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बारह रुपये । (कहानी)

Written By Markand Dave on बुधवार, 30 मार्च 2011 | 9:57 am

बारह रुपये । (कहानी)

 http://mktvfilms.blogspot.com/2011/03/blog-post_30.html

" आंखों में कोई  ख़्वाब, वल्क सा लगता है ।
  क़िस्सा-ए-दर्द-ओ-ग़म, कल्क सा लगता है ।"


( वल्क=पेड़ का छिलका; कल्क = कर्म का अशुभ फल )

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प्रिय मित्रों,

सन-१९७० की यह सत्य घटना है । पात्र के सारे नाम काल्पनिक हैं ।

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प्रकाश  आज  बहुत  खुश  था । शादी के बाद, करीब दो साल  पश्चात,पहली बार छुट्टी का आनंद लेने,  प्यारी बहना प्रभावती उसके घर  आ रही थीं, साथ में बहुत सुंदर, क्यूट-क्यूट, डेढ़ साल आयु का, प्रकाश का प्यारा-प्यारा, गोलु-भोलु भान्जा `प्रेम` भी आ रहा था । प्रकाश की माताजी भी आज बहुत खुश थीं ।

प्रकाश २३ साल का कुँवारा नवयुवक था और अपनी विधवा माताजी से साथ, इस बड़े शहर में, १०x१० के,एक छोटे से कमरे में भाड़े रहता था । हाल ही में B.COM. की पदवी हासिल करके, प्रकाश एक निजी कंपनी में क्लर्क की पोस्ट पर, प्रति माह दो हज़ार रुपए की  तनख़्वाह से काम पर चढ़ा था ।

हालाँकि,प्यारी बहन प्रभावती के आने की ख़बर पाते ही, प्रकाश और माताजी दोनों, थोड़े चिंताग्रस्त हो गए थे । एक तो, प्रकाश अपनी  कम तन्ख़्वाह के चलते, दो दिन पहले  ही  किरानावाले बनिए, दूधवाले का और दूसरे छोटे-मोटे बील चुकाने के बाद, प्रकाश की जेब में अब सिर्फ  दो सौ रुपये और कुछ चिल्लर ही बाकी बचा था ।

प्यारी बहना प्रभावती,शादी के बाद पहली बार, अपने बड़े भाई के घर आयें और भाई उसे एक अच्छी सी साड़ी भी न दिला सकें ? ऐसा कहीं होता है क्या..!! प्रेम के हाथ में भी तो कुछ रखना चाहिए..!! फिर, माताजीने  प्रकाश को ये भी याद कराया,  भले ही प्रभावती के साथ बहनोईजी  कौशलेन्द्र न आयें हो, पर उनके लिए एक पेंट और शर्ट का पिस तो भेजना ही चाहिए, वर्ना प्रभावती को अपने ससुराल में लजाना पड़े..!! वैसे, कौशलेन्द्र बहुत बड़े सरकारी अफ़सर थे, उनका स्वभाव भी बिलकुल संत जैसा था, ऐसे किसी रुपए या रिवाज़ों की उन्हें दरकार न  थीं ।

आखिर में, पैसों की सारी चिंता ईश्वर के भरोसे सौंप कर प्रकाश, बहन प्रभावती को लाने के लिए बस अड्डे पर पहुंचा । अपनी प्यारी बहन को बस में से उतरता देखकर, प्रकाश के दिलमें बहन के प्रति प्यार का जैसे उफान आ गया । बस अड्डा घर के बिलकुल पास होने के बावजूद, उसने तुरंत भान्जे प्रेम को प्रभावती के हाथों मे से लेकर, रिक्षा ले ली ।

कई माह के बाद, मिलने पर भी, प्रेम ने मामा को मानो पहचान लिया हो ऐसे, प्रकाश के साथ वह, अपनी तोतली ज़ुबान में बातें करने लगा । मामा-भान्जे को एकदूजे के साथ हँसी मज़ाक़ करते देख, प्रभावती की आँखों में अनुराग के बादल उमड़ आए । घर पर पहुँचते ही, माँ ने दौडकर प्रेम को अपने हाथों में उठा लिया और लगी उसे प्यार भरी चुम्मीओं से नहलानें..!! प्रकाश, प्रेम के साथ एक छोटा बच्चा सा बनकर खेलने लगा, माताजी और प्रभावती एकदूसरे का हालचाल पूछकर, सुख-दुःख की बातों में उलझ गई ।

