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एक आस

Written By नीरज द्विवेदी on शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011 | 9:13 am


ये है एक अँधेरी रात,
थोड़े अनदेखे हालात।
एक दो दीप जले हैं,
थोड़ी होती है बरसात॥

कुछ खट्टी मीठी यादों के संग,
मैं चलता सारी रात।
बस एक आस के साथ,
कि शायद हो उनसे मुलाकात॥

दिन ढलतारातें आतीं हैं,
एक नयी सुबह के साथ।
सुख दुख संग संग रहते हैं,
जैसे बादल में बरसात॥

खूब भीड़ है शोर बहुत,
मैं सुनता सबके साज।
बस एक आस के साथ,
कहीं तो हो उनकी आवाज़॥

शायद हो उनसे मुलाकात

एक आस

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