जिस राजस्थान को खून से सींचा हे आज इस राजस्थान का स्थापना दिवस हे
जिस राजस्थान को खून से सींचा हे आज इस राजस्थान का स्थापना दिवस हे लेकिन अफ़सोस के यह दिवस आज तो क्रिकेट की भेंट चढ़ गया दुसरे सरकार ने इस दिन को अब गम्भीरता से लेना छोड़ कर केवल रस्म निभाने तक ही सिमित कर दिया हे एक छोटी गोष्ठी एक प्रदर्शनी और अख़बार में छोटी सी खबर बस हो गया राजस्थान स्थापना दिवस .
दोस्तों राजाओं का यह स्थान जहां २२ रियासतों ने अपना खून बहाया हे आज़ादी की लढाई में अंग्रेजों के आगे कुछ्ने घुटने टेके तो कुछ ने जान गंवाई हे कहते हें के राजस्थान में जिस राजा के पास बेहिसाब सम्पत्ति और अपने दुर्ग भवन हें वोह कहीं ना कहीं अंग्रेजों की गुलामी में थे लेकिन टोंक और आदिवासी क्षेत्रों सहित कई ऐसी जगह भी हें जहां आज ना तो दुर्ग हे ना किला हे और ना ही वहां के नवाब राजा बहुत अधिक सम्पन्न हे ऐसे में यही वोह लोग थे जो अंग्रेजों के खिलाफ थे और इसीलियें इन्होने मरते दम तक गुलामी स्वीकार नहीं की और गरीब बने रहे .
आज कहने को तो राजस्थान स्थापना दिवस हे लेकिन सभी राजा महाराजा जो अंग्रेजों के रक्षक और आज़ादी के भक्षक थे वोह सभी अपने अपने इतिहास रुपयों से लिखवाकर आज महान बन गये हें लेकिन कर्नल तोड़ और दुसरे इतिहासकारों ने राजस्थान के इन दलालों की पोल खोल कर रख दी हे कोटा पर अंग्रेजों को भगा कर जनता ने कब्जा किया मेहराब खा और लाला हर दयाल का इतिहास कोटा में सिर्फ इसीलियें गम कर दिया गया के कहीं इस इतिहास से राजाओं की देश के साथ गद्दारी और अंग्रेजों की गुलामी के किस्से आम ना हो जाएँ यहाँ मेहराब खान शहीद के मजार पर फुल चढाने पर पहरे इसलियें लगा दिए जाते हें के कहीं मेहराब खान के नाम से राजा रजवाड़ों की अन्रेजों की दलाली और देश से गद्दारी का इतिहास ना खुल जाये ऐसे हजारों किस्से हे जो राजस्थान की कोख में छुपे हें हें .
३० मार्च १९४९ को देश के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जब राजस्थान के २२ रियासतों को मिलाकर एक राजस्थान की घोषणा करके गये तो सबसे पहले कोटा रियासत ने राजस्थान में शामिल होने की पहल कर राजस्थान की स्थापना की बुनियाद में अपनी भूमिका निभाई और इसीलियें राजस्थान की पहली राजधानी कोटा को बनाया गया कोटा के दरबार को यहाँ का राज्यपाल बनाया गया , राजस्थान की स्थापना में टोंक रियासत ने अपना सब कुछ राजस्थान सरकार को समर्पित कर दिया और खुद फकीर हो गये , राजस्थान की इस लड़ाई में अंग्रेजों ने यहाँ की जनता पर काफी ज़ुल्म भी ढहाए हें यहाँ बांसवाड़ा में १५०० आदिवासियों ,सिरोही में २५०० लोगों का सामूहिक नरसंघार किया गया लेकिन राजस्थान की स्थापना पर इन सामूहिक नरसंहारों और आज़ादी के शहीदों को याद तक नहीं किया जाता हे केवल कंगूरे बने राजा महाराजा जो आज भी कानून को अपनी जेब में रख आकर राजा महाराजा बने हें सियासत और सम्मान उन लोगों के इर्द गिर्द ही घूमता हे ऐसे में राजस्थान दिवस काहे का हालत यह हें के ७२ साल बाद भी राजस्थान की अपनी भाषा राजस्थान को मान्यता दिलवाने के लियें यहाँ जनता को संघर्ष करना पढ़ रहा हे . खेर इस दिवस पर राजस्थान की स्थापना की नीव की ईंट बने शहीदों को नमन श्रद्धांजली और जो गद्दार आज मजे कर रहे हे उनके चेहरे जनता के सामने आयें इसी उम्मीद के साथ जय राजस्थान ......... . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.