तीन दिन दिल्ली में नहीं था, आफिस के काम से बाहर था, इस दौरान मैं ब्लागिंग से भी
महरूम रहा। पूरे दिन काम धाम निपटाने के बाद जब टीवी पर न्यूज देख रहा था, अचानक सभी चैनलों ने एक ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश की, जिसमें
श्रीराम सेना के कुछ कार्यकर्ता टीम अन्ना के प्रमुख सहयोगी प्रशांत भूषण पर हमला कर
रहे थे। ये देखकर एक बार तो मैं भी हैरान रह गया, क्योंकि मेरा
मानना है कि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है और इसे हम गुंडागर्दी
कहें तो गलत नहीं होगा।
लेकिन कुछ देर बाद ही मार पिटाई करने वाले नौजवानों
की बात सुनीं, उनका गुस्सा प्रशांत भूषण के उस बयान पर था, जिसमें भूषण ने कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा
कि वहां जनमत संग्रह होना चाहिए और अगर वहां के लोग चाहते हैं कि वो भारत के साथ नहीं
रहना चाहते तो वहां से सेना हटाकर उन्हें आजाद कर दिया जाना चाहिए। मेरा भी निजी तौर
पर मानना है कि प्रशांत भूषण का ये बयान गैर जिम्मेदाराना और देश को विभाजित करने वाला
है। या यों कहें कि उनका ये बयान कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ ही पडो़सी मुल्क
पाकिस्तान के रुख का समर्थन करने वाला है तो गलत नहीं होगा। कश्मीर भारत का अभिन्न
अंग है, और इसके साथ किसी तरह का समझौता संभव नहीं है। कश्मीर
को बचाए रखने के लिए हमने कितनी कुर्बानी दी है, प्रशांत ने उन
सभी कुर्बानी को नजरअंदाज कर बेहूदा बयान दिया है। हालाकि मैं फिर दुहराना चाहता हूं
कि मैं मारपीट के खिलाफ हूं, पर मुझे लगता है कि नौजवानों का
जब खून खौलता है तो वो ऐसा कुछ कर देते हैं, खैर मैं इन युवकों
के देश प्रेम की भावना को सलाम करता हूं और इस मामले में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे
के विचार का भी समर्थन करता हूं।
सवाल ये उठता है कि टीम अन्ना को ऐसा क्यों लगता है
कि वो अब खुदा हैं और हर मामले पर अपना नजरिया रखेगें, भले ही वो देश भावना के खिलाफ हो। प्रशांत की बात को तो अन्ना ने ही खारिज
कर दिया। टीम अन्ना के दूसरे सहयोगी जस्टिस संतोष हेगडे भी समय समय पर टीम अन्ना से
अलग राय देते रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस टीम में चलती किसकी है। यहां
कोई अनुशासन है भी या नहीं। गैरजिम्मेदार लोगों के मुंह पर ताला लगाने की जिम्मेदारी
किसके हाथ में है। शर्म की बात तो ये है कि गैरजिम्मेदाराना बयान देने के बाद भी अभी
तक प्रशांत भूषण ने खेद भी नहीं जताया, मतलब साफ है कि वो अभी
भी अपने देश विरोधी बयान पर कायम हैं।
मुझे अब टीम अन्ना की नीयत पर शक होने लगा है। वैसे
तो आप मेरे पिछले लेख देखें तो मैं समय समय पर लोगों को आगाह करता रहा हूं, लेकिन अब जो कुछ सामने आ रहा है, उससे लगता है कि ये
लोग भी कुछ सियासी लोगों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं। ये वही करते हैं जो पर्दे
के पीछे से इन्हें कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के हिसार में हो रहे लोकसभा
के उपचुनाव में अरविंद केजरीवाल, किरन वेदी और प्रशांत भूषण पहुंच
गए। इन सभी ने हाथ में तिरंगा लेकर कांग्रेस को वोट ना देने की अपील की। आपको पता होना
चाहिए कि अरविंद केजरीवाल हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं। दोस्तों आपको ये बताना जरूरी है कि यहां कांग्रेस उम्मीदवार पहले ही दिन से तीसरे
नंबर पर था, उसके जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी, यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी
ने भी यहां कोई सभा नहीं की। टीम अन्ना ने यहां कांग्रेस का विरोध एक साजिश के तहत
किया, जिससे देश में ये संदेश जाए कि टीम अन्ना जिसे चाहेगी उसे
चुनाव हरा सकती है।
अगर टीम अन्ना को अपनी ताकत पर इतना ही गुमान था तो
