जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि
1. दौलतमंदों और पूंजीपतियों की ख़ैरात और चंदे पर चलने वाली अंजुमनें हमेशा दौलतमंदों की ताक़त और मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को क़ायम रखने में मददगार साबित होती हैं । वे गरीबों को सब्र और धैर्य का उपदेश करके उनके इन्क़लाबी जज़्बात को ठंडा करती रहती हैं ताकि पूंजीपति बेख़ौफ़ उनका ख़ून चूसते रहें ।
2. शोहरत और नामवरी की ख़्वाहिश मामूली ज़हन रखने वालों की एक खुली हुई कमजोरी है और बड़े बुद्धिजीवियों की गुप्त कमज़ोरी है।
हमारे देश की राजनीतिक संस्थाएं भी पूंजीपतियों और बुद्धिजीवियों के बल पर चलती हैं , इसीलिए शोषण भ्रष्टाचार का बोलबाला आज आम है । आज मनमोहन सरकार से जनता नाराज़ है । उससे पहले BJP सरकार से नाराज थी और उससे पहले V. P. SINGH सरकार से भी नाराज हो चुकी है और अब जो नई सरकार आएगी , उससे भी बहुत जल्द यह जनता नाराज हो जाएगी क्योंकि चाहे कोई भी पार्टी की सरकार बने लेकिन राज चलता है पूँजीपतियों का ही। पत्र-पत्रिकाओं में लिखने वाले बुद्धिजीवियों का ख़र्चा-पानी इनसे ही चलता है।
असल बात यह है कि जनता के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है कि राजनीतिक संस्थाओं को पूँजीपतियों के प्रभाव से कैसे आज़ाद कराया जाए ?
नेताओं और बुद्धिजीवियों के दिलों से लालच और ऐशो आराम की ख़्वाहिश कैसे निकाली जाए ?
उन्हें थोड़े में संतुष्ट रहना कैसे सिखाया जाए ?
हमें मारने वाली चीज़ यही 'ज़्यादा की ख़्वाहिश' है , आज से नहीं बल्कि सदा से। भारतीय ऋषियों ने भी इसे चिन्हित किया है और जब उनके 'ज्ञान' को भुला दिया गया तो फिर कुरआन ने भी तबाही का कारण यही बताया है :
'ज़्यादती की चाहत ने तुम्हें ग़ाफ़िल कर दिया । यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे।' -103, 1-2
ज़्यादती की इसी चाहत में आज इंसान ने अपने ज़मीर , अपनी ग़ैरत और अपनी हया का गला ख़ुद अपने हाथों से घोंट डाला है , ख़ास व आम हरेक तबक़े ने । ऐसे में दूसरों के साथ साथ अपना भी जायज़ा लेना ज़रूरी है ।
1. दौलतमंदों और पूंजीपतियों की ख़ैरात और चंदे पर चलने वाली अंजुमनें हमेशा दौलतमंदों की ताक़त और मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को क़ायम रखने में मददगार साबित होती हैं । वे गरीबों को सब्र और धैर्य का उपदेश करके उनके इन्क़लाबी जज़्बात को ठंडा करती रहती हैं ताकि पूंजीपति बेख़ौफ़ उनका ख़ून चूसते रहें ।
2. शोहरत और नामवरी की ख़्वाहिश मामूली ज़हन रखने वालों की एक खुली हुई कमजोरी है और बड़े बुद्धिजीवियों की गुप्त कमज़ोरी है।
हमारे देश की राजनीतिक संस्थाएं भी पूंजीपतियों और बुद्धिजीवियों के बल पर चलती हैं , इसीलिए शोषण भ्रष्टाचार का बोलबाला आज आम है । आज मनमोहन सरकार से जनता नाराज़ है । उससे पहले BJP सरकार से नाराज थी और उससे पहले V. P. SINGH सरकार से भी नाराज हो चुकी है और अब जो नई सरकार आएगी , उससे भी बहुत जल्द यह जनता नाराज हो जाएगी क्योंकि चाहे कोई भी पार्टी की सरकार बने लेकिन राज चलता है पूँजीपतियों का ही। पत्र-पत्रिकाओं में लिखने वाले बुद्धिजीवियों का ख़र्चा-पानी इनसे ही चलता है।
असल बात यह है कि जनता के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है कि राजनीतिक संस्थाओं को पूँजीपतियों के प्रभाव से कैसे आज़ाद कराया जाए ?
