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शाम ढलने लगी है, अँधेरे को थोडा भगा दूँ

Written By Brahmachari Prahladanand on गुरुवार, 14 जुलाई 2011 | 7:49 pm

खुदा करे तेरे नूर की नूरानी कम न होने पाए |
कुछ जतन करो ऐसा कि कोई गम तुम्हें न होने पाए |
बशर्ते जिन्दगी का फलसफा तुम कुछ समझ पाए |
उससे पहले यह न जिन्दगी खत्म होने पाए |

गर तुझे खुदा मिल जाए तो कहना न किसी से |
नूर खुद अपनी कहानी कह देगा इस जहां से |

वक्त न जाया कर कुछ खुदा को भी याद कर |
मुद्दतें बीत जाती हैं खुद को खुद से भरमा कर |

मौत के दरवाजे पर मुत्त्सर नहीं होता लम्हा एक |
याद कर खुदा को बन जा बन्दा अब नेक |

नवाजिस है जुस्तुजू है रूह की इन्तहा है |
मत पूछ की तू कहाँ है तू कहाँ है तू कहाँ है |

यह जिन्दगी का नहीं, मौत का सफ़र है |
जिन्दगी बस मौत को भुलाने का कफर है |

शाम ढलने लगी है, अँधेरे को थोडा भगा दूँ |
शमा की रौशनी से चिरागों तो थोडा जला दूँ |

मौत से मत पूछ जिन्दगी किसे कहते हैं |
रुखसत हुआ इस जहाँ से लोग यूँ कहते हैं |
मौत का यह सफ़र है जिन्दगी का नहीं |
इसकी मंजिल तो मौत है जिन्दगी नहीं |

किस्सा ये साफगोई का यूँ ही ख़तम नहीं होता |
मंज़र पर मंज़र चले जाते हैं पर माजरा ख़तम नहीं होता |
रौशनी की रोशनाई में इबारतें लिख दी जाती हैं |
रौशनी ख़त्म हो जाती हैं पर किस्सा ख़तम नहीं होता |

वह ऐतबार ही क्या जो उठ जाए हकीकत से |
पेश कर हकीकतें उन मसीहाओं की ||
जानकर हकीकत उस खुदा की |
तेरा भी ऐतबार उस खुदा पर हो जाएगा ||

खुदा से न पूँछ अपने से सवाल कर |
सुर्रे को छककर पी फिर बवाल कर ||
रहयिक का स्वाद चख फिर मलाल कर |
है खुदा तेरे साथ इतना तो ख्याल कर ||

सुर्रा - नाभि
रहयिक - अमृत

विखरी हुई सासों को सम्हालने का वक्त आ गया |
सांसों के दरमियाँ रहने का वक्त आ गया |


                                               ------- बेतखल्लुस


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