अपनापन
हम पाँच लोग किसी परीक्षा की तैयारी के लिए शहर में कमरा लेकर रहने लगे .हम पाँचों ही अलग- अलग गाँवों के थे , लगभग घर से 350 - 400 कि.मी. दूर . चार-पांच दिन बाद ही मेरे पेट में जोर से दर्द होने लगा . दिल करने लगा अभी घर चला जाऊं , लेकिन रात को जाऊं कैसे ? साथियों को बताने से कतरा रहा था कि पता नहीं ये लोग मेरे दर्द को समझेंगे या नहीं ? मुझे घर की याद सताने लगी . घर में होता तो परिवार के लोग मेरे आगे-पीछे होते . मेरे एक साथी ने मेरी स्थिति भांपकर मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछा . मैंने पेट के दर्द के बारे में बताया तो उसने मुझे डांटना शुरू कर दिया .आपने हमें पहले बताया क्यों नही , अगर आपको कुछ हो जाता तो ? बाक़ी सारे भी उठकर मेरे पास आ गए . वे मुझे ऐसे डांट रहे थे जैसे कि बड़े भाई छोटे को डांट रहें हो . उनकी आँखों में दिल की गहराई से उनके दर्द को महसूस किया जा सकता था . वे मुझे जल्दी से उठाकर अस्पताल में ले गए . मैं एक दो दिन बाद ठीक हो गया . मुझे उनमें अपनेपन की झलक दिखाई दी . मुझे ये अहसास हो गया कि अपनापन केवल परिवार के सदस्यों में ही नहीं होता ,बल्कि दूसरों में भी महसूस किया जा सकता है .
1 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब, पर इस कहानी को कोई नाम नहीं दिया आपने
अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
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Thanks for your valuable comment.