कैसे रंगै बनबारी.....
( घनाक्षरी छंद)
सोचि-सोचि राधे हारी, कैसे रन्गै वनबारी,
कोऊ तौ न रंग चढे, नीले अंग वारे हैं |
बैजनी बैजंती माल,पीत पट कटि डारि,
ओठ लाल लाल, लाल,नैन रतनारे हैं |
हरे बाँस वंशी हाथ, हाथन भरे गुलाल ,
प्रेम रंग सनो 'श्याम, केश कज़रारे हैं ||
केसर अबीर रोरी,रच्यो है विशाल भाल,
रंग रंगीलो तापै, मोर-मुकुट धारे हैं ||
सखि ! कोऊ रंग डारौ, चढिहै न लालजू पै,
क्यों न चढ़े रंग, लाल , राधा रंग हारौ है |
सखि कहो नील-तनु , चाहे श्याम-घन सखि,
तन कौ है कारौ , पर मन कौ न कारौ है ||
राधाजू दुलारौ कहौ, जन जन प्यारौ कहो ,
रंग -रंगीलो पर मन उजियारौ है ||
ऐरी सखि ! जियरा के प्रीति रंग ढारि देऊ ,
श्याम रंग न्यारो चढे , साँवरो नियारो है ||
2 टिप्पणियाँ:
आनन्द आ गया पढकर्…………कुछ कहने मे असमर्थ हूँ।
होली की हार्दिक शुभकामना.
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