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Written By Shalini kaushik on सोमवार, 7 फ़रवरी 2011 | 1:06 am

"प्रकृति हमारी है ही न्यारी"
नित नूतन उल्लास से विकसित,
     नित जीवन को करे आल्हादित  ,
           नित कलियों को कर प्रस्फुटित ,
                  लहलहाती बगिया की क्यारी.
 प्रकृति     हमारी     है     ही     न्यारी.
  ऋतुराज वसंत का हुआ आगमन,
       सरसों से लहलहाया आँगन ,
               खिला चमन के पुष्पों का मन,
                  और खिल गयी धूप भी प्यारी.
प्रकृति      हमारी      है      ही     न्यारी.
ऋतुओं में परिवर्तन लाती,
         कभी रुलाती कभी हंसाती,
                कभी सभी के संग ये गाती,
                       परिवर्तन की करो तैयारी,
प्रकृति     हमारी     है    ही   न्यारी.
  कभी बैसाखी ,तीज ये लाये,
        कभी आम से मन भर जाये,
               कभी ये जामुन खूब खिलाये,
                      होली की अब आयी बारी,
प्रकृति    हमारी     है    ही    न्यारी.

         
         
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3 टिप्पणियाँ:

Atul Shrivastava ने कहा…

वाह! होली के रंगों की याद आपने पहले ही दिला दी। प्रकृति के सुंदर चित्रण की रचना।
मेरी एक रचना आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में।
एक अनूठी प्रेम कहानी, जो खतों में है ढली,
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आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin rchnaa mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

shyam gupta ने कहा…

वासन्तिक बधाई....

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