कुछ निगाहें उनकी,
दूरी-दूरी बना रही थी,
पास आने से,
कतरा रहीं थीं,
दूर से निगाह भी,
न मिला रहीं थीं,
दूर-दूर ही वो,
चली जा रही थीं,
सोचो,
मंज़र-ए-हकीक,
क्या गुजरी होगी,
मेरे दिल पर,
जो रोज़ आगोश में,
मचलती थीं,
आज दूर से ही,
निकलना चाहती थीं,
जाते हैं,
वजह को,
तलाशते हैं,
क्यूँ दूर-दूर,
ये,
मुगालते हैं,
.
दूरी-दूरी बना रही थी,
पास आने से,
कतरा रहीं थीं,
दूर से निगाह भी,
न मिला रहीं थीं,
दूर-दूर ही वो,
चली जा रही थीं,
सोचो,
मंज़र-ए-हकीक,
क्या गुजरी होगी,
मेरे दिल पर,
जो रोज़ आगोश में,
मचलती थीं,
आज दूर से ही,
निकलना चाहती थीं,
जाते हैं,
वजह को,
तलाशते हैं,
क्यूँ दूर-दूर,
ये,
मुगालते हैं,
.
1 टिप्पणियाँ:
bhaut hi sundar rachna...
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