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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on गुरुवार, 17 मार्च 2011 | 5:46 pm

बहुत हो गई, अब छोडो यारो ये तकरार बे-बात की 
जिंदगी जन्नत बने, इसके लिए निभानी होगी दोस्ती .

ये वो शै है जो हर पल आमादा है लुप्त होने को 
जब मिले, जहाँ मिले, जी भरकर समेट लेना ख़ुशी .

प्यार के सब्ज़ खेत भला लहलहाएंगे तो कैसे, जब तक 
वफा की घटा, दिलों की जरखेज ज़मीं पर नहीं बरसती .

वहशियत नहीं मासूमियत हो, नफरत नहीं मुहब्बत हो 
ऐसे ख्वाबों को पूरा करने में तुम लगा दो जिंदगी .

माना दौर है तूफानों का, यहाँ नफरतों की आग है 
फिर भी हिम्मत हारना, है तुम्हारी सबसे बड़ी बुजदिली .

न तो नफरत की बात कर 'विर्क', न उल्फत से गिला कर 
किस्मत तेरी रंग लाएगी, तू खुद को बदल तो सही .

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              ----- sahityasurbhi.blogspot.com
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