स्वराज्य करुण
विश्व पानी दिवस 22 मार्च को था . लेकिन लीबिया के गृह-युद्ध ,वहाँ हो रहे अमेरिकी हमले, और हमारे अपने देश की राजनीतिक ,सामाजिक और आर्थिक उठा-पटक की ख़बरों के भयानक शोर में पानी दिवस की दर्द भरी आवाज दब कर रह गयी. जल-संसाधन और पेयजल विभाग वालों में भी इसे लेकर कोई गंभीरता या कोई खास दिलचस्पी नज़र नहीं आयी .. अगर कहीं कुछ जागरूक लोगों और संस्थाओं ने पानी दिवस मनाया भी होगा ,तो इस घटना को अधिकतर अखबारों या इलेक्ट्रानिक खबरिया चैनलों में सुर्खियाँ नहीं मिल पायी .
इंसान के ज़िंदा रहने के लिए पानी सबसे ज़रूरी है, पर हालात देख कर लगा कि मीडिया के लिए और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा. काश ! हर तरह के वाद-प्रतिवाद , हर प्रकार की हिंसा -प्रतिहिंसा और हर प्रकार की उठा-पटक को छोड़ कर आज का इंसान सबसे पहले पानी बचाने के तौर-तरीकों के बारे में सोचता ,तो शायद दुनिया की तस्वीर ही कुछ और होती . बहरहाल पानी दिवस की उम्मीदों पर निराशा का पानी फिर गया . जब तमाम तरह की समस्याओं का पानी हमारे सिर के ऊपर से बहने लगेगा , तब कहीं शायद हमें इसकी अहमियत का अंदाजा होगा .अभी तो फीकी यादों को साथ लिए हमारे बीच से चला गया एक और विश्व पानी दिवस . देखें , अगले साल इसके आने पर क्या होता है ?
जापान में अभी कोई दस एक रोज पहले और दक्षिण भारत के तमिलनाडु में कोई छह साल पहले 26 दिसम्बर 2004 को आयी सुनामी की विनाशकारी लहरों से जय-प्रलय की भयानक तस्वीर बनने के बावजूद दुनिया में प्राणी-जगत के लिए पानी का महत्व कभी कम नहीं होगा . मुझे लगता है कि पानी और प्राणी ,दोनों एक दूसरे के पूरक हैं .दोनों में काफी ध्वनि-समानता भी है. इनमे से एक के बिना दूसरे का अस्तित्व कायम रह पाना मुश्किल है. प्राणी-जगत के प्रत्येक जीव-जंतु के ज़िंदा रहने के लिए लिए पानी ज़रूरी है. मानव तो इस प्राणी-जगत का सबसे बड़ा जंतु है .यह जंतु ही जनता के रूप में भौतिक दुनिया को संचालित कर रहा है. हर जंतु की तरह मानव का प्राण-तत्व भी पानी में बसा हुआ है. दुनिया में नील नदी घाटी से सिंधु-घाटी और गंगा , गोदावरी , महानदी से लेकर नर्मदा घाटी तक हर कहीं मानव-जीवन , मानव सभ्यता और मानव-संस्कृति का विकास पानी की ज़रूरत को ध्यान में रख कर नदियों के ही किनारे-किनारे हुआ है. पानी के इसी महत्व को देखकर सैकड़ों साल पहले रहीम कवि कह गए हैं--
रहिमन पानी राखिये , बिन पानी सब सून ,
पानी गए न ऊबरे मोती,मानुष चून !
