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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on गुरुवार, 3 मार्च 2011 | 8:13 pm


 दुनिया की रस्मों से अनजान
 मैं  हूँ  पागल  ,  मैं  हूँ  नादान .
              बंदिशें  इस  कद्र  भारी  पड़ी 
              दिल में दफन हो गए सब अरमान.
 गम कब तक रहेंगे पास मेरे  
 क्या  कहूँ , मैं  तो  हूँ  मेज़बान . 

              बे'मानी  हो  चुके  हैं  अब  तो 
              मेरे  आंसूं  ,  मेरी  मुस्कान .
 कर्जदार हूँ  , बकाया हैं मुझ पर 
 कुछ इसके , कुछ उसके अहसान .
              हिम्मत, किस्मत 'विर्क' सब चाहिए 
              जिंदगी  है  एक  बड़ा  इम्तिहान  .

                           * * * * *  

               ----- sahityasurbhi.blogspot.com 
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