लाख हमसाये मिले हैं आईनों के दर्मियां.
अजनवी बनकर रहा हूं दोस्तों के दर्मियां.
काफिले ही काफिले थे हर तरफ फैले हुए
रास्ते ही रास्ते थे मंजिलों के दर्मियां.
वक़्त गुज़रा जा रहा था अपनी ही रफ़्तार से
एक सन्नाटा बिछा था आहटों के दर्मियां.
राख के अंदर कहीं छोटी सी चिंगारी भी थी
इक यही अच्छी खबर थी हादिसों के दर्मियां.
इसलिए बचते-बचाते मैं यहां तक आ सका
एक रहबर मिल गया था रहजनों के दर्मियां.
किसकी किस्मत में न जाने कौन सा पत्ता खुले
एक बेचैनी है 'गौतम' राहतों के दर्मियां.
----देवेंद्र गौतम
अजनवी बनकर रहा हूं दोस्तों के दर्मियां.
काफिले ही काफिले थे हर तरफ फैले हुए
रास्ते ही रास्ते थे मंजिलों के दर्मियां.
वक़्त गुज़रा जा रहा था अपनी ही रफ़्तार से
एक सन्नाटा बिछा था आहटों के दर्मियां.
राख के अंदर कहीं छोटी सी चिंगारी भी थी
इक यही अच्छी खबर थी हादिसों के दर्मियां.
इसलिए बचते-बचाते मैं यहां तक आ सका
एक रहबर मिल गया था रहजनों के दर्मियां.
किसकी किस्मत में न जाने कौन सा पत्ता खुले
एक बेचैनी है 'गौतम' राहतों के दर्मियां.
----देवेंद्र गौतम
2 टिप्पणियाँ:
bahut khoobsurat ghazal hai.bahut pasand aai.
bahut he sundar
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Thanks for your valuable comment.