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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on रविवार, 6 मार्च 2011 | 2:49 pm

                   
             सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते                       आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते .

               मुहब्बत में मैंने तो एक सबक पाया है 
               वक़्त और आदमी कभी वफा नहीं करते .

         ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
         वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते .

               ज़ालिम किस्मत काट लेती है पंख जिनके  
               वो परिंदे परवाज़ के लिए उड़ा नहीं करते .

         दिल के साथ दिमाग की भी सुन लिया करो 
         जज्बातों  की  रौ  में  यूं  बहा  नहीं  करते . 

               तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश 
               मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते .

         काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे 
         ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते .

                                    *****
          ----- sahityasurbhi.blogspot.com
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7 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते

great

Safat Alam Taimi ने कहा…

बहुत खूब

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

yeh aansu aankhon men chhupa nhin krte bhut khub gzl he or sjavat ne char chand lga diye hen mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश
मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते .
काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे
ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते ...

बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।

Kailash Sharma ने कहा…

ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते .

बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..

shyam gupta ने कहा…

शानदार....

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