सरकारें रेलगाड़ी की तरह होनी चाहिए , जो नियमों रुपी पटरियों पर दौड़ें . सत्ता परिवर्तन से विशेष अंतर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि पटरियां वहीं मौजूद हों , रेलगाड़ी पहली हो या दूसरी कोई फर्क नहीं , लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में सरकारें बैलगाड़ी की तरह हैं जो मनमर्जी के रास्ते अपनाती हैं . ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि भारतीय संविधान अवसर की समानता का अधिकार देता है , लेकिन हरियाणा सरकार ने इसके विरुद्ध चलकर अनुबंधित अध्यापक लगाए और अब वह इन्हें स्थायी करने की और बढ़ रही है .
पात्र अध्यापक उम्मीद लगाए बैठे थे कि शायद नए सत्र से नया अनुबंध सबको समान अवसर देते हुए प्रदान किया जाएगा , लेकिन इसके विपरीत सरकार ने अनुबंधित अध्यापकों का अनुबंध न सिर्फ बढाया अपितु वेतन वृद्धि , सर्विस बुक लागू करने I . D . नम्बर देने सम्बन्धी ऐसे तोहफे दिए हैं , जिससे लगता है कि इनको स्थायी किया जाना निश्चित है . हालाँकि यह कहा गया है उन अध्यापकों का अनुबंध नहीं बढ़ाया जाएगा जो अपात्र हैं . सरकार की दृष्टी में सिर्फ वही अपात्र है जो फर्जी सर्टिफिकेट से लगे . पात्रता पास होना कोई शर्त नहीं है जबकि वे सभी अध्यापक अपात्र घोषित होने चाहिए थे जो पात्रता परीक्षा पास नहीं कर पाए.
जिस भर्ती में वे व्यक्ति प्राथमिक शिक्षक लगे हुए हैं जिनके पास अध्यापन से सम्बन्धित कोई डिग्री नहीं , वे व्यक्ति एस.एस.मास्टर लगे हुए हैं जिनके पास बी.ए. में एस.एस. से सम्बन्धित कोई विषय नहीं . ऐसी भर्ती को आप कैसे जायज ठहराएंगे ? और क्या इन्ही कुछ अध्यापकों को निकाल देने से न्याय हो जाएगा ? जिस भर्ती में 70 % से अधिक अध्यापक हरियाणा सरकार द्वारा अध्यापक बनने की शर्तों ( पात्रता परीक्षा पास होने की शर्त ) पर खरे नहीं उतरते , उस भर्ती को रद्द क्यों नहीं किया जाना चाहिए ? यही प्रश्न सरकार के सामने है , लेकिन स्थायी भर्ती में काफी हद्द तक ईमानदारी निभाने वाली सरकार इस मामले में संदेह के घेरे में है .
ऐसा नहीं है कि पात्र अध्यापक ( पात्रता परीक्षा पास कर चुके उम्मीदवार ) खामोश हैं . सरकार के सामने आवाज़ उठाई गई है . न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया गया है . न्यायालय इन्हें स्थायी न करने का निर्देश दे चुका है .सरकार हर बार कहती है कि स्थायी भर्ती के बाद अनुबंधित अध्यापकों को निकाल दिया जाएगा , लेकिन स्थायी भर्ती ( 8400 प्राथमिक अध्यापक और कुछ अन्य पदों की भर्ती ) होने के बावजूद अनुबंधित अध्यापक अपने पदों पर कायम हैं . इतना ही नहीं सरकार धीरे - धीरे कदम बढ़ा रही है इन्हें स्थायी करने की ओर . वह कुछ अध्यापकों को निकालकर उस भर्ती को उचित ठहराने की कोशिश कर रही है , जिसमें कोई मैरिट नहीं बनी , आरक्षण की पालना नहीं की गई है .
हरियाणा सरकार का यह फैसला सिद्ध करता है कि सरकार मनमर्जी की मालिक है . न्याय करे या न करे यह उसकी इच्छा है . लाठी वाले की भैंस कहावत यहाँ पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है . कहने को हम आज़ाद भारत के निवासी हैं , हमें मौलिक अधिकार प्राप्त हैं लेकिन हमारी आज़ादी , हमारे अधिकारों का हनन आम बात है . इतना ही नही अधिकारों के सरंक्षक कहलाने वाले भी खामोश हैं , यही दुर्भाग्य है .
http://dsvirk.blogspot.com
1 टिप्पणियाँ:
सभी के अधिकारों का हनन हो रहा है पर वास्तविक दोषी कौन है.
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