कई महीनों बाद,बहन और भान्जे को मिलने की खुशी में दो दिन कैसे बीत गये, प्रकाश को पता ही न चला ।
हालाँकि, दो दिनों में, प्रेम के लिए आइसक्रीम, खिलौने, बहन को बाहर नाश्ता कराने ले जाना, इत्यादि में  तन्ख़्वाह के बाकी बचे दो सो रुपये भी खर्च हो गये । प्रकाश को अब कुछ और रुपए जुटाने की चिंता सताने लगी । माँ ने डरते-डरते आखिर प्रकाश को पूछ ही लिया की, क्या उसे कंपनी में से कुछ एडवांस रुपये मिल सकते थे? प्रकाश ने माँ को बताया की, उसने अपने बॉस से बात की थीं पर, अभी नयी-नयी नौकरी की वजह से बॉस ने एडवांस देने से इनकार कर दिया, मानो सोने के बोल,पानी के मोल हो गये ।

अपने भाई और माँ को चिंताग्रस्त पा कर, प्रभावती को,  दो ही दिन में, भाई के  घर में पैसों के संकट की मजबूरी का ध्यान आना स्वाभाविक था । अपने प्यारे भाई को ऐसे चिंतातुर स्थिति में  न देख पाने के कारण, प्रभावती ने बिना कुछ भी कहे, अपने पर्स में से, उसके पास पड़े हुए, एक हजार रुपये प्रकाश के हाथ में चुपचाप थमा दिए । छोटी बहन से रुपये लेते समय, प्रकाश का सर शर्म के मारे झुक गया, उसने रुपये लेने से इनकार भी किया, लेकिन वापस जाते समय, रुपये लौटा ने की शर्त पर, प्रकाश को रुपये देकर ही प्रभावतीने दम लिया । माँ ने भी प्रकाश से यही कहा की, "अभी रुपये रख लें, बाद में वैसे भी दस दिन के बाद तन्ख़्वाह मिलते ही, वापस कर देना..!!" माँ की बात सुनकर, प्रकाश के सर से मानो, चिंता का भारी बोझ हट गया ।

बहन से लिए हुए, हजार रुपये से प्रकाश की जेब, गर्म होते ही, उसने प्रभावती और माँ को बाज़ार में साथ ले जाकर, प्रभावती की पसंद की बढ़िया साड़ी, भान्जे प्रेम के लिए अच्छे वाले कैप्री और टी-शर्ट और बहनोई कौशलेन्द्रजी के लिए भी महँगेवाले पैन्ट-शर्ट पिस खरीदें । प्रभावतीके बार-बार मना करने पर भी, सब को साथ लेकर प्रकाश ने, शहर के बड़े-बड़े मंदिर-गार्डन-रॅस्टोरां और  शहर में  देखने योग्य सभी स्थान की सैर कराई । ऐसे ही आनंद-प्रमोद में दूसरे दो दिन और प्रकाश की जेब में से एक हजार रुपया कब-कैसे-कहाँ सरक गया, पता ही न चला । प्रकाश की जेब में अब फिर से कुछ चिल्लर के अलावा कुछ बाकी न बचा था । लेकिन, इस बार प्रकाश आश्वस्त था क्योंकि, प्रकाश को अपने एक घनिष्ठ मित्र ने,ज़रुरत पडने पर कुछ रुपये उधार देने का वादा किया था । फिर वैसे भी, दस-बारह दिन के बाद, तन्ख़्वाह भी तो हाथ में आने वाली थी ।

प्रकाश की जेब फिरसे खाली हो जाने की बात से बेख़बर, बेचारी बूढ़ी विधवा माँ, न जाने कब, अपने लाडले प्रेम से,प्यार करने का अवसर मिले, इसी आशंका से अपनी प्यारी बेटी प्रभावती और प्रेम के साथ जितना ज्यादा समय व्यतीत कर पाएं, वही आनंद बटोरने में व्यस्त थीं..!! प्रकाश भी अपने फिर से, तंग हुए हाथ की समस्या, प्रभावती और माँ को बता कर, उन्हें बिना वजह चिंता में डालना नहीं चाहता था ।