मानव-जीवन में पानी की महिमा अपरम्पार है. प्रकृति हमे मानसून की बारिश के रूप में हर साल भरपूर पानी मुफ्त में देती है .जो चीज मुफ्त मिले , देखा गया है कि इंसान उसकी कोई कदर नहीं करता . यही कारण है कि आज का मानव बेरहमी से पानी बर्बाद कर रहा है और जल-संसाधनों को बचाने में उसकी कोई खास दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही है.सब कुछ सरकार और सरकारी दफ्तरों के भरोसे छोड़ दिया है .अपने आस-पास देखें तो इसका सबूत अपने आप मिल जाएगा .हम ज्यादा से ज्यादा संख्या में नल-कूप खोद कर धरती के गर्भ से हर दिन लाखों-करोड़ों लीटर पानी खींच लेना चाहते हैं ,लेकिन भूमिगत जल-स्तर कैसे कायम रहे और कैसे बढे , इस बारे में व्यक्तिगत रूप से सोचने वालों की संख्या हमारे बीच कितनी है , यह आप स्वयं देख लीजिए .
पानी की बर्बादी रोकने , साफ़ और स्वास्थय वर्धक , गुणवत्ता पूर्ण पानी की उपलब्धता पक्की करने इस दिशा में जन-जागरण के लिए संयुक्त-राष्ट्र संघ की महासभा के पारित प्रस्ताव के अनुसार दुनिया में 22 मार्च 1993 से हर साल 22 मार्च को विश्व-पानी दिवस मनाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश अपने यहाँ इस दिन भू-जल और सतही जल की रक्षा और उसकी सफाई और गुणवत्ता कायम रखने के विभिन्न उपायों पर जनता के बीच चर्चा -परिचर्चा सहित कई आयोजन करते हैं. पिछले साल का यह दिवस 'स्वस्थ विश्व के लिए स्वच्छ पानी 'विषय पर केन्द्रित था . इस बार इसे शहरी जल-आपूर्ति से जुड़ी चुनौतियों पर केन्द्रित किया गया पर्याप्त पानी के लिए अच्छे मानसून की ज़रूरत होती और अच्छा मानसून तभी आएगा ,जब बादलों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले हरे-भरे सघन जंगल धरती पर होंगे . इसलिए पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधों की रक्षा करते हुए पर्याप्त संख्या में नया वृक्षारोपण भी होना चाहिए .विशेषज्ञों के अनुसार वृक्षों की जड़े भूमिगत पानी के लेबल को बनाए रखने में सहायक होती हैं . भू-जल स्तर बढ़ाने और कायम रखने में तालाबों और कुओं का भी बड़ा योगदान होता है. हमें इन परम्परागत जल-स्रोतों को बचाने और अधिक से अधिक संख्या में इनका निर्माण कराने की ज़रूरत है . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य में पिछले साल गर्मियों में इसके लिए जनता के सहयोग से एक बड़ा अभियान चला कर काफी उल्लेखनीय कार्य किए गए. हजारों की संख्या में लोगों ने आगे आकर तालाबों और नदियों के गहरीकरण और उनकी साफ़-सफाई के लिए स्वप्रेरणा से श्रमदान किया. डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश में सघन वृक्षारोपण के लिए जन-भागीदारी से 'हरियर छत्तीसगढ़' अभियान भी चलाया. ऐसी पहल देश के अन्य राज्यों में भी होनी चाहिए. मानव होने के नाते पानी की बर्बादी रोकना हम सबकी व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी है .
कहते सब हैं लेकिन मानता कौन है ? हमारे यहाँ तो सरकार या नगर-पालिकाएं सार्वजनिक नलों में टोटियां लगवाती हैं और अगले ही दिन मुहल्ले के ही कुछ बदमाश किस्म के लोग रातों-रात उन्हें निकाल कर रख लेते हैं ,या नहीं तो बाज़ार में , या फिर कबाड़ी के यहाँ बेच कर मिले पैसों से शराब पी जाते हैं .वे यह नहीं सोचते कि सार्वजनिक नलों का पूरा इंतजाम आखिर जनता के ही दिए गए टैक्स के पैसों से किया जाता है . मोहल्ले के लोग जान कर भी चुप रहते हैं ,कौन बैठे-ठाले किसी बदमाश से पंगा ले और अपनी इज्जत के साथ-साथ समय भी बर्बाद करे . इस चक्कर में अनमोल पानी टोंटी विहीन नलों से व्यर्थ बहता रहता है .
