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"हिन्दी कि दशा और दिशा "

Written By Pallavi saxena on शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011 | 9:30 pm

आज अपने इस लेख को शुरू करने से पहले में यह कहना चाहती हूँ कि “भाषा चाहे कोई भी हो अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई चाह कर भी उसका मज़ाक नहीं बना सकता” और इसलिए मुझे उम्मीद है कोई भी मेरे इस लेख को अपनी आत्मीय भावनाओं से नहीं जोड़ेगा। क्योंकि किसी भी भाषा का मजाक बनाना मेरा उदेश्य नहीं है।
अब बात करते हैं हिन्दी की दशा कि तो मुझे नहीं लगता कि हिन्दी की दशा कुछ खास अच्छी है। हाँ यह बात जरूर है कि कुछ न समझ लोग हिन्दी में लिखने वाले लोगों को, या चार लोगों के बीच में हिन्दी बोलने वाले व्यक्ति को इस प्रकार से देखते हैं, कि बोलने वाले व्यक्ति को खुद में शर्म महसूस होने लगती जो कि बहुत ही बुरी बात है। ठीक इस ही तरह मुझे यह बात भी बहुत बुरी लगती है कि हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तान में रहकर हिन्दी भाषा का सम्मान नहीं करते, जो कि उनको करना चाहिए और केवल हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि बहार आकार भी एक दूसरे को इस मामले में नीचा दिखाने से नहीं चूकते। इस से ज्यादा और शरम नाक बात क्या हो सकती है।

आज भी जब यहाँ में यह देखती हूँ की जहाँ कहीं भी चार हिंदुस्तानी आपस में खड़े होकर बात कर रहे होते हैं, तो वो भी अँग्रेज़ी में ही बात करते दिखाई एवं सुनाई पढ़ते है। या फिर यदि वह सभी एक ही प्रांत के हों तो अपनी मात्र भाषा में बात करते मिलते हैं। यहाँ मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि यदि वह लोग स्वयं अपनी मात्र भाषा में बात करते हैं तो कुछ गलत करते हैं क्योंकि अपनी भाषा में बात करना तो सभी को अच्छा लगता है और लगना भी चाहिए, लेकिन मुझे समस्या इस बात से नहीं होती की वह लोग अपनी भाषा में बात क्यूँ कर रहे हैं, बल्कि इस बात से होती है कि जब वह लोग ऐसा कर रहे होते हैं तो वह यह भी भूल जाते हैं कि अगर उनके बीच कुछ ऐसा भारतीय लोग खड़े है, जो उनकी मात्र भाषा से अंजान है और उनकी भाषा को समझ नहीं सकते तब तो कम से कम उन्हे हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए, मगर अफसोस की ऐसा कभी नहीं होता फिर चाहे भारत वर्ष हो या UK और जब कभी ऐसा होता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है।

खास कर इन अँग्रेज़ों के देश में लोग पता नहीं क्यूँ हमेशा यह बात भूल जाते हैं, कि सब से पहले हम भारतीय हैं, और उसके बाद उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम की बात आती है, मगर यहाँ आकार तो हर हिन्दुस्तानी अपने आप को पूर्णरूप से अँग्रेज़ बनाने कि होड़ में शामिल हो जाता है। उन ही कि तरह का खान-पान, बोल चाल सब और यदि उनके बीच आप ने हिन्दी बोलना आरंभ किया तो आप को ऐसा महसूस करा दिया जायेगा जैसे आप ने उनके सामने हिन्दी बोल कर कोई महापाप कर दीया हो और आप उनके बीच में खड़े होने लायक या बैठने लायक भी नहीं हो, अब आप ही बताएं किसी भी सच्चे हिन्दुस्तानी के लिए इस से ज्यादा शरम की बात और क्या हो सकती है।