पर,  प्रकाश का भाग्य मानो उसकी कठोर परीक्षा लेना चाहता था । रोज़ की तरह, आज भी प्रकाश शाम को जब नौकरी से घर लौटा तब, प्रभावती प्रकाश को देखकर ज़ोर से रो पड़ीं । पूछने पर पता चला की, कौशलेन्द्रजी का पत्र आया था । उनको, पलक पर बहुत बड़ी, आँख की बिलनी (बम्हनी) निकल आई थीं और दर्द के कारण बुख़ार भी आया था । दवाई लेने के बावजूद उनको सारी रात ठीक से नींद भी नहीं आ रही थीं । माँ ने बताया, कौशलेन्द्रजी ने प्रभावती को तुरंत वापस बुलाया है ,शायद बम्हनी पर ज़रा सा नश्तर  रखकर, चीरफाड़ भी करनी पड़े..!!  इतना बताते हुए माँ और प्रभावती, दोनों फिर से रोने लगे । यह सुनकर प्रकाश गूँगा सा हो गया । प्रकाश का मन उदास हो गया, अभी तो वह और माँ , भान्जे प्रेम को मन भर लाड़ प्यार भी नहीं कर पाए थे और बस  इतनी जल्दी प्रेम को लेकर प्यारी बहन वापस चली जाएगी..!! फिर, प्रकाश ने अपने मन को आश्वासन दिया, वहाँ बहनोईजी अगर  बीमार है तो, प्रभावती और प्रेम को रोके रखना भी उचित नहीं है..!! ऐसे समाचार पाकर, प्रकाश के रोकने पर भी, बहन कहाँ रुकने वाली थीं? प्रभावती को,ससुराल जाते वक़्त, एक हजार रुपया लौटाने के लिए, प्रकाश उल्टे पाँव, तुरंत साइकिल लेकर ,अपने मित्र के पास रुपया उधार लेने दौड़ा । प्रकाश को अपने मित्र पर पूरा भरोसा था की, वह उसे उधार देने से इनकार नहीं करेगा ।

पर कहते हैं ना, मुसीबत जब आती है, तब चारों ओर से आती है । मित्र के  घर जाते ही, प्रकाश को पता चला की, एक सप्ताह के लिए वह बिज़नेस टूर पर, शहर से बाहर गया हुआ है । इस नये शहर में, एक ही मित्र था, जिसके पास प्रकाश रुपए उधार मांग सकता था । किसी सामान्य पहचानवालें से उसने कभी ऐसे लेन-देन के संम्बध जोड़े  नहीं थे, या फिर उसकी आर्थिक खस्ता हालत देखकर, दूसरा कोई भी उसके साथ, लेन देन का संम्बध जोड़ना नहीं चाहता था । अब..!! अब क्या होगा? प्रकाश के दिल को बहुत बड़ा सदमा लगा । बड़ा मायूस होकर, प्रकाश घर वापस लौटा । उसे घर आया देखकर माँ और बहन ने उसके सामने उम्मीद भरी निगाह से देखा । प्रकाश के बेबसीभरे चेहरे पर, हवाईयाँ उड़ती देख, समझदार बहन ने उसे दिलासा बंधाते हुए, बड़े प्यार से कहा," भाई, तुम मेरे हजार रुपये वापस करने की फ़िक्र मत करना, मुझे  घर वापस पहुंचने के लिए, सिर्फ `बारह रुपया` बसभाडा चाहिए, तुम  सिर्फ बारह रुपये की व्यवस्था कर देना । मुझे कल ही वापस लौट जाना चाहिए, तेरे बहनोई की चिंता मुझे सताए जा रही है । उनसे पीड़ा सहन न होती होगी,तभी उन्होंने मुझे पत्र लिखा है..!!" बस, बहन का इतना ही कहना थी की, प्रकाश  साइकिल लेकर फिर से एक बार, बिना कुछ खाए-पीए,  कहीं से भी, बारह रुपए जुटाने के लिए,  घर से बाहर निकल गया ।

