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उलझन-सी है, कशमकश-सी है

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011 | 7:55 am


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उलझन-सी है,
कशमकश-सी है,
ठहराई-सी है,
गहराई-सी है,

कदम क्या उठाऊं,
रूक जाऊं, चली जाऊं,
बैठे-बैठे समझ न पाऊं,
किस पर ऐतबार कर जाऊं,

ज़माना बड़ा है,
अपना न कोई खड़ा है,
जिधर नज़र पड़ी है,
घूरती नज़र गडी है,

अहसान अब न ले सकूं,
बोझ उसका न सह सकूं,
अह्सानदार बड़ा होता है,
हर जगह खड़ा होता है,

उलझन-सी ....


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1 टिप्पणियाँ:

रविकर ने कहा…

भावपूर्ण प्रस्तुति ||
बहुत सुन्दर |
हमारी बधाई स्वीकारें ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_110.html

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