खैर अब बात आती है दिशा कि तो उसे लेकर कम से कम मुझे इस बात कि तसल्ली है कि अपने हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी बोलने वालों कि हिन्दी में लिखने वालों कि कोई कमी नहीं है। मैं स्वयं एक हिंदुस्तानी हूँ और मेरे लिए हिन्दी का क्या और कितना महत्व है यह में कभी शब्दों में बयान नहीं कर सकती। आप को शायद पता हो कि मैंने खुद अँग्रेज़ी साहित्य में M.A किया है। लेकिन उस के बावजूद भी मैंने अपना ब्लॉग लिखने के लिए हिन्दी भाषा को ही चुना क्यूँ ? क्योंकि मेरा ऐसा मानना है, कि हिन्दी भाषा में जो अपना पन है, जो गहराई है, जो सरलता है, वो शायद ही किसी और भाषा में हो।

मेरे विचार से ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि आज कल हमारे देश में हर चीज़ को standard कि द्रष्टी से देखा जाता है, जिस प्रकार यदि पड़ोसी के घर में कार हो और यदि हमारे यहाँ ना हो तो लगने लगता है कि उनका रुतबा हम से ज्यादा बढ़ गया है, हम से यहाँ मेरा तात्पर्य एक आम हिंदुस्तानी से है, और हम खुद को उन पड़ोसियों से कम समझ ने लगते हैं और वैसे भी हम हिंदुस्तानियों को खुद से पहले हमेशा से ही समाज कि फिक्र ज्यादा रहा करती है कि लोग क्या कहेंगे और हर बार हम यही भूल जाते है कि लोग का काम है कहना। कुछ अच्छा होगा तो भी लोग कहेंगे और कुछ बुरा होगा तो भी लोगों को तो कहना ही है,

ऐसा ही कुछ हिन्दी भाषा के साथ भी हो रहा है। आज कल कि तेज़ रफ्तार जिंदगी में हर कोई अपने आप को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने कि होड़ में लगा हुआ है बच्चों कि पढ़ाई में प्रतियोगिता इस क़दर बढ़ गई है कि योगिता जाये भाड़ में उसे कोई नहीं देखता बस देखा जाता है तो केवल नंबर और यह कि अँग्रेज़ी केसी है बोलना आता है या नहीं। क्योंकि जिसे अँग्रेज़ी बोलना नहीं आता वो आज की तारीक में सब से असफल और निम्न व्यक्ति समझा जाता है। उसे लोग दया की नजर से देखते हैं कि हाय बेचारे को अँग्रेज़ी नहीं आती। यदि उसको खुद में इस बात के कारण कि उसे अँग्रेज़ी नहीं आती शर्म ना भी महसूस हो रही हो, तो भी लोग महसूस करवा कर ही छोड़ ते है। देखो तुम को अँग्रेज़ी नहीं आती कितने शरम की बात है। कई बार तो यह भी देखने को मिलता है, कि जिस व्यक्ति को अँग्रेज़ी नहीं आती और यदि वो ऐसे लोगों के बीच में खड़ा हो जाए जहां बाकी सब को अँग्रेज़ी बोलना आती हो तो अन्य लोगों को अपने उन समूह में असुविधा महसूस होने लगती  है। 

 महज़ उस इंसान के अँग्रेजी ना आने कि वजह से उसके कारण वो लोग खुद को शर्मसार सा महसूस करना शुरू कर देते है। क्योंकि जिस तरह गाड़ी ,बँगला एक से एक अन्य महँगी चीज इस्तेमाल करना एक तरह का fashion बना हुआ है जिस के चलते लोग अपने living standard को दूसरों से उचा दिखाने के प्रयास में लगे रहते हैं वैसे ही English बोलना भी इस ही fashionable दुनिया का एक बहुत ही जरूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

माना की आज की तारीक में अँग्रेज़ी आना बहुत जरूर है। उस के बिना काम भी नहीं चल सकता है और कोई भी भाषा को सीखना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन उस भाषा पर पूरी तरह निर्भर हो जाना बहुत गलत बात है। उसे अपने निजी जीवन में इस हद तक उतार लेना की अपने ही प्रियजनों के बीच खुद को उन से अलग होने का या ऊपर होने का दिखावा करना सही बात नहीं है। क्योंकि हर बात जब तक सीमित हो तब तक ही अच्छी लगती है, किसी ने ठीक ही कहा है “अति हर चीज की बुरी होती है” फिर चाहे वो प्यार जैसे अमूल्य चीज ही क्यूँ ना हो, तो यह तो फिर भी भाषा है।