पर, आज मानो भाग्य उसकी  कसौटी कर  रहा था । जिनके पास रुपया माँगना नहीं चाहिए, ऐसे लोगों के पास भी प्रकाश ने उधार माँगकर देख लिया । मगर सब ने, कुछ न कुछ बहाना बता कर प्रकाश से पीछा छुड़वा लिया । शाम होते ही प्रकाश हिम्मत हार गया । रास्ते में एक भिखारी को देखकर एक क्षण तो प्रकाश को ऐसा लगा, मानो वह भी एक सोफिस्टिकेटेड भिखारी ही है, जो सिर्फ बारह रुपये की भीख के लिए सारे शहर में दर दर भटक रहा है? थक हार कर प्रकाश, भिखारी के साथ ही, उसी दुकान की बेंच पर पत्थर की मूरत सा बनकर बैठ गया, मानो उसके शरीर का सारा लहू, किसी अज्ञात भय के मारे जम गया हो ।

देर रात, प्रकाश को जब होश आया तब, उसे लगा मानो कई युगों से वह यहाँ पत्थर की प्रतिमा बने बैठा हुआ था । अभी भी बहन के लिए, बारह रुपये जुटाने की चिंता, वैसी की वैसी बनी हुई  थीं ।  दुःखी मन से, बड़े मायूस होकर, करीब रात को एक बजे, प्रकाश जब घर में दाखिल हुआ, उसने प्रभावती और प्रेम को ग़हरी नींद में  पाया और  माँ..!! बूढ़ी माँ..!! कमरे का दरवाज़ा खुला छोड़े, दरवाज़े के पास ही, कुर्सी में, बेटे की  चिंता में, व्यग्र अवस्था में प्रकाश की राह निहारती बैठी हुई थीं । प्रकाश के चेहरे पर उदासी देखकर माँ समझ गई, बेटे की लाख कोशिश के बावजूद `बारह रुपये` जैसी मामुली रकम का  बंदोबस्त, बेटे से नहीं हो रहा था..!! प्रकाश को देखकर, माँ ने उठकर, प्रकाश के लिए कुछ नाश्ता निकालने की चेष्टा की पर, प्रकाश ने यह कहकर माँ को मना कर दिया की, उसे भूख नहीं थीं, रात भी बहुत हो गई थीं, फिर ज़रा  भी आवाज़ होगी तो, प्रभावती और प्रेम की नींद खराब हो जाएगी । इतना कहकर, प्रकाश अपना बिस्तर लेकर, बहार बरामदेमें सोने के लिए चला गया । बिस्तर पर लेटते ही, बूढ़ी विधवा माँ की आंखे थकान के कारण, ना जाने कब लग गई, पता न चला..!!

सुबह सूरज उगने से पहले, जब माताजी  की आँख खुली, उन्होंने देखा..!!  प्रभावती और प्रेम अभी भी सो रहे थे और प्रकाश अपना बिस्तर दरवाज़े के पास छोड़ कर, सवेरे-सवेरे कहीं बाहर जा चुका था । माँ ने ये सोचकर मन को समझाया की, प्रकाश के किसी  दोस्त ने उसे  रुपया देने का वादा किया होगा, शायद, वही लेने के लिए, बिना बताए बाहर चला गया होगा..!! वैसे, आज सुबह नौं बजे की बस से प्रभावती को भी तो, उसके ससुराल जो भेजना था..!!

प्रकाश ने, सुबह घर से बाहर निकलते ही, कहीं से रुपए उधार जुटाने की, बात सोचना शुरु कर दी । आज प्रभावती को वापस जाना था और प्रकाश अपनी खाली ज़ेब की वजह से लाचार था । कल जिन दोस्तों के पास हाथ फैला कर, भिखारी की भाँति, वह खड़ा रहा था, उनके अलावा, कोई दोस्त अगर बाकी रह गया हो तो, उनके नाम भी याद करते-करते, प्रकाश अपनी सोसायटी के बाहर चौराहे पर स्थित,`ममता हेर कटिंग सलुन` के पास, एक बेंच पर जाकर बैठ गया । चिंताग्रस्त चेहरा लेकर, बैठे-बैठे सुबह के सात होने को आए । चौराहे के आसपास की, सभी दुकानें धीरे-धीरे खुलने लगी थीं । प्रकाश विचार शून्य मन से, ये नज़ारा देखता रहा । इतने में ही,`ममता हेर कटिंग सलून` के प्रोप्रायटर/ कर्मचारी और सभी ग्राहक के सुख-दुःख के साथी, बाबूलाल नाई दुकान खोलने आए । सवेरे-सवेरे, प्रकाश को हताश चेहरा लेकर, अपनी दुकान के बाहर बेंच पर बैठा पाया, तुरंत बाबुलाल ने पूछा, " क्यों प्रकाशजी, आज इतनी जल्दी, सवेरे-सवेरे यहाँ? आपकी बहन और भान्जा आये थे ना,वापस गये क्या? प्रेम किधर है?"

