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ग़ज़ल
ग़ज़ल
अदब के साथ जो कहता कहन है
वो अपने आप में एक अंजुमन है
हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है
हुई है दिल्लगी बेशक हमीं से
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है
अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है
नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है
खिले हैं फूल मिट्टी है महकती
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है
कहाँ परहेज मीठे से हमें है
वो कहता यार यह तो आदतन है
ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है
तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है
--अम्बरीष श्रीवास्तव
4 टिप्पणियाँ:
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल...
अम्बरीश भाई को सादर बधाई...
सादर आभार...
बहुत सुन्दर गज़ल्।
भाई संजय मिश्र जी ! इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ !
आदरणीया वंदना जी ! इस ग़ज़ल की तारीफ के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया !
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