जो दिल लगाते हैं,
चोट-ए-दिल खाते हैं,
तुम क्या जानो,
कैसे दिल लग जाते हैं,
तन्हा-तन्हा-सी जिन्दगी में,
फूल जब खिल जाते हैं,
उडती-उडती-सी महक से,
दिल खुद-ब-खुद लग जाते हैं,
करना क्या इसमें, कुछ भी तो नहीं,
नज़र से नज़र बस मिलाते हैं,
नज़रों से दिल में उतर जाते हैं,
धड़कन से धड़कन बस मिलाते हैं,
दर्द उसको नहीं मुझको होता है,
जब दिल से दिल मिल जाते हैं,
बचके हमको चलना पड़ता है,
नहीं तो चोट वो खाते हैं,
तो ऐसे दिल मिलाते हैं,
नज़रों से दिल मिलाते हैं,
तरर्न्नुम में फिर गाते हैं,
सबको पसंद आते हैं,
.
चोट-ए-दिल खाते हैं,
तुम क्या जानो,
कैसे दिल लग जाते हैं,
तन्हा-तन्हा-सी जिन्दगी में,
फूल जब खिल जाते हैं,
उडती-उडती-सी महक से,
दिल खुद-ब-खुद लग जाते हैं,
करना क्या इसमें, कुछ भी तो नहीं,
नज़र से नज़र बस मिलाते हैं,
नज़रों से दिल में उतर जाते हैं,
धड़कन से धड़कन बस मिलाते हैं,
दर्द उसको नहीं मुझको होता है,
जब दिल से दिल मिल जाते हैं,
बचके हमको चलना पड़ता है,
नहीं तो चोट वो खाते हैं,
तो ऐसे दिल मिलाते हैं,
नज़रों से दिल मिलाते हैं,
तरर्न्नुम में फिर गाते हैं,
सबको पसंद आते हैं,
.
3 टिप्पणियाँ:
तो ऐसे दिल मिलाते हैं,
नज़रों से दिल मिलाते हैं,
तरर्न्नुम में फिर गाते हैं,
सबको पसंद आते हैं,
बहुत ही खुबसूरत.....
Bahut hi achchi koshish pappu ji ... Sundar
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Koi Chahne Wala Hota
Tut gaya Suraj Deepon Mein
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तन्हा-तन्हा-सी जिन्दगी में,
फूल जब खिल जाते हैं,
उडती-उडती-सी महक से,
दिल खुद-ब-खुद लग जाते हैं,
पूरी रचना ही खूबसूरत है.....!!
बढ़ायी....!!!
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Thanks for your valuable comment.