दुनिया की रस्मों से अनजान
मैं हूँ पागल , मैं हूँ नादान .
बंदिशें इस कद्र भारी पड़ी दिल में दफन हो गए सब अरमान.
गम कब तक रहेंगे पास मेरे
क्या कहूँ , मैं तो हूँ मेज़बान .
मेरे आंसूं , मेरी मुस्कान .
कर्जदार हूँ , बकाया हैं मुझ पर कुछ इसके , कुछ उसके अहसान .
हिम्मत, किस्मत 'विर्क' सब चाहिए जिंदगी है एक बड़ा इम्तिहान .
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2 टिप्पणियाँ:
bhtrin gzl mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
achchhee gazal hai..
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