धुंध में गुम एक लंबे खौफ के पहरे में था.
उम्र भर मैं गर्दिशे-हालात के कमरे में था.
कांपते थे पांव और आंखें भी थीं सहमी हुईं
हर कदम पर वो किसी अनजान से खतरे में था.
ढूंढती फिरती थी दुनिया हर बड़े बाज़ार में
वो गुहर आंखों से पोशीदा किसी कचरे में था.
मुन्तजिर जिसके लिए दिल में कई अरमान थे
उम्र भर वो तल्खिये-हालात के कुहरे में था.
गौर से देखा तो आंखें बंद कर लेनी पड़ीं
गम का एक सैलाब सा हंसते हुए चेहरे में था.
----देवेंद्र गौतम
2 टिप्पणियाँ:
गौर से देखा तो आंखें बंद कर लेनी पड़ीं
गम का एक सैलाब सा हंसते हुए चेहरे में था.
बहुत खूब ,
पढ़ लेते हैं पढ़ने वाले लहरों की मर्जी और तदबीरें भी ....
मातम न मना ओ प्यार मेरे, देख अभी मैं जिन्दा हूँ |
रुखसत न हुआ अभी जनाजा मेरा, इंतज़ार है तेरी वफ़ा का मुझे |
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.