न होता कोई कत्ले आम,
मंदिर मस्जिद को रोता,
होते धर्म न इश्वर अल्लाह,
इक पालनहार ही होता॥
होता हर ओर एक ही रंग,
बस प्रेमी जमाना होता,
न आती कोई आफत,
न ही जंगे तराना होता॥
पेड़ मुस्लिम है न हिन्दू है,
अब भी जंगल में रहता,
पशु पक्षी और मौसम को,
जीवन का दान ही करता॥
क्या करें सभ्यता का अब,
जब सभ्य सभ्य से लड़ता,
अधनंगा जब आदि मनुज,
बस यहाँ शांति से रहता॥
न होता कोई कत्लेआम,
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