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शूर्पणखा काव्य उपन्यास----सर्ग -१-चित्रकूट.-भाग दो... -डा श्याम गुप्त...

Written By shyam gupta on गुरुवार, 3 मार्च 2011 | 4:04 pm




        



   शूर्पणखा काव्य उपन्यास-- नारी विमर्श पर अगीत विधा खंड काव्य .....रचयिता -डा श्याम गुप्त  
                                        
                                 विषय व भाव भूमि
              स्त्री -विमर्श  व नारी उन्नयन के  महत्वपूर्ण युग में आज जहां नारी विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों से कंधा मिलाकर चलती जारही है और समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति की  ओर उन्मुख है , वहीं स्त्री उन्मुक्तता व स्वच्छंद आचरण  के कारण समाज में उत्पन्न विक्षोभ व असंस्कारिता के प्रश्न भी सिर उठाने लगे हैं |
             गीता में कहा है कि .."स्त्रीषु दुष्टासु जायते वर्णसंकर ..." वास्तव में नारी का प्रदूषण व गलत राह अपनाना किसी भी समाज के पतन का कारण होता  है |इतिहास गवाह है कि बड़े बड़े युद्ध , बर्बादी,नारी के कारण ही हुए हैं , विभिन्न धर्मों के प्रवाह भी नारी के कारण ही रुके हैं | परन्तु अपनी विशिष्ट क्षमता व संरचना के कारण पुरुष सदैव ही समाज में मुख्य भूमिका में रहता आया है | अतः नारी के आदर्श, प्रतिष्ठा या पतन में पुरुष का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है | जब पुरुष स्वयं  अपने आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक व नैतिक कर्तव्य से च्युत होजाता है तो अन्याय-अनाचार , स्त्री-पुरुष दुराचरण,पुनः अनाचार-अत्याचार का दुष्चक्र चलने लगता है|
                 समय के जो कुछ कुपात्र उदाहरण हैं उनके जीवन-व्यवहार,मानवीय भूलों व कमजोरियों के साथ तत्कालीन समाज की भी जो परिस्थिति वश भूलें हुईं जिनके कारण वे कुपात्र बने , यदि उन विभन्न कारणों व परिस्थितियों का सामाजिक व वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण किया जाय तो वे मानवीय भूलें जिन पर मानव का वश चलता है उनका निराकरण करके बुराई का मार्ग कम व अच्छाई की राह प्रशस्त की जा सकती है | इसी से मानव प्रगति का रास्ता बनता है | यही बिचार बिंदु इस कृति 'शूर्पणखा' के प्रणयन का उद्देश्य है |
                   स्त्री के नैतिक पतन में समाज, देश, राष्ट्र,संस्कृति व समस्त मानवता के पतन की गाथा निहित रहती है | स्त्री के नैतिक पतन में पुरुषों, परिवार,समाज एवं स्वयं स्त्री-पुरुष के नैतिक बल की कमी की क्या क्या भूमिकाएं  होती हैं? कोई क्यों बुरा बन जाता है ? स्वयं स्त्री, पुरुष, समाज, राज्य व धर्म के क्या कर्तव्य हैं ताकि नैतिकता एवं सामाजिक समन्वयता बनी रहे , बुराई कम हो | स्त्री शिक्षा का क्या महत्त्व है? इन्ही सब यक्ष प्रश्नों के विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक तथ्य प्रस्तुत करती है यह कृति  "शूर्पणखा" ; जिसकी नायिका   राम कथा के  दो महत्वपूर्ण व निर्णायक पात्रों  व खल नायिकाओं में से एक है , महानायक रावण की भगिनी --शूर्पणखा | अगीत विधा के षटपदी छंदों में निबद्ध यह कृति-वन्दना,विनय व पूर्वा पर शीर्षकों के साथ  ९ सर्गों में रचित है |
            पिछ्ले  वन्दना,विनय व पूर्वा पर शीर्षकों में कृति के मूल भाव व सन्दर्भ का वर्णन किया गया था
 प्रस्तुत सर्ग -१-चित्रकूट से  इस काव्य-उपन्यास की मूल कथा प्रारम्भ होती है...महाकाव्यों व खंडकाव्यों की रीति के अनुसार मूल नायक के चरित्र को उभारने के क्रम में उसके चारों ओर की परिस्थियों ,अन्य पात्रों , स्थानों, घटनाओं के वर्णन की आवश्यकता होती है ..अतः यह कृति राम के चित्रकूट निवास व वहां की घटनाओं से प्रारम्भ होती है......कुल छंद २५ जो दो भागों में प्रस्तुत किया जायगा  -पिछले सर्ग एक- चित्रकूट  भाग एक ---छंद -१ से १२  में..सीता व राम में , किस के पैर सुन्दर हैं इस पर विवाद हो रहा था, देखिये लक्ष्मण क्या निर्णय देते है...आगे.प्रस्तुत है सर्ग-१, भाग दो...छन्द १३ से२५ तक....
१३-
पग भव्य आपके प्रभु अति ही,
जो सकल भुवन के धारक हैं।
पर नेह-जलधि प्रभु के मन की,
सिय की पद-गागरि में छलके।
पद निरखि चलें, प्रभु के पीछे,
हो सिय पद की सुषमा दुगुनी ॥
१४-
पद-पंकज युगल, राम-सीता,
उर धारण करलें,  तर जायें।
अनुगमन करे इन चरणों का,
वह पाजाता है -अमृतत्व१   |
हरषाकर तब सिय-रघुवर ने,
लक्ष्मण को बहु आशीष दिए ||
१५-
पुष्पों को चुनकर निज कर से,
भूषण  रघुवर ने बना दिए |
स्फटिक-शिला पर हो आसीन,
सिय को पहनाये प्रीति सहित |
भ्रमित हुआ ,देखी नर-लीला-
जब सुरपति-सुत उस जयंत ने ||
१६-
समझाया था भार्या ने भी ,
देवांगना२  नाम- सुकुमारी ;
रूपवती,   विदुषी  नारी थी ,
भक्तिभाव,सतब्रत अनुगामिनि |
समझ न पाया,   अहंभाव में ,
विधि इच्छा पर कब किसका वश ||
१७-
रघुवर बल की करूँ परीक्षा,
सोचा, धर कर रूप काग का ;
चौंच मारकर सिय चरणों में ,
लगा भागने, मूढ़ -अभागा |
एक सींक को चढ़ा धनुष पर,
छोड़ दिया पीछे रघुवर ने ||
१८-
देवांगना ने किया उग्र तप,
यदि में प्रभु की सत्य पुजारिन;
क्षमा करें अपराध, हरि-प्रिया,
प्रभु-द्रोह-पाप से मुक्ति मिले;
जीवन दान मिले जयंत को,
अनुपम प्रीति राम की पाऊँ ||
१९-
धरकर राधारूप३  बनी वह,
पुनर्जन्म में प्रिया-पुजारिन;
भक्ति-प्रति की एक साधना,
स्वयं ईश की जो आराधना |
सफल हुआ तप, पूर्ण कामना,
कृष्ण रूप में, राम मिले थे ||
२०-
छिपने को सारे भुवनों में,
रहा दौड़ता इधर से उधर;
पर, नारी के अपराधी को,
भला कौन और क्यों प्रश्रय दे |
नारद बोले, क्षमा करेंगे,
वे, तू है जिनका अपराधी ||
२१-
 प्रभु चरणों में लोट-लोट कर,
माँ सीता की चरण वन्दना;
करके , क्षमा-दान फिर पाया-
रघुवर से, पर बिना दंड के;
अपराधी क्यों कोई छूटे,
एक नेत्र से हीन४ कर दिया ||  
२२-
बनचारी एवं ऋषि-मुनि गण,
खग मृग मीन ग्राम-नर-नारी |
थे प्रसन्न,सिय राम लखन जो,
बसे निकट ही,  पर्णकुटी में |
जैसे,   शोभित  होते वन में,
ज्ञान भक्ति वैराग्य, रूप धर ||
२३-
 यहाँ  सभी हमको पहचाने-
यदि परिजन आते रहते हैं,
कैसा फ़िर वनवास हमारा ।
कैसे हो उद्देश्य पूर्ण फ़िर।
गहन विचार राम के मन था,
स्वगत कहा,’अब चलना होगा’॥
२४-
क्या उद्देश्य! क्या कहा प्रभु ने,
एक प्रश्न की बनी भूमिका;
लक्षमण  के मन में, आतुर हो-
प्रश्न भाव प्रभु तरफ़ निहारा।
किन्तु राम थे गहन सोच में,
चुप रहना ही था श्रेयस्कर ॥
२५-
अन्तर्द्वद्व राम के मन था,
विश्वामित्र-बशिष्ठ योजना;
माँ कैकेयी का त्याग५, सभी-
यहीं रहे तो व्यर्थ रहें सब ।
राक्षस यहां तक नहीं आते,
आगे तो जाना ही होगा६ ॥      क्रमश: अगले अंक में...सर्ग-३..अरण्यपथ...


