अजन्मा बच्ची का ईश्वर से विवाद ।
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/03/blog-post_18.html=======
प्रिय दोस्तों,
एक ग़रीब धर की अजन्मा बच्ची ने, सरकार में बैठे समृद्ध बधिर बाबुओं के बारेमें, ईश्वर को एक पत्र लिखा है । वैसे तो यह पत्र काल्पनिक है और किसी भी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया है , फिर भी उस अजन्मा बच्ची की वेदना और बेबसी का भाव ईश्वर के द्वारा, सरकार के कानों तक अगर पहुंच सके, तभी यह होली का पर्व मनाना सही अर्थ में सार्थक रहेगा । वर्ना,
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अपने देश की आज़ादी के ६०+ साल के बाद भी, देश में भ्रष्टाचार के अनंतरित क़िस्से नये नये वर्ल्ड रिकार्ड बना रहे हैं।
देश की सामान्य जनता की परेशानियाँ दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है । जनता की जान लेवा समस्याओं के प्रति, मूक और बधिरता धारण किए हुए, ब्लैक केट कमान्डॉ की रक्षा में आरक्षित, सरकारी आका की नींद कुंभकरण का स्थायी स्वरूप धारण कर, दिनोंदिन और गहरी होती जा रही है । ऐसे में भारत में ग़रीब टूटी सी खोली में जन्म लेने का ईश्वर का वरदान (!!) पाकर, एक अजन्मा बच्ची फूट-फूट कर रोने लगती है और ईश्वर से प्रार्थना करती है की, वह चाहे तो उसे पत्थर का रुप धारण करने का शाप दें, मगर वह भारत में ग़रीब के धर में पैदा होना नहीं चाहती..!!
विधाता के लेख का सहारा लेकर, ईश्वर उसे ग़रीब की खोली में ही जन्म लेने का आदेश करते हैं ।
अब आगे क्या हुआ..!! यह बच्ची भारत के ग़रीब परिवार की दारुण स्थिति का बयान अपने लफ़्ज़ों में करती है ।
ज़रा आप भी सुनिए क्या कहती है यह नादान अजन्मा बच्ची..!!
असहनीय जीवन ।
हे प्रभु, कैसी स्थिति में जीते हैं ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
चिंता को ओढ़ कर सोते हैं सिर पर,
नींदमें भी फूट-फूट कर रोते हैं ये लोग ।
सपने में बहती है यहां दूध घी की नदियां,
मिल जाए दूध ज़रा सा रोते रतन को,
गो-कुल का उत्सव मनाते हैं ये लोग..!!
मजबूर सांसों का भटकता ये कारवाँ,
तपती धरा और दुखता ये छाला ।
जूतों को भी अब तो शर्माते है ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
पहनता है वक़्त दर्द का ये थिगड़ा,
फटा हाल नूर चेहरे का अब उजड़ा..!!
मिल जा ये अगर कोई उतरा कफ़न तो,
ईद और दीवाली मनाते हैं ये लोग ।
ज़रा सी खुशीमें ये राजी हो जाते,
मिले ग़म अगर खुशी से अपनाते ।
विधाता को भी अक्सर रुलाते ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
प्यारे दोस्तों, सारे देश की आधे से ज्यादा जनता, सुबह शाम, एक वक़्त की रोटी के लिए तरसती हो, ऐसे में उनको पहनने के नाम पर जब, आतंकी मौत का कफ़न मिलें, ऐसे में कोई अजन्मा जीवात्मा भारत में जन्म लेने से, खुद ईश्वर से वाद-विवाद करने पर उतर आए? यह सर्वथा संभव सा लगता है..!!
