http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com
पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं।
इसमें मुझ पर बेवजह लगाए गए कई झूठ इल्ज़ामों का खंडन है । आप देख सकते हैं कि लोग महज़ सरसरी नज़र से मेरे लेख पढ़कर कैसे ग़लतफ़हमियाँ पालते भी हैं और फिर फैलाते भी हैं ?
@ भाई समीक्षा सिंह जी ! आप लोग मेरी रचनाओं को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते इसीलिए आप मुझसे बदगुमान और परेशान रहते हैं । अपर्णा पलाश बहन का कोई भी शेर मैंने अपने ब्लाग 'अहसास की परतें' के कमेँट बॉक्स के साथ नहीं लगाया है , तब आप मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम क्यों दे रहे हैं ?
जो इस जगत का रचनाकार है वही एक ईश्वर है मैं उसी को मानता हूँ और आप भी उसी को मानते होंगे।
अगर आपकी नज़र में आपके धर्मग्रंथ प्रक्षिप्त नहीं हैं तो आप उनका पालन कीजिए।
आप खुद कहते हैं कि हिंदू धर्म के ग्रंथों से आपकी आस्था हिली चुकी है।
1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
5. और अगर मुसलमानों की तरह वह जंगल नहीं जाते तो क्या अब आप उनसे अपने धर्मग्रंथों के पालन के लिए कहेंगे ?
पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं।
इसमें मुझ पर बेवजह लगाए गए कई झूठ इल्ज़ामों का खंडन है । आप देख सकते हैं कि लोग महज़ सरसरी नज़र से मेरे लेख पढ़कर कैसे ग़लतफ़हमियाँ पालते भी हैं और फिर फैलाते भी हैं ?
@ भाई समीक्षा सिंह जी ! आप लोग मेरी रचनाओं को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते इसीलिए आप मुझसे बदगुमान और परेशान रहते हैं । अपर्णा पलाश बहन का कोई भी शेर मैंने अपने ब्लाग 'अहसास की परतें' के कमेँट बॉक्स के साथ नहीं लगाया है , तब आप मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम क्यों दे रहे हैं ?
जो इस जगत का रचनाकार है वही एक ईश्वर है मैं उसी को मानता हूँ और आप भी उसी को मानते होंगे।
अगर आपकी नज़र में आपके धर्मग्रंथ प्रक्षिप्त नहीं हैं तो आप उनका पालन कीजिए।
आप खुद कहते हैं कि हिंदू धर्म के ग्रंथों से आपकी आस्था हिली चुकी है।
1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
5. और अगर मुसलमानों की तरह वह जंगल नहीं जाते तो क्या अब आप उनसे अपने धर्मग्रंथों के पालन के लिए कहेंगे ?
3 टिप्पणियाँ:
अनवर ज़माल जी आप फ़िर फ़िर कर वहीं हिन्दू धर्म की बुराई पर आजाते हैं....जो कोड व कन्डक्ट के विपरीत है...
---क्या आप पहले की तरह जन्गली खाल या छाल के कपडे पहन कर हज़रतगन्ज़ में टहल सकते हैं....नहीं...बस उसी तरह धार्मिक कथनों के सिर्फ़ सामयिक अर्थों पर न जाकर उनके मूल भाव को आज की परिस्थितियों के अनुसार पालन करना चाहिये....
अनवर भइया आप इस तरह के व्यक्तिगत विवाद, लेख अपने ब्लॉग तक ही सिमित रखें तो आभार होगा आपका. इससे मंच के सार्थकता में गिरावट आती है. आप बुद्धिमान हैं, उम्मीद करता हूँ आप मेरे बातो का बुरा नहीं मानेंगे और समझेंगे .
anwar ji ,
chori alag mudda hai aur dharm ke udaharan alag.dono ko ek sath mat leejiye.aur jahan taq chori ki bat hai to "sanch ko aanch nahi"
yahan dharm ke udaharan mat deejiye.
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