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Written By आपका अख्तर खान अकेला on शनिवार, 12 मार्च 2011 | 1:45 pm

होली आई रे होली आई रे .......

कल में जेसे ही वकालत के दफ्तर से घर पहुंचा गली नुक्कड़ की होली वाले बच्चे मेरे पास आये और होली का चंदा मांगने लगे मेने देखा के अब एक नई पीडी इस होली के चंदे के लियें तय्यार हो गयी हे .
हमने भी होली बनाई हे होली सजाई हे चंदे भी किये हें लेकिन लिमिटेड चंदा खुबसुरत सजावट और रुपयों की कम बर्बादी लेकिन इन दिनों महंगाई हे सही बात हे जो होली हम ५०० रूपये के चंदे में सजा लिया करते थे वोह होली आज दस हर में सजाई जाती हे और कई फालतू आकर्षक सजावट के चक्कर में यह खर्च कई लाख रूपये तक पहुंच जाता हे , में सोचने लगा के देश में सवा अर्ब लोगों की जनसंख्या के बीच छोटी बढ़ी होली करीब पन्द्रह लाख लोग मनाते हें और एक होली पर कमसे कम बीस हजार रूपये का एवरेज खर्च आता हे क्योंकि कुछ बढ़ी होलियाँ तो लाखों में सजती हे और कुछ होलियों का खर्च हजारों में सिमट जाता हे बस मेने हिसाब लगाया १५ लाख को १० हजार से गुणा करो तो कुल राशी १५ अरब रूपये बैठती हे इस तरह से केवल होली सजाने और जलाने में हम हर साल १५ अर्ब तो यूँ ही खर्च कर देते हें फिर हम रंग गुलाल और पानी मिष्ठान के अलग खर्च करते हें इन दिनों पेट्रोल और दुसरे खर्च अलग से होते हें खेर त्यौहार हे और त्यौहार भी सिख देने वाला भाईचारा सद्भावना अपनापन का पाठ पढ़ने वाला सभी को साथ लेकर चलने वाला अपने पन का पैगाम और इश्वर पर दृढ विशवास पैदा करने वाला त्यौहार हे रंगों का खुबसुरत इन्द्रधनुष से देश को सजाने वाला यह त्यौहार हे इसलियें यह खर्च कोई बढ़ी बात नहीं हे यहाँ कई बार होली के प्रबन्धन से गली मोहल्ले के बच्चे एक प्रबन्धन कार्यक्रम का संयोजन सीखते हें जो उनके जीवन में कई जगह काम भी आती हे .
लेकिन आजकल यह सब नहीं होता हे होली के नाम पर लडकियों से अभद्रता रंग के नाम पर गंदगी ग्रीस आयल लगा कर लोगों के चेहरे खराब करने कपड़े फाड़ना होली की नफासत होली का फलसफा ही खत्म हो गया हे ऐसे में हम देखते हे हर होली पर शराब के नशे में भांग के नशे में कई लोग जेल में बंद होते हें आपस में ही लढ कर  एक दुसरे का सर फाड़ देते हें यहाँ तक के कई इलाकों में तो अनावश्यक हत्या तक और गेंगवार तक बात पहुंच जाती हे जो सदियों की दुश्मनी बना देती हे बूंद बूंद पानी बचाने का नारा देने वाले यही लोग अरबों रूपये का बेशकीमती पानी यूँ ही बर्बाद कर देते हे तो दोस्तों त्यौहार भाई चारा सद्भावना बढाने के लियें और देश का विकास करने के लियें होते हें इस तरह से देश की बर्बादी के लियें नहीं इसलियें इस मामले को गम्भीरता से सोचना होगा और इस गम्भीर चिन्तन में खुले मन से विचार कर एक सुझाव और एक संकल्प जो खुद अपने परिवार पर लागू किया जाए और गीली होली से बचा जाए ऐसे रंग जिनमें तेज़ाब होता हे उससे बचा जाए फ़िज़ूल खर्ची के स्थान पर उस खर्च से अपने इलाके में होली की धार्मिक रस्म से पूजा अर्चना तो की जाए लेकिन साथ ही किसी गरीब की शादी किसी गरीब को खाना किसी गाँव मोहल्ले में हेंड पम्प डिस्पेंसरी या कोई भी रचनात्मक काम में इस राशी को खर्च कर त्यौहार ईद हो होली हो दीपावली हे इन्हें यादगार बनाया जाए . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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