किन्तु ठीक इस ही तरह यह बात भी उतनी ही सच्च है कि अँग्रेज़ी भाषा की तुलना में हिन्दी सीखना ज्यादा कठिन है। और इस का प्रमाण मेरे सामने मेरा बेटा है। जिसको मैं हिन्दी सिखाने की बहुत कोशिश करती हूँ, किन्तु अब तक नाकाम हूँ। चूँकि उस कि शिक्षा यही से आरंभ हुई है इसलिए उसने यह कभी जाना ही नहीं कि हिन्दी लिखते कैसे है। बोलना तो वह जानता है, क्यूँकि घर में हम हमेशा उस से हिन्दी में ही बात करते है। लेकिन जब में उसे हिन्दी कि वर्णमाला सिखाने कि कोशिश करती हूँ, तो हमेशा मुझे यही उत्तर मिलता है कि माँ यह भाषा बहुत कठिन है। मेरे लिए English ही ठीक है। अँग्रेज़ी भाषा में पता नहीं क्यूँ मुझे सब बनावटी सा लगता है। हो सकता है कि यह मेरी ही कमजोरी हो मगर जो भी है, मुझे हिन्दी की तुलना में अँग्रेज़ी बहुत ही तुच्छ लगती है। हाँ वो बात अलग है, कि मैं खुद ऐसी जगह हूँ जहां बिना अँग्रेज़ी के कोई काम नहीं हो सकता है। लेकिन फिर भी मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है, कि में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी भाषा का ही प्रयोग कर सकूँ।

यहाँ तक की मैं तो सामने वाले से एक बार तो पुच्छ ही लेती हूँ, यदि वह अँग्रेज़ ना हुआ तो कि क्या आप हिन्दी जानते है, और यदि वह बोल दे हाँ, तो फिर तो में हिन्दी में ही बात करना पसंद करती हूँ। जबर्दस्ती English आने का दिखावा नहीं करती हूँ। वो कहते है न जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे के बारे में क्या बोलों बस ऐसा ही कुछ हाल है, हमारी हिन्दी भाषा का भी मेरी मम्मी अकसर कहा करती है की बेटा "अपना सम्मान हमेशा अपने हाथ में ही होता है " अर्थात जब आप किसी को प्यार और सम्मान देंगे तभी आप को भी वही प्यार और सम्मान मिलेगा, मगर अफसोस की हमारी हिन्दी भाषा के साथ ऐसा नहीं है, उसे तो खुद हिन्दुस्तानी ही सम्मान नहीं दे पाते तो, दूसरे देश के लोग कहाँ से देंगे।

अन्ततः बस इतना ही कि मैं सभी हिंदुस्तानियों से विनम्र निवेदन करती हूँ कि कृपया आप जहां तक हो सके अपनी मात्र भाषा का ही प्रयोग करें फिर चाहे आप देश के किसी भी कोने में क्यूँ ना रह रहे हों यह कभी मत भूलो कि आप कुछ भी होने से पहले एक भारतीय है और एक भारतीय होने के नाते आपकी सब से पहली मात्र भाषा हिन्दी है क्योंकि,

"मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा" और उस के बाद किसी और प्रांत के जय हिन्द......
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2 टिप्पणियाँ:

Swarajya karun ने कहा…

विचारणीय आलेख. देश-विदेश की भाषाएँ सीखना अच्छी बात है ,लेकिन सबसे पहले हमें अपनी राष्ट्रभाषा पर गर्व होना चाहिए. हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है. यह भारत और भारतीयों के स्वाभिमान की भाषा है. प्रत्येक भारतीय को वह चाहे देश में रहता हो या विदेश में , उसे अपने देश की भाषा हमेशा याद रखना चाहिए .

prerna argal ने कहा…

आपकी पोस्ट को आज ब्लोगर्स मीट वीकली(१३)के मंच पर प्रस्तुत की गई है आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें/आभार /

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