{कुन्जिका--१=मोक्ष, अमरता, परम ग्यान, परम-पद; २= देवांगना जयन्त की पत्नी थी, विष्णु भक्त थी, चित्रकूट में एक स्थान (गांव) देवान्गना है संभवतया वह जयंत  का राज्य रहा होगा।;३= चित्रकूट के अन्चल में यह लोक-कथा है कि देवान्गना ही अगले जन्म में राधा बनी अपनी विष्णु भक्ति व बरदान के कारण ।;४= यही कारण है इस किम्बदन्ती का कि कौए को एक आंख से ही दिखाई देता है, परन्तु वह दोनों ओर आन्तरिक-नेत्र बदल बद्ल कर देख सकता है ।; ५= कुछ मतों के अनुसार राम का वनबास...वास्तव में कैकेयी (जिसे रामकथा का एक अन्य निर्णायक स्त्री कुपात्र समझा जाता है), जो एक चतुर कूटनीतिग्य थी-वशिष्ठ व विश्वामित्र और राम की दक्षिणान्चल स्वाधीनता नीति का एक कूट उद्देश्य था। ६= चित्रकूट वस्तुतःलंकापति रावण के भारतीय अधिग्रहीत क्षेत्र व अवध क्षेत्र की सीमा पर था , उसके आगे घनघोर वन प्रदेश था-जन स्थान जो राक्षसी अत्याचारों-अनाचारों के कारण अत्यन्त पिछड चुका था। आज भी चित्रकूट स्थित गहन वन प्रदेश को देखकर उस समय की गहनता  व रमणीयता-प्राक्रतिक सौन्दर्य का अनुमान किया जासकता है।}
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