर्कों के आधार पर अपने विचार व्यक्त किए। इस पर मेरा समर्थन करने वालों का प्रतिशत ज्यादा था। मेरी हिम्मत बढी और मैं जो ठीक समझा उसे बेबाक तरीके से लिखता रहा। बहरहाल मेरे ब्लाग पर उतने कमेंट भले दर्ज ना हों, पर ब्लाग को हिट करने की संख्या संतोषजनक थी।
इसी दौरान मैं डा. अनवर जमाल के संपर्क में आया और उन्होंने मुझे "आल इंडिया ब्लागर्स फोरम" के साथ जोड़ा। मैं यहां भी अपनी क्षमता के मुताबिक योगदान देता रहा। इस फोरम से भी मुझे अपार स्नेह मिला। लगभग दो महीने पहले फोरम पर शुरू हुए वीकली मीट में मुझे बराबर स्थान मिलता रहा। इसके लिए भी मैं भाई डा.अनवर जमाल साहब और बहन प्रेरणा जी का दिल से आभारी हूं।
मैं अपने इस छह महीने के सफर में आद. डा रुपचंद्र शास्त्री जी की चर्चा ना करुं, तो सफर पूरा हो ही नहीं सकता। कम समय में ही मुझे यहां कई बार स्थान मिला। चर्चा मंच पर जगह मिलने का नतीजा है कि आज मेरे ब्लाग पर आने वालों की संख्या रोजाना 100 से ऊपर है। इसके अलावा श्री राज भाटिया जी के ब्लाग परिवार, ललित जी  के ब्लाग4 वार्ता, बंदना गुप्ता जी के तेताला और यशवंत माथुर जी के नई पुरानी हलचल का भी मैं दिल आभारी हूं, जिन्होंने मुझे समय समय पर अपनी चर्चाओं में शामिल कर मेरे मुश्किल सफर को आसान बनाने में योगदान दिया। चर्चा मंच के सहयोगी चंद्रभूषण मिश्र गाफिल, श्रीमति विद्या जी, अरुणेश सी दबे, दिलबाग बिर्क, रविकर जी, मासूम साहब और मनोज जी का आभार व्यक्त ना करुं तो ये नाइंसाफी होगी। इन सभी लोगों ने मुझे बराबर सम्मान दिया है। हां यहां एक बात का और जिक्र करना जरूरी है, मैं आज ही भाई सलीम खान के जरिए आल इंडिया ब्लागर्स एसोसिएशन से जुडा हूं, कोशिश होगी कि यहां मैं अपना योगदान पूरी क्षमता के अनुसार दे सकूं।
छह महीने का समय बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इस दौरान मुझे ब्लाग परिवार का अपार स्नेह मिला है। ब्लाग जगत में रश्मि जी एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। मैं जानता हूं कि उनके पास समय का अभाव जरूर होगा, पर मेरे ज्यादातर लेख को ना सिर्फ उन्होंने पढा, बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किए। इससे बढकर उन्होंने मुझे छोटे भाई का जो सम्मान दिया है, वो मेरे लिए अनमोल है। आज मैं बंदना गुप्ता जी को भी दिल याद करना चाहता हूं। हमलोग सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए एक दूसरे के संपर्क में आए। उन्होंने मुझे बहुत पहले सलाह दी थी कि आप एक ब्लाग बनाएं और इसमें कुछ ना कुछ लिखें। पर मित्रों उस दौरान मैं फील्ड में रहकर रेल मंत्रालय के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े मुद्दों की रिपोर्टिंग करता था, लिहाजा मेरे पास समय की बहुत कमीं थी। इसलिए मैं ब्लाग से दूर रहा। आज मुझे लगता है कि अगर मैने बंदना जी की बात को उसी समय स्वीकार कर लिया होता तो शायद मेरे ब्लाग की उम्र कुछ ज्यादा होती। वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
ब्लाग को कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए, इसके लिए कविता वर्मा जी ने मुझे बहुत सहयोग किया। कई बार ब्लाग पर तरह तरह की कठिनाई आई, जिसे कविता जी के जरिए मैने दूर किया। हालाकि मेरे बहुत सारे लेख से वो  कत्तई सहमत नहीं हैं, उनके सोचने का अपना अलग नजरिया है, और मेरी सोच कुछ अलग है। कई लेख पर विवाद की स्थिति भी पैदा हुई, हालत बातचीत बंद होने तक पहुंची, पर हम लोग मानते हैं कि विचारों में भिन्नता से आपस की दूरियां नहीं बढनी चाहिए। वो बहुत पुराने समय से लिख रही हैं, अगर मैं ये कहूं कि उनके अनुभवों से मुझे काफी फायदा हुआ है, तो गलत नहीं होगा।
ब्लाग परिवार में मैं अनु चौधरी जी से और डा. दिब्या श्रीवास्तव से काफी प्रभावित हूं। स्पष्ट सोच और बेबाक लेखन की दोनों महारथी हैं। ऐसे हालात में कई बार दिव्या जी को तो मुश्किलों का सामना तक करना पडा, लेकिन मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूं कि वो कैसे सभी मसलों को सुलझाते हुए अपना रास्ता बना लेती हैं। आप दोनों ने मेरे ब्लाग पर आकर मेरा सम्मान बढाया है और मुझे ब्लाग की मुख्यधारा से जुडने में मेरी मदद की है।
मैं आज इस मौके पर अगर अपने प्रिय लोगों की चर्चा न करुं, जिनके साथ मैने ये सफर तय किया है तो गलत होगा। मेरे हर लेख पर इन सभी लोगों ने मुझे स्नेह और शुभकामनाओं से नवाजा है। इसमें राजेश कुमारी जी, मीनाक्षी पंत जी, रचना दीक्षित जी, डा. वर्षा सिंह जी, अमृता तन्मय जी, डा. मोनिका शर्मा जी, पूनम श्रीवास्तव जी, कविता रावत जी, माहेश्वरी किरण जी, रजनी मल्होत्रा, अनीता अग्रवाल जी, सुमन जी, रचना जी, हरिकीरत हीर जी, अपनत्व जी, बबली जी, शालिनी कौशिक जी, शिखा जी, अल्पना वर्मा जी, निर्मला कपिला जी, निवेदिता जी और संध्या शर्मा जी शामिल हैं।
इसके अलावा श्री चंद्र मोलेश्वर प्रसाद जी, प्रवीण पांडेय जी, विजय माथुर जी, सुनिल कुमार जी, महेन्द्र वर्मा जी, जयकृष्ण तुषार जी, नीलकमल जी, राकेश कौशिक जी, केवल राम जी, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, अरुण चंद्र राय जी, डा. विजय कुमार शुक्ल जी, कुवर कुसुमेश जी, कैलाश सी शर्मा, वीरेंद्र चौहान जी, संजय भाष्कर जी, संतोष त्रिवेदी जी, योगेन्द्र पाल जी, अतुल श्रीवास्तव जी, अभिषेक जी, अमित श्रीवास्तव जी, वीरभूमि जी, आशुतोष जी, मिथिलेश जी और बृजमोहन श्रीवास्तव जी प्रमुख हैं। मित्रों याददाश्त ही है, हो सकता है कि यहां किसी का जिक्र करना रह गया हो, तो इसे मेरी गल्ती समझ कर माफ कर दीजिएगा।
इस छह महीने में एक वाकये ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया, जब एक ब्लागर ने मेरे किसी लेख से नाखुश होने पर मुझे मेल करके आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। अगर मैं इस वाकये को भूल जाऊं तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरा ये सफर बहुत ही संतोष जनक रहा है। मुझे नही पता कि इस छह महीने में मेरे ब्लाग को 9328 हिट मिले हैं, ये संख्या आप लोगों की नजर में ठीक है या नहीं, लेकिन मैं व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट हूं। मुझे लगता है कि मैं अपनी बात आप सभी तक पहुंचाने में कामयाब रहा हूं। ये मेरे दिल की बात है, अगर किसी को इससे पीडा पहुंची हो तो मैं उनसे बिना किसी लाग लपेट के खेद व्यक्त करता हूं।
 