सच बात तो यह है की, आज हमें अमेरिका से दादागीरी, अंग्रेजों की चतुराई, जापान का देश प्रेम, इसरायल की हिम्मत, सउदी अमीरात की अमीरी, चाइना की शठता, जैसी कठोर नीति अपनाने की जरुरत है ।
वैसे भी इतिहास कभी भी का-पुरुषों को माफ़ कभी नही करता । देश को आज बिरबल जैसे बुद्धिशाली वज़ीरों की जरुरत है । जो वक़्त आने पर, देश के लिए जान की बाज़ी लगाने तक का इरादा रखते हो । देश आज भी वीर भगत सिंह, सावरकर, चंद्रशेखर आज़ाद के आदर्श को आजतक भूला नहीं है ।
यह भी सच है की, कोई भी पिता अपने संतान के लिए, विपुल जायदाद न छोड़ जाएँ तो कोई बात नहीं मगर, पुराने सवालों का बेतहाशा ऋण छोड़ कर कभी मरना नही चाहता ।
अंत में बड़े भारी मन से सिर्फ इतना कहने को मन करता है । सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को डरने की बिलकुल जरुरत नहीं है, क्यों की..!!
" यस्मिन रूष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनाડડगमः ।
निग्रहोડनुग्रहो नास्ति स रूष्टः किं करिष्यति ॥ " - चाणक्य
अर्थात - "जिसकी नाराज़गी नपुंसक है । जिसकी प्रसन्नता दरिद्र है । जिनमें दंड करने का सामर्थ्य नहीं है और जो दूसरों की सहायता नहीं कर सकता । ऐसे राजा के क्रोध से भयभीत होने की जरुरत नहीं है ।" - चाणक्य ।
दोस्तों, क्या आप नाइन्साफ़ि के विरुद्ध आवाज़ उठाने से डरते हैं?
वैसे, मुझे पता है, आपका उत्तर क्या होगा..!!
मार्कण्ड दवे । दिनांक - १८-०३-२०११.
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/03/blog-post_18.html=======
प्रिय दोस्तों,
एक ग़रीब धर की अजन्मा बच्ची ने, सरकार में बैठे समृद्ध बधिर बाबुओं के बारेमें, ईश्वर को एक पत्र लिखा है । वैसे तो यह पत्र काल्पनिक है और किसी भी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया है , फिर भी उस अजन्मा बच्ची की वेदना और बेबसी का भाव ईश्वर के द्वारा, सरकार के कानों तक अगर पहुंच सके, तभी यह होली का पर्व मनाना सही अर्थ में सार्थक रहेगा । वर्ना,
"क्यों रचाएँ रंगोली जब, फूट-फूट कर मैं रो - ली?
क्यों मनाए होली जब, फूटी किस्मत संग हो - ली?
जूझ रहा है वक़्त अब तो,जूझता खुद भगवान भी,
क्यों करें ठिठोली जब, लूटे अस्मत हम जो - ली?"=======
अपने देश की आज़ादी के ६०+ साल के बाद भी, देश में भ्रष्टाचार के अनंतरित क़िस्से नये नये वर्ल्ड रिकार्ड बना रहे हैं।
देश की सामान्य जनता की परेशानियाँ दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है । जनता की जान लेवा समस्याओं के प्रति, मूक और बधिरता धारण किए हुए, ब्लैक केट कमान्डॉ की रक्षा में आरक्षित, सरकारी आका की नींद कुंभकरण का स्थायी स्वरूप धारण कर, दिनोंदिन और गहरी होती जा रही है । ऐसे में भारत में ग़रीब टूटी सी खोली में जन्म लेने का ईश्वर का वरदान (!!) पाकर, एक अजन्मा बच्ची फूट-फूट कर रोने लगती है और ईश्वर से प्रार्थना करती है की, वह चाहे तो उसे पत्थर का रुप धारण करने का शाप दें, मगर वह भारत में ग़रीब के धर में पैदा होना नहीं चाहती..!!
