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तीन कांग्रेस विधायकों की शोशेबाजी के मायने क्या हैं?

Written By तेजवानी गिरधर on बुधवार, 16 मार्च 2011 | 9:07 am

योग गुरू बाबा रामदेव की ओर से भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम कामयाब हो या न हो, यह मुहिम उन्हें सत्ता की सीढ़ी चढऩे में कामयाबी दिलाए या नहीं, लेकिन उनके लगातार हल्ला मचाने से कम से कम देशभर में भ्रष्टाचार खिलाफ माहौल तो बना ही है। हालांकि देश की सबसे छोटी इकाई नागरिक से लेकर शीर्ष तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है, लेकिन हम कम से कम भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी समस्या तो मानने ही लगे हैं। बाबा रामदेव की ओर से विशेष रूप से कांग्रेस पर निरंतर किए जा रहे हमलों से स्तंभित कांग्रेस के तीन सुपरिचित मुखर विधायकों डॉ. रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास व विधूड़ी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने के लिए रथयात्रा आयोजित करने का बीड़ा उठाया है। जाहिर तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों की इस शोशेबाजी पर सब चकित हैं और उनके इस नए नाटक की असली वजह का पता लगाने के लिए कयास लगा रहे हैं।
अव्वल तो उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम के लिए न तो पार्टी हाईकमान से अनुमति ली है और न ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इसकी जानकारी दी है। इसकी पुष्टि इस बात से हो जाती है कि जब उनसे इस मुत्तलिक सवाल पूछा गया तो वे बोलते हैं कि इस मुहिम के लिए अनुमति लेने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि उनकी नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने स्वयं बुराड़ी अधिवेशन में भ्रष्टाचार को मिटाने का आह्वान किया है और वे इसी के तहत मुहिम चला रहे हैं। श्रीमती गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, अशोक गहलोत व डॉ. सी. पी. जोशी को अपना नेता बताते हुए कहते हैं कि बावजूद इसके यदि हाईकमान ने मुहिम बंद करने को कहा तो वे उसके लिए तैयार हैं। साफ है कि यह निर्णय उनका खुद का है। हालांकि वे कह ये रहे हैं कि उनका अपनी सरकार से कोई विरोध नहीं है, लेकिन साथ ही यह कहने से भी गुरेज नहीं करते कि प्रशासन में भ्रष्टाचार का बोलबाला है, जिसको वे खत्म करना चाहते हैं। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री गहलोत का भी नाम लेते हैं कि वे स्वयं भी कई बार प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते रहे हैं।  ऐसा करके वे सरकार और प्रशासनिक तंत्र को अलग किए दे रहे हैं, जबकि वस्तुस्थिति ये है कि अधिसंख्य अधिकारी व कर्मचारी सरकार के अनुरूप अपने आपको ढ़ाल लेते हैं और सरकार के इशारे पर ही कामों को अंजाम देते हैं।
दिलचस्प बात ये है कि जब उनसे भ्रष्टाचार के खुलासे को कहा जाता है तो वे गिना पिछली भाजपा सरकार के दौरान हुए कथित 22 हजार करोड़ रुपए के घोटालों को रहे हैं। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री शेर-ए-राजस्थान स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत की ओर से भाजपा सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर किए गए प्रहारों की आड़ लेते हैं। इससे अंदाजा ये होता है कि वे भाजपा की ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू होने वाले आंदोलन को डिफ्यूज करना चाहते हैं। सिर्फ इसी वजह से आशंका ये होती है कि कहीं वे हाईकमान के इशारे पर ही तो ऐसा नाटक नहीं कर रहे, क्योंकि कांग्रेस तो संगठन के बतौर अपनी सरकार के रहते भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई मुहिम चला नहीं सकती। ज्ञातव्य है कि तीनों विधायक मुंहफट हैं और आए दिन पार्टी लाइन से हट कर कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। कदाचित उनकी इसी फितरत का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि इससे यह सवाल तो खड़ा होता ही है कि अगर पूर्व सरकार ने भ्रष्टाचार किया था तो कांग्रेस सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में उसे अभी तक साबित क्यों नहीं कर पाई है, जबकि मुख्यमंत्री गहलोत ने कुर्सी पर काबिज होते ही अपने एजेंडे में वसुंधरा राज के भ्रष्टाचार को उजागर करने को सर्वाेपरि रखा था।
दिलचस्प बात ये है कि तीनों विधायक मंत्री पद के दावेदार हैं और मुख्यमंत्री ने उन्हें यह सौभाग्य दिया नहीं  है। ऐसे में ठाले बैठे कुछ न कुछ करने की खातिर अपनी ऊर्जा का उपयोग इस मुहिम में लगा रहे हैं। वैसे भी सदैव चर्चा में बने रहने की इच्छा के चलते कई बार अपनी सरकार के ही मंत्रियों को घेरने से बाज नहीं आते। कभी अपना बताया हुआ काम न होने के बहाने तो कभी कार्यकर्ताओं की पैरवी करते हुए उन्हें राजनीतिक पदों से नवाजने का तर्क दे कर। बहरहाल, उनकी इस नौटंकी के मायने क्या हैं, ये फिलहाल तो किसी के समझ में आ नहीं रहे हैं, लेकिन उनके असंतुष्ट होने का इशारा जरूर कर रहे हैं।
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