नेताओं और बुद्धिजीवियों के दिलों से लालच और ऐशो आराम की ख़्वाहिश कैसे निकाली जाए ?
उन्हें थोड़े में संतुष्ट रहना कैसे सिखाया जाए ?
हमें मारने वाली चीज़ यही 'ज़्यादा की ख़्वाहिश' है , आज से नहीं बल्कि सदा से। भारतीय ऋषियों ने भी इसे चिन्हित किया है और जब उनके 'ज्ञान' को भुला दिया गया तो फिर कुरआन ने भी तबाही का कारण यही बताया है :
'ज़्यादती की चाहत ने तुम्हें ग़ाफ़िल कर दिया । यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे।' -103, 1-2
ज़्यादती की इसी चाहत में आज इंसान ने अपने ज़मीर , अपनी ग़ैरत और अपनी हया का गला ख़ुद अपने हाथों से घोंट डाला है , ख़ास व आम हरेक तबक़े ने । ऐसे में दूसरों के साथ साथ अपना भी जायज़ा लेना ज़रूरी है ।
6 टिप्पणियाँ:
vaah anvr bhaai aapne to logon ke zmir ko jhkjhor diyaa btrin rchnatmk post ke liyen mubarkbaad . akhtar khan akela kota rajsthan
अकेला साहब का शुक्रिया अकेली टिप्पणी के लिए !
बिलकुल सही अनवर साहब आजकल हर किसी को हर चीज़ चाहिए, रोटी -कपडा और मकान तो है ही उसके इलावा गाडी, पैसा, यश(fame), रयीशी(luxury) ठाठ-बाट से भी संतुष्ठी नहीं होती ..
सफलता पाना अच्छी बात है उसे पाने की भाग दौड़ भी सही है सफलता पाने का लालच भी ठीक है...
मगर सफलता को छोड़ आजकल सब सफलता के फायदे(side benefits), सफलता के साथ मिलने वाली हर-सब्ज बाग़ के पीछे है....
आजकल पैसा ही भगवान् है...उसके आगे आत्मसम्मान और ज़मीर कुछ भी नहीं...
बहुत सुन्दरता से आपने आत्मा की वाणी को वयक्त किया है...इस सुदर लेख की आपको बहुत बहुत बधाई!!
@ हेमा जी ! आपने सच्ची बात को बिना किसी हिचक के स्वीकार कर लिया , यह गुण भी आज दुर्लभ हो चुका है ।
आपका शुक्रिया ।
कृप्या आप मेरा ब्लॉग
pyarimaan.blogspot.com
भी देखिएगा !
ज़्यादती की इसी चाहत में आज इंसान ने अपने ज़मीर , अपनी ग़ैरत और अपनी हया का गला ख़ुद अपने हाथों से घोंट डाला है ,
.
एक अच्छा लेख.
@ जनाब मासूम साहब ! हक़ीक़त यही है किहमें हमारे बुजुर्गों ने सिखाया था कि ऐश ओ इशरत से बचना ताकि तुम्हारा ज़मीर जिंदा रहे लेकिन हमने ऐश ओ इशरत और दौलत कि ज़्यादती के लालच में अपने ज़मीर का गला घोंट डाला है .
शुक्रिया कि आपको लेख पसंद आया , सब आपके ही बुजुर्गों की इनायत है .
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Thanks for your valuable comment.