विधाता के लेख का सहारा लेकर, ईश्वर उसे ग़रीब की खोली में ही जन्म लेने का आदेश करते हैं ।
अब आगे क्या हुआ..!! यह बच्ची भारत के ग़रीब परिवार की दारुण स्थिति का बयान अपने लफ़्ज़ों में करती है ।
ज़रा आप भी सुनिए क्या कहती है यह नादान अजन्मा बच्ची..!!
असहनीय जीवन ।
हे प्रभु, कैसी स्थिति में जीते हैं ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
चिंता को ओढ़ कर सोते हैं सिर पर,
नींदमें भी फूट-फूट कर रोते हैं ये लोग ।
सपने में बहती है यहां दूध घी की नदियां,
मिल जाए दूध ज़रा सा रोते रतन को,
गो-कुल का उत्सव मनाते हैं ये लोग..!!
मजबूर सांसों का भटकता ये कारवाँ,
तपती धरा और दुखता ये छाला ।
जूतों को भी अब तो शर्माते है ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
पहनता है वक़्त दर्द का ये थिगड़ा,
फटा हाल नूर चेहरे का अब उजड़ा..!!
मिल जा ये अगर कोई उतरा कफ़न तो,
ईद और दीवाली मनाते हैं ये लोग ।
ज़रा सी खुशीमें ये राजी हो जाते,
मिले ग़म अगर खुशी से अपनाते ।
विधाता को भी अक्सर रुलाते ये लोग,
कभी हँसते हैं कभी रोते है ये लोग..!!
प्यारे दोस्तों, सारे देश की आधे से ज्यादा जनता, सुबह शाम, एक वक़्त की रोटी के लिए तरसती हो, ऐसे में उनको पहनने के नाम पर जब, आतंकी मौत का कफ़न मिलें, ऐसे में कोई अजन्मा जीवात्मा भारत में जन्म लेने से, खुद ईश्वर से वाद-विवाद करने पर उतर आए? यह सर्वथा संभव सा लगता है..!!
सच बात तो यह है की, आज हमें अमेरिका से दादागीरी, अंग्रेजों की चतुराई, जापान का देश प्रेम, इसरायल की हिम्मत, सउदी अमीरात की अमीरी, चाइना की शठता, जैसी कठोर नीति अपनाने की जरुरत है ।
वैसे भी इतिहास कभी भी का-पुरुषों को माफ़ कभी नही करता । देश को आज बिरबल जैसे बुद्धिशाली वज़ीरों की जरुरत है । जो वक़्त आने पर, देश के लिए जान की बाज़ी लगाने तक का इरादा रखते हो । देश आज भी वीर भगत सिंह, सावरकर, चंद्रशेखर आज़ाद के आदर्श को आजतक भूला नहीं है ।
यह भी सच है की, कोई भी पिता अपने संतान के लिए, विपुल जायदाद न छोड़ जाएँ तो कोई बात नहीं मगर, पुराने सवालों का बेतहाशा ऋण छोड़ कर कभी मरना नही चाहता ।
अंत में बड़े भारी मन से सिर्फ इतना कहने को मन करता है । सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को डरने की बिलकुल जरुरत नहीं है, क्यों की..!!
" यस्मिन रूष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनाડડगमः ।
निग्रहोડनुग्रहो नास्ति स रूष्टः किं करिष्यति ॥ " - चाणक्य
अर्थात - "जिसकी नाराज़गी नपुंसक है । जिसकी प्रसन्नता दरिद्र है । जिनमें दंड करने का सामर्थ्य नहीं है और जो दूसरों की सहायता नहीं कर सकता । ऐसे राजा के क्रोध से भयभीत होने की जरुरत नहीं है ।" - चाणक्य ।
दोस्तों, क्या आप नाइन्साफ़ि के विरुद्ध आवाज़ उठाने से डरते हैं?
वैसे, मुझे पता है, आपका उत्तर क्या होगा..!!
मार्कण्ड दवे । दिनांक - १८-०३-२०११.
1 टिप्पणियाँ:
डरता कोई नही मगर असर कहीं नही होना।
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