नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » »

Written By आपका अख्तर खान अकेला on रविवार, 20 मार्च 2011 | 5:08 pm

यह वही पत्थर हें ...........

यह वही 
पत्थर हें 
जिन्हें मेने 
कल 
लोगों को 
ठोकरों से 
बचाने के लियें 
हटाये थे 
आज देख लो 
उन लोगों ने ही 
वही पत्थर 
ना जाने क्यूँ 
मेरे घर पर 
बरसाए हें . 
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
Share this article :

2 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

आज देख लो
उन लोगों ने ही
वही पत्थर
ना जाने क्यूँ
मेरे घर पर
बरसाए हें .

Saleem Khan ने कहा…

दोस्तों ! एक सामान्य पाठक और आम नागरिक की हैसियत से मेरा सवाल यह है कि क्या फेसबुक पर हर आदमी केवल औरतों से तथा कथित बिंदास बातें करने के लिए ही कम्प्यूटर का इस्तेमाल करता है ? क्या फेसबुक सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों और गरीबी, बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार , हिंसा और आतंकवाद जैसी गंभीर राष्ट्रीय समस्याओं पर नागरिकों के बीच परस्पर संवाद और विचार-विमर्श का मंच नहीं हैं ? इस कवि ने तो हर आदमी को एक ही पलड़े में तौल दिया है .इसलिए यह आदमियों का भी अपमान तो है ही , कविता में यह कहना कि काम वाली बाई द्वारा ( आदमी को ) भ्रमित करने के लिए (फेस बुक पर ) किसी जवान सुंदर लड़की की फोटो लगाई गयी है , घरेलू नौकरानियों के चरित्र पर लांछन लगाना और उन्हें अपमानित करना नहीं ,तो और क्या है ?

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.