अन्ना के प्रदेश महाराष्ट्र में खड़कवालसा में हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध
क्यों नहीं किया गया। यहां तो कांग्रेस उम्मीदवार पहले नंबर पर है और उसका जीतना पक्का
बताया जा रहा है। अगर वहां ये कांग्रेस उम्मीदवार को हराने में कामयाब होते तो कहा
जाता कि अन्ना भाग्यविधाता हैं। लेकिन नहीं, अन्ना को समझाया
गया कि आप महाराष्ट्र में कांग्रेस उम्मीदवार को नहीं हरा पाएंगे, ऐसे में आपकी छीछालेदर होगी। लिहाजा अन्ना अपने प्रदेश में कांग्रेस का विरोध
करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
मित्रों एक सवाल सीधे आपसे करना चाहता हूं। रामलीला
मैदान में अन्ना और सरकार के बीच समझौता हुआ कि वो शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल बिल
संसद में पेश करेंगे। इसके बाद टीम अन्ना ने पूरे देश में विजय दिवस मनाया। देश भर
में पटाखे छोड़े गए, खुशियां मनाई गईं। फिर अभी संसद का
शीतकालीन सत्र शुरू भी नहीं हुआ कि कांग्रेस के खिलाफ टीम अन्ना ने झंडा क्यों बुलंद
किया। चलिए मान लेते हैं कि टीम अन्ना दबाव बनाना चाहती है। अगर दबाव बनाना मकसद था
तो विरोध सिर्फ कांग्रेस का क्यों ? बीजेपी और दूसरे राजनीतिक दलों का क्यों नहीं। क्योंकि
कांग्रेस चाहे भी तो जब तक उसे दूसरे दलों का समर्थन नहीं मिलेगा, वो इस बिल को लोकसभा में पास नहीं करा
सकती। ऐसे में लगता है कि टीम अन्ना की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है, और उनके सभी फैसलों के पीछे गंदी राजनीति है।
यही वजह है कि अब टीम अन्ना
को लगातार मारपीट की धमकी मिल रही है। पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अन्ना पर सीधा
हमला बोला और साफ कर दिया कि वो उनसे टकराने की कोशिश बिल्कुल ना करें, क्योंकि वो गांधीवादी नहीं हैं,
ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते हैं। अन्ना खामोश हो गए। उनके दूसरे
सहयोगी प्रशांत भूषण पर हमला हो गया। अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि उन्हें भी धमकी
भरे एसएमएस मिल रहे हैं। ये सब अचानक नहीं है, जब तक लोगों को
लगा कि ये टीम देश हित की बात कर रही है, तबतक लोग 48 डिग्री
तापमान यानि कडी धूप में रामलीला मैदान में अन्ना के समर्थन में खड़े रहे, लेकिन जब युवाओं को लगा कि ये टीम लोगों को धोखा दे रही है, तो गुस्साए युवाओं ने अपना अलग रास्ता चुन लिया।
अच्छा मैं हैरान हूं अरविंद
केजरीवाल के बयानों से। प्रशांत भूषण के मामले में उन्होंने ये तो नहीं कहाकि प्रशांत
ने जो बयान दिया है वो गलत है। हां ये जरूर कहा कि प्रशांत टीम अन्ना में बने रहेंगे।
क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि केजरीवाल भी प्रशांत भूषण के बयान से सहमत हैं। फिर
आज एक और ड्रामेबाजी शुरू की गई। कहा गया कि
लोग अगर हमें पीटने आते हैं तो हमारे कार्यकर्ता पिटने को तैयार हैं। भाई केजरीवाल
खुद तो रालेगांवसिद्धि में हैं और घर के बाहर अपने कार्यकर्ताओं को बैठाया कि कोई पीटने
आए तो पिट जाना। मजेदार वाकया है, अनशन अन्ना करेंगे, पिटने की बारी आएगी तो कार्यकर्ता
करेंगे आप सिर्फ एयर कंडीशन में टाप नेताओं के साथ वार्ता करेंगे। बहुत खूब दोस्त।
4 टिप्पणियाँ:
samajh me nahi aati ye raajneeti
des suchar jaye ,aaye esi neeti
jai hind jai bharat
आगे आगे देखे होता है क्या
अच्छा सोचनें पर अच्छाा ही होता है
हम सभी को साकारात्मक सोचना होगा
लगा रेकने जब कभी, गधा बेसुरा राग |
बहुतों ने बम-बम करी, बैसाखी में फाग |
बैसाखी में फाग, घास समझा सब खाया |
गलत सोच से खूब, सकल परिवार मुटाया |
रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |
ढेंचू - ढेंचू रोज, लगा बे-वक्त रेंकने ||
महाराष्ट्र में भी कांग्रेस हार गयी है और कल केजरीवाल को भी चप्पल पड़ गयी है।
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