घटते भू-जल को बढाने के लिए घरों और सरकारी भवनों की छतों पर बारिश के पानी को रोककर रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली के ज़रिये उसे जमीन के भीतर पहुंचाने का अच्छा एक उपाय किया जा सकता है. यह तकनीक ज्यादा खर्चीली भी नहीं है. कई राज्य सरकारों ने नगरीय निकायों के ज़रिये इसके लिए नियम भी लागू करवाया है, लेकिन नागरिकों की उदासीनता और नियम का पालन करवाने वाले सरकारी अफसरों और कर्मचारियों की लापरवाही से इस अच्छी योजना का कोई असर होता नज़र नहीं आ रहा है. अब सरकार और नगर-पालिका बेचारी अकेली करे भी तो क्या ? नालियों का गंदा पानी और फैक्टरियों का प्रदूषित जल तालाबों और नदियों में नहीं जाना चाहिए,ताकि जल-स्रोत साफ़ रहें और उनका इस्तेमाल करने वाले बीमार न हों , यह सैद्धांतिक बात है. व्यवहार में क्या होता है, सब जानते हैं .शहरों से गाँवों तक देश भर में ऐसे कई उदाहरण हैं. पवित्र गंगा का पानी भी आज प्रदूषित हो रहा है. कौन नहीं जानता कि उसे साफ़ करने के लिए प्रोजेक्ट बना कर बड़े-बड़े भक्त (बगुला भगत ) करोड़ों-अरबों रूपयों पर हाथ साफ़ कर गए .
इंसान आधुनिक युग में पढ़-लिख कर ,विद्वान बन कर अंतरिक्ष में भी पहुँच गया , लेकिन मानव-बसाहटों में साफ़ और गुणवत्तापूर्ण पानी की व्यवस्था आज भी अनेक देशों के लिए एक बड़ी और कड़ी चुनौती है, जिनमे हमारा भारत भी शामिल है . बहरहाल आज विश्व पानी दिवस या जल दिवस पर ईश्वर इस मानव समाज को पानी के महत्व के बारे में सोचने-समझने की शक्ति दे, यही प्रार्थना है ! आमीन !
स्वराज्य करुण पानी की बर्बादी रोकने , साफ़ और स्वास्थय वर्धक , गुणवत्ता पूर्ण पानी की उपलब्धता पक्की करने इस दिशा में जन-जागरण के लिए संयुक्त-राष्ट्र संघ की महासभा के पारित प्रस्ताव के अनुसार दुनिया में 22 मार्च 1993 से हर साल 22 मार्च को विश्व-पानी दिवस मनाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश अपने यहाँ इस दिन भू-जल और सतही जल की रक्षा और उसकी सफाई और गुणवत्ता कायम रखने के विभिन्न उपायों पर जनता के बीच चर्चा -परिचर्चा सहित कई आयोजन करते हैं. पिछले साल का यह दिवस 'स्वस्थ विश्व के लिए स्वच्छ पानी 'विषय पर केन्द्रित था . इस बार इसे शहरी जल-आपूर्ति से जुड़ी चुनौतियों पर केन्द्रित किया गया पर्याप्त पानी के लिए अच्छे मानसून की ज़रूरत होती और अच्छा मानसून तभी आएगा ,जब बादलों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले हरे-भरे सघन जंगल धरती पर होंगे . इसलिए पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधों की रक्षा करते हुए पर्याप्त संख्या में नया वृक्षारोपण भी होना चाहिए .विशेषज्ञों के अनुसार वृक्षों की जड़े भूमिगत पानी के लेबल को बनाए रखने में सहायक होती हैं . भू-जल स्तर बढ़ाने और कायम रखने में तालाबों और कुओं का भी बड़ा योगदान होता है. हमें इन परम्परागत जल-स्रोतों को बचाने और अधिक से अधिक संख्या में इनका निर्माण कराने की ज़रूरत है . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य में पिछले साल गर्मियों में इसके लिए जनता के सहयोग से एक बड़ा अभियान चला कर काफी उल्लेखनीय कार्य किए गए. हजारों की संख्या में लोगों ने आगे आकर तालाबों और नदियों के गहरीकरण और उनकी साफ़-सफाई के लिए स्वप्रेरणा से श्रमदान किया. डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश में सघन वृक्षारोपण के लिए जन-भागीदारी से 'हरियर छत्तीसगढ़' अभियान भी चलाया. ऐसी पहल देश के अन्य राज्यों में भी होनी चाहिए. मानव होने के नाते पानी की बर्बादी रोकना हम सबकी व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी है .
