हादसा,, हर पल रहा हैं
साथ ही तो, चल रहा हैं
धूप सर तक आ रही हैं
मोम जैसा गल रहा हैं
आज भी गुजरा हैं, ऐसे
जैसे पिछला कल रहा हैं
कश्तियाँ लौटेंगी अब तो
फिर से सूरज ढल रहा हैं
दोस्तों मुह फेर कर वो
हाथ ही तो,,मल रहा हैं
दफ्न करदो अबतो यारों
अब ना कोई, हल रहा हैं
साथ ही तो, चल रहा हैं
धूप सर तक आ रही हैं
मोम जैसा गल रहा हैं
आज भी गुजरा हैं, ऐसे
जैसे पिछला कल रहा हैं
कश्तियाँ लौटेंगी अब तो
फिर से सूरज ढल रहा हैं
दोस्तों मुह फेर कर वो
हाथ ही तो,,मल रहा हैं
दफ्न करदो अबतो यारों
अब ना कोई, हल रहा हैं
(हरीश भट्ट)
1 टिप्पणियाँ:
hrish ji bhaia bhut khubsurat andaaz or km alfaazon men bhtrin baaten khi hen mubark ho .akhtar khan akela kota rajsthan
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