जनवरी की सर्द रात, एक कम्बल
और कुछ अटपटे ख़याल
थोड़ी सी मदहोशी, कुछ चाय के प्याले
और मन मे उठे सवाल
कुछ पुरानी यादें, और वो नज़्में
जो तुमने गुनगुनायी थीं
तुम्हारी बातें, और मेरी पुरानी गजलें
जो मैंने तुम्हें सुनाई थीं
मेरी गुस्ताख़ शरारत पे
तुम्हारी हया भरी डांट
हमने बूढ़े पीपल पे लगाई थी
जो लाल डोरी की गांठ
कुछ खत जो कभी भेजे नहीं
और वो बातें जो कही नहीं
जिस्मों के ये फासले और
दिलों मे दूरिया जो रही नहीं
वो बेचैनी मे बदली गयी करवटें
और तनहाई मे भरी गयी आह
वो पूनम के चाँद को देखकर
तुमको छू लेने की चाह
वो किताबों से निकले
सूखे फूलों की महक
तेरे चेहरे का ताब,
तेरी साँसों की दहक
मेरे कुछ रंगीन ख्वाब,
और आँखें तेरी शराब
और भी बहुत कुछ मिला कर
पकाया है जज़्बातों की आंच पर
फिर कुछ देर ठंडा किया है
रख के हसरतों के काँच पर।
कागज़ पे परोस कर
इक ख़त तुम्हें भेजा है
ज़रा चख के ये बताना
क्या नमक इश्क़ का सही पड़ा है??
3 टिप्पणियाँ:
zi iss "namak" ne to macha diya :)
कागज़ पे परोस कर
इक ख़त तुम्हें भेजा है
ज़रा चख के ये बताना
क्या नमक इश्क़ का सही पड़ा है??
वाह वाह क्या बात कही है………अभिव्यक्ति दिल को छू गयी…………गज़ब की रचना।
@मनसा जी एवं वंदना जी...बहुत बहुत शुक्रिया ....:)
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.