कहते सब हैं लेकिन मानता कौन है ? हमारे यहाँ तो सरकार या नगर-पालिकाएं सार्वजनिक नलों में टोटियां लगवाती हैं और अगले ही दिन मुहल्ले के ही कुछ बदमाश किस्म के लोग रातों-रात उन्हें निकाल कर रख लेते हैं ,या नहीं तो बाज़ार में , या फिर कबाड़ी के यहाँ बेच कर मिले पैसों से शराब पी जाते हैं .वे यह नहीं सोचते कि सार्वजनिक नलों का पूरा इंतजाम आखिर जनता के ही दिए गए टैक्स के पैसों से किया जाता है . मोहल्ले के लोग जान कर भी चुप रहते हैं ,कौन बैठे-ठाले किसी बदमाश से पंगा ले और अपनी इज्जत के साथ-साथ समय भी बर्बाद करे . इस चक्कर में अनमोल पानी टोंटी विहीन नलों से व्यर्थ बहता रहता है .
घटते भू-जल को बढाने के लिए घरों और सरकारी भवनों की छतों पर बारिश के पानी को रोककर रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली के ज़रिये उसे जमीन के भीतर पहुंचाने का अच्छा एक उपाय किया जा सकता है. यह तकनीक ज्यादा खर्चीली भी नहीं है. कई राज्य सरकारों ने नगरीय निकायों के ज़रिये इसके लिए नियम भी लागू करवाया है, लेकिन नागरिकों की उदासीनता और नियम का पालन करवाने वाले सरकारी अफसरों और कर्मचारियों की लापरवाही से इस अच्छी योजना का कोई असर होता नज़र नहीं आ रहा है. अब सरकार और नगर-पालिका बेचारी अकेली करे भी तो क्या ? नालियों का गंदा पानी और फैक्टरियों का प्रदूषित जल तालाबों और नदियों में नहीं जाना चाहिए,ताकि जल-स्रोत साफ़ रहें और उनका इस्तेमाल करने वाले बीमार न हों , यह सैद्धांतिक बात है. व्यवहार में क्या होता है, सब जानते हैं .शहरों से गाँवों तक देश भर में ऐसे कई उदाहरण हैं. पवित्र गंगा का पानी भी आज प्रदूषित हो रहा है. कौन नहीं जानता कि उसे साफ़ करने के लिए प्रोजेक्ट बना कर बड़े-बड़े भक्त (बगुला भगत ) करोड़ों-अरबों रूपयों पर हाथ साफ़ कर गए .
इंसान आधुनिक युग में पढ़-लिख कर ,विद्वान बन कर अंतरिक्ष में भी पहुँच गया , लेकिन मानव-बसाहटों में साफ़ और गुणवत्तापूर्ण पानी की व्यवस्था आज भी अनेक देशों के लिए एक बड़ी और कड़ी चुनौती है, जिनमे हमारा भारत भी शामिल है . बहरहाल आज विश्व पानी दिवस या जल दिवस पर ईश्वर इस मानव समाज को पानी के महत्व के बारे में सोचने-समझने की शक्ति दे, यही प्रार्थना है ! आमीन !
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