बस, बाबूलाल का  इतना पूछना ही था की, पता नहीं क्यों..!! बिना कुछ सोचे, बाबुलाल के पास, अपना मन हलका करने के लिए, प्रकाश ने, अपनी सारी परेशानी, शुरु से अंत तक, बयान करदी । प्रकाश की दुःखभरी बातें ख़त्म होने तक, बाबूलाल हाथ में चाभी का गुच्छा पकड़े, बिना,कुछ बोले, खड़े-खड़े, प्रकाश के दिल से निकली हुई भड़ास सुनते रहे । प्रकाश की बात ख़त्म होते ही, बाबूलाल ने अपनी जेब से `बारह रुपये` निकाले और प्रकाश के हाथ में, ऐसा कहकर थमा दिये की," आपकी बहन और भान्जा, रिश्ते में मेरी भी बहन और भान्जे जैसे ही हैं । इनकार मत करना, ये रुपया आप रख लीजिए और बहन को खुशी-खुशी ससुराल विदा करें ।  जल्दी जाइए, कहीं बस छूट ना जाएं ।" इतना कहकर बाबूलाल दुकान का ताला खोलने में व्यस्त हो गये । प्रकाश के मन का सारा भार एक  ही क्षण में हवा हो गया, मानो बाबूलाल के रुप में,  स्वयं भगवान उसे सहायता पहुँचाने आ गये..!!

प्रकाश  अपने घर की और भागा, वहाँ जाकर देखा तो, प्रभावती, प्रेम और माँ, तीनों सामान बाँधकर, तैयार बैठे थे । बिना कुछ  कहे-सुने, प्रकाश ने छोटे भान्जे प्रेम और  प्रभावती की बैग को दोनों हाथों में उठाया और बस अड्डे की ओर चल दिया, माँ और प्रभावती भी प्रकाश के पीछे चल दिए । बस अड्डे पर पहुंचते ही, बस में सामान जमा के, प्रभावती और प्रेम को, बस की सीट पर ठीक से बिठाया । बस छूटने ही वाली थीं की, प्रेम बस की खिड़की में से मामा के पास जाने के लिए ज़िद करके रोने लगा ।   

समय होते ही बस चल पड़ी और बस अड्डे के बाहर निकली उसी समय, एक पल के लिए, भाई-बहन की नजर एक हुई, मानो बहन की आंखें अपने भाई को, सही समय पर `बारह रुपये` की व्यवस्था करके, खुद को अपने बीमार पति के पास  भेजने के लिए,  सच्चे दिल से आशीर्वाद दे रही हो..!!

बस अड्डे से बाहर निकलते समय, थक कर चूर हुआ, प्रकाश अपनी आँख को उँगली से मलने लगा, तब माँ ने प्यार से पूछा," बेटे, रो रहा है क्या?"

प्रकाश ने अपनी आंख मलते  हुए जवाब दिया," नही  रे माँ, आंख में, ज़रा सी मिट्टी गिरी है ना ?"

हालाँकि, माँ अपने बेटे की मजबूरी के आंसु को न पहचान सके, इतनी भी भोली थोडे ही ना होती है..!!

आज भी, मेरे मन में एक सवाल घूम रहा है," क्या दुनियाभर के बाबूलाल नाई, ऐसे ही संवेदनशील इन्सान होंगें? जो अपनी दुकान की बोनी किए बगैर ही, किसीको भी सवेरे-सवेरे उधार रुपया दें?"

दोस्तों, अगर आप को ये सवाल का जवाब मालूम है तो, मुझे भी बताएं प्ली..झ..!!

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"ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३०-०३ २०११.
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