सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते .
मुहब्बत में मैंने तो एक सबक पाया है
वक़्त और आदमी कभी वफा नहीं करते .
ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते .
वो परिंदे परवाज़ के लिए उड़ा नहीं करते .
दिल के साथ दिमाग की भी सुन लिया करो
जज्बातों की रौ में यूं बहा नहीं करते .
तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश
मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते .
काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे
ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते .
*****
----- sahityasurbhi.blogspot.com
7 टिप्पणियाँ:
सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते
great
बहुत खूब
yeh aansu aankhon men chhupa nhin krte bhut khub gzl he or sjavat ne char chand lga diye hen mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश
मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते .
काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे
ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते ...
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।
ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते .
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..
शानदार....
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.