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3 टिप्पणियाँ:

SAJAN.AAWARA ने कहा…

apko bahut sari bdaiyaaaaaannn...
jai hind jai bharat

Atul Shrivastava ने कहा…

छह महीने तो नहीं पर कुछ समय पहले ही आपके ब्‍लाग में पहुंचा हूं और इसके बाद से हमेशा ही आने का मन किया... कभी कोई पोस्‍ट न छूट जाए इसलिए फालोवर्स की सूची में ही शामिल हो गया.... आपकी लेखनी दमदार है.... ये एक छोटा सा पडाव है... अभी तो लंबा सफर तय करना है.... तीन दिन पहले ही मैंने अपने ब्‍लाग के एक साल पूरे किए हैं..... संयोग से इसी दिन मेरे ब्‍लाग में फालोवर्स की संख्‍या 100 में पहुंची है....
बधाई हो आपको.... आभार......

रविकर ने कहा…

आधा सच कह-कह किया, आधा साल अतीत |
पूरा कहने से बचा, समझे आधा मीत |

आधा समझे मीत, समझदारी है जिनमें |
"समझदार की मौत", हुई न इतने दिन में |

बहुत ही खुशनसीब, तीर जिनपर भी साधा |
"जो मारे सो मीर", कहा फिर से सच आधा ||

बहुत-बहुत बधाई ||

शुभ विजया ||

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