दिन ढला शाम हुई चिड़ियों की कुहक वीरान हुई दिन ने रात को गले लगाया सांझ का ये नज़ारा आम हुई पेड़ों की झुरमुटों से चांदनी की छटा दीदार हुई तारों की अधपकी रोशनी आसमां की ज़मी पे मेहरबान हुई ये तो रोज़ का नज़ारा है जाने क्यों लिखने को बेचैन हुई चलो आखिर इस बहाने मेरी ये कविता ब्लॉग-ए-आम हुई |
ब्लॉग-ए-आम........
Written By Anamikaghatak on सोमवार, 17 अक्टूबर 2011 | 7:45 pm
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1 टिप्पणियाँ:
bahut achcha likha hai......
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