31 मार्च आने वाला है . इसी तिथि को अनुबंध प्राप्त अध्यापकों का अनुबंध समाप्त हो रहा है . पात्र अध्यापक नए सिरे से अनुबंध देने की बात उठा रहे हैं . देखना है उन्हें न्याय मिलेगा या नहीं . वैसे संभावना कम ही है क्योंकि सरकार अनुबंधित अध्यापकों के आगे घुटने टेकती आई है . नियुक्ति पा चुके अध्यापक जब अनुबंधित अध्यापकों के कारण कष्ट उठाने को विवश हैं तो दूसरे उम्मीद ही क्या कर सकते हैं ? नियुक्ति पा चुके अध्यापकों को दूसरे जिलों में भेजा जा रहा है जबकि उनके अपने जिले में पद रिक्त हैं , लेकिन इन पदों पर वो अनुबंधित अध्यापक विराजमान हैं जिन्हें नियुक्ति बिना मैरिट के इस शर्त पर दी गई थी कि जिस दिन स्थायी भर्ती होगी उस दिन इन्हें हटा दिया जाएगा . इतना ही नहीं इन्हें बचाने के लिए आनन-फानन में बिना वित् विभाग की स्वीकृति के नए पद सृजित किये गए . क्योंकि वित् विभाग ने इन्हें स्वीकृति अभी तक नहीं दी है , ऐसे में नवनियुक्त प्राथमिक अध्यापकों को वेतन मिलने की भी संभावना नहीं है . यह अन्याय नहीं तो और क्या है ?
किसी को नौकरी मिले इससे दूसरे को तब तक एतराज़ नहीं होता जब तक भर्ती प्रक्रिया सही हो . बैकडोर एंट्री न्याय चाहने वाले किसी भी आदमी को हजम नहीं हो सकती . यही विरोध पात्र अध्यापकों का है और हर किसी को उनका साथ देना ही चाहिए क्योंकि आज वे अन्याय का शिकार हैं कल को हम होंगे . यदि हरियाणा सरकार अनुबंधित अध्यापकों को स्थायी करने में सफल रही तो बिना मैरिट के भर्ती करने की ऐसी परिपाटी चल पड़ेगी जिससे अमीर और ओहदेदार की संताने ही सरकारी नौकरी पा सकेंगी . अनुबंधित अध्यापकों में प्रिंसिपलों और बड़े अधिकारीयों के रिश्तेदारों की भरमार है ही . क्या आप चाहेंगे कि अध्यापक लगने की शर्त किसी रिश्तेदार का प्रिंसिपल होना हो ? हरियाणा सरकार अनुबंधित अध्यापकों के अनुबंध को बार-बार बढाकर इसका समर्थन करती प्रतीत होती है . इस समर्थन के पीछे क्या लालच है यह मुख्यमन्त्री महोदय ही जानते हैं ,लेकिन जवाब मांगना जनता का हक है उसे ये मांगना ही चाहिए , भले ही उत्तर